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झारखंड
लावारिस नवजात के मिलने की संख्या में हो रहा इजाफा
By Deshwani | Publish Date: 20/6/2017 11:07:11 AM
लावारिस नवजात के मिलने की संख्या में हो रहा इजाफा

बोकारो,  (हि.स.)। कहते हैं पूत भले ही कपूत हो जाए, लेकिन माता कुमाता नहीं हो सकती.. लेकिन इस कलियुग में मां की ममता तक को लोगों ने कलंकित कर डाला है। एक तरफ पूरी दुनिया हिन्दुस्तानी सनातन संस्कृति का अनुकरण कर रही है, वहीं हमारे ही समाज के लोग तथाकथित अत्याधुनिकता की होड़ में भागते हुए अपने संस्कार, चरित्र और मानवता की तिलांजलि देने में लगे हैं। इसी पाश्चात्य की देन है कि आज मां की ममता और कोख की पवित्रता भी अय्याशी की भेंट चढ़ रही है। बोकारो में भी महानगरों की तरह लिव इन रिलेशनशिप जैसी भ्रष्ट परंपरा चल पड़ी है।

युवक-युवतियों ने प्रेम के अर्थ को ही मोड़ डाला है। लिव-इन-रिलेशनशिप जैसी चीजों को अपनाने वालों की तादाद बोकारो जिले में बढ़ चली है। लोग अय्याशी की खातिर शारीरिक संबंध बना तो लेते हैं, लेकिन जब गर्भाधान हो जाता है तो या उसे गर्भ में ही मार डालते हैं या जन्म के बाद मरने के लिए छोड़ देते हैं। कई ऐसी तथाकथित माताएं भी हैं जो नौ महीने तक बच्चे को गर्भ में पालती भी हैं, लेकिन बाद में संभावित लोकलाज के चलते सड़क पर, नालियों में स्टेशन पर, झाड़ियों में या अन्य किसी सुनसान जगह पर मरने के लिए छोड़ देती हैं। अब वह बच्चा मरे या बचे या उसे जंगली जानवर, कुत्ते आदि नोंच-नोंचकर खा लें, इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। दुनिया में कदम रखने वाले एक नये मेहमान के आते ही दुनिया से हटा देने की वे पूरी कोशिश करते हैं। 
बोकारो में हाल के दिनों में ऐसे कई मामले सामने आते दिखे हैं। ज्यादातर तो बेटियां ही पैदा होने के बाद फेंक दी जाती हैं, जो बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे सरकारी नारे के लिये भी एक यक्ष चुनौती है। कुछ दिन पहले ही जिले के बेरमो स्थित अमलो कांटाघर के पास झाड़ियों में नाली में गिरा एक लावारिस नवजात बरामद किया गया। मात्र चार घंटे वह नवजात बालक सड़क किनारे पड़ा अपनी मां का इंतजार करता रहा। मां के दूध के लिये बिलख-बिलखकर उसके कंठ सूखे जा रहे थे। मां का आंचल, मां की गोद और दूध तो नहीं मिली, लेकिन गली के कुत्ते जरूर पहुंच गये उसे नोंचकर खाने के लिये। इससे पहले कि कुत्ते उस शिशु को नोंचते, आसपास के लोगों तथा पुलिस ने उसकी जान बचा ली। एक हाइवा के चालक ने बच्चे को नाले से बाहर निकाल बचाया और बाद में पुलिस तथा बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) की मदद से स्थानीय स्तर पर उपचार के बाद बच्चे को बोकारो जेनरल अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां बेबी केयर यूनिट में बच्चे का इलाज कराया गया और सोमवार को वह बच्चा दत्तक-ग्रहण प्रक्रिया के लिये सुपुर्द किया जा सका।
ऐसे मामलों में संजीदगी दिखाने वाले बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) के स्थानीय सदस्य डॉ. प्रभाकर कुमार की मानें तो बोकारो जिले मेंर, 2016 से लेकर अबतक कुल सात ऐसे लावारिस बच्चे बरामद किये गये हैं। अक्तूबर, 2016 में दो फेंके हुए बच्चे मिले थे। चंद्रपुरा थाना ने तीन दिन की एक लड़की नाले से बरामद की थी। उसी माह प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, पेटरवार के प्रभारी ने दो दिन की एक बच्ची को बरामद कर सीडब्ल्यूसी के हवाले किया था। उसे कोई उक्त अस्पताल में छोड़ भाग गया था। दोनों बच्चियां स्वस्थ हो गयीं और जिला चाइल्ड प्रोटेक्शन यूनिट के माध्यम से-दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया में दी गयीं। उसके बाद नवंबर, 2016 में ललपनिया थाना ने एक दिन की बच्ची सीडब्ल्यूसी को दी थी। उस समय तो मानवता औरर दरिंदगी के रूप में नजर आयी। बच्ची घायलावस्था में मिली थी। उसे फेंकन से पहले किसी ने पत्थर से मारकर घायल कर दया था। बच्ची को रिम्स, रांची भेजा गया था। इलाज चला, लेकिन दो दिन बाद ही दुनिया को अलविदा कह गयी। फरवरी, 2017 में एक बच्ची चास थाना ने सीडब्ल्यूसी को दी और एक महीने का नवजात बालक को बालीडीह थाने ने दिया था। तदुपरांत बीते माह मई में स्टेशन से दो माह की बच्ची और फिर बेरमो में नाले से चार घंटे के नवजात की बरामदगी हुई। डॉ. प्रभाकर की मानें तो वर्तमान जीवन-शैली, खुलापन, इंटरनेट का सहज रूप से प्रयोग, पाश्चात्य सभ्यता की ओर झुकाव, महानगरों की संस्कृति का अनुकरण, अनुशासन का अभाव आदि चीजें इस तरह की घटनाओं का मूल कारण मानी जा सकती हैं। 
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