रांची, (हि.स.)। राज्य में 10 साल के अंदर नक्सली अभियान पर एक लाख करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। इसका फायदा भी हुआ। नक्सलियों के कई गढ़ ध्वस्त हो गए। साथ ही राज्य के 2200 चिह्नित नक्सलियों पर विकास के नाम पर, जो राशि खर्च की गई है, वह अलग है। नक्सलग्रस्त राज्य के नाम पर झारखंड सरकार ने खजाना खोल रखा है। हर जान की कीमत अलग-अलग है। झारखंड में कोई ऐसा जिला नहीं है, जिसमें अभियान पुलिस के भरोसे चलता हो। हर जिला में सीआरपीएफ के सहयोग से अभियान चलाया जाता है। अगर अभियान के दौरान किसी पुलिसकर्मी की मौत होती है, तो मुआवजा 10 लाख, अगर कोई आम आदमी को नक्सली मारता है,तो उसे एक लाख रुपये दिया जाता है। ढेर सारे हत्याकांडों को अंजाम देने के बाद नक्सलियों पर इनाम भी अलग-अलग है।
सीआरपीएफ के जवान अगर झारखंड में शहीद होंगे, तो उन्हें भी मुआवजा के तौर पर उतनी ही राशि मिलेगी। नक्सलियों को इनाम के रूप में अबतक पांच करोड़ का भुगतान, हो चुका है। सभी को चार-चार डिसमिल जमीन भी दी जाएगी। उस पर करीब 25 करोड़ रुपए खर्च होंगे। अभियान के दौरान 520 पुलिसकर्मियों की मौत हुई है। इनके मुआवजा राशि, वेतन और अन्य सुविधा पर करीब 700 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। वहीं पुलिसकर्मियों को 10 लाख रुपये मुआवजा, इंश्योरेंस के 11 लाख शेष बचे नौकरी की पूरी राशि, परिवार के एक़ सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाती है।
नक्सली हमले में 1300 आम आदमी भी मारे गए हैं। हरेक परिवार के एक सदस्य को एक लाख रुपए मुआवजा, केंद्र का पांच लाख, एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाती है। इस पर अब तक 10 करोड़ रुपये से अधिक की राशि खर्च हो चुके हैं। सीआरपीएफ के 132 कंपनी झारखंड में है। दो बटालियन कोबरा के भी हैं। सरकार को पांच हजार करोड़ रुपए प्रतिनियुक्ति भत्ता देना है। झारखंड पुलिस का सालाना करीब पांच हजार करोड़ रुपए खर्च है। 10 साल में 50 हजार करोड़ का खर्च झारखंड पुलिस का हुआ है। पुलिस आधुनिकीकरण के लिए पिछले 10 सालों में 500 करोड़ खर्च किए गए हैं, वहीं एसआरई योजना के तहत एक हजार करोड़ की राशि खर्च की गई है।
राज्य बनने के बाद पुलिस बल में लगातार वृद्धि हुई। जब राज्य बना था, तो सात जिले नक्सल प्रभावित थे। धीरे-धीरे नक्सलियों का प्रभाव पूरे राज्य में हो गया। दो वर्ष के दौरान नक्सली घटनाओं में कमी हुई, लेकिन पुलिस की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हुई। राज्य बनने के समय 20 हजार पुलिसकर्मी थे। अभी लगभग एक लाख जवान हैं। आकर्षक सरेंडर नीति और लगातार चलाये गए अभियान से राज्य में नक्सलियों की कमर टूट गयी है। सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में विकास कार्य के होने से नक्सली को आम जनता का सहयोग नहीं मिल रहा है। लोग उनकी सच्चाई को धीरे-धीरे जानने लगे हैं। इससे भी नक्सली दिनोंदिन कमजोर हो रहे हैं।
डीजीपी डीके पांडेय ने बताया कि नक्सलियों के सफाये तक अभियान जारी रहेगा। नक्सलियों के अधिकतर गढ़ ध्वस्त कर दिया गया है, जो बचे हैं वह या तो सरेंडर करें या तो गोली खाने को तैयार रहें। उन्होंने कहा कि 2017 के अंत तक राज्य को नक्सल मुक्त कर दिया जायेगा।