वाशिंगटन, (हि.स.)। भारत ने एच-1बी और एल1 वीजा का मुद्दा अमेरिका के सामने बहुत मजबूती से उठाया है और अमेरिकी को समझाया है कि पाबंदियों से उसकी अर्थव्यवस्था के लिए वास्तविक स्थिति कठिन उत्पन्न हो सकती है। ये बातें केंद्रीय वाणिज्य मंत्री सुरेश प्रभु ने कहीं।
उल्लेखनीय है कि अमेरिकी श्रमिकों को रोजगार में तथाकथित भेदभाव और असमान प्रतिस्थापन से बचाने के लिए ट्रंप प्रशासन ने अमेरिकी एच-1 बी और एल-1 वीजा जारी करने के नियम सख्त कर दिए हैं।
अमेरिकी कंपनियां विदेशी पेशेवरों को तय अवधि के काम पर बुलाने के लिए इसी प्रकार के वीजा का इस्तेमाल करती हैं। यह वीजा भारतीय आईटी पेशेवरों में बड़ा लोकप्रिय है। इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था को काफी फायदा भी हुआ है।
अमेरिका-भारत द्विपक्षीय व्यापार नीति मंच (टीपीएफ) की बैठक के बाद केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु ने कहा, “ हमने अमेरिका के सामने दृढ़ता से भारतीय पेशेवरों के और एच-1बी वीजा और एल-1 वीजा के मुद्दे उठाए हैं। इस बैठक में अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि रॉबर्ट लाइटहाइजर भी शामिल थे।”
उन्होंने आगे कहा कि इससे ना केवल भारतीयों को अमेरिका आने में दिक्कत होगी, बल्कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए वास्तविकता का सामना करने में भी कठिनाई होगी, क्योंकि बाहर से आने वाले आईटी पेशेवरों की वजह से अमेरिका की उत्पादकता में सुधार हुआ है।
केंद्रीय मंत्री ने उम्मीद जताई है कि अमेरिकी इस मुद्दे पर गौर करेंगे। उन्होंने भरतीय सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग की ओर से टोटलाइजेश का मामला भी उठाया। टोटलाइजेशन के तहत भारतीय कंपनियां चाहती है कि अल्पकालिक नौकरी पर अमेरिका आने वाले कर्मचारियों से यहां पेंशन कोष जैसी सामाजिक सुरक्षा की योजनाओं के लिए कटौती नहीं की जाए, क्योंकि वे अंशदान देने के बावजूद यहां उसका लाभ नहीं उठा सकते हैं।
वाणिज्य मंत्री सुरेश प्रभु की अमेरिका यात्रा के दौरान भारत और अमेरिका ने द्विपक्षीय व्यापार में विविधता लाने और बढ़ते हुए व्यापार घाटे के मुद्दों पर भी ध्यान देने के लिए सहमत हुए हैं।
प्रभु ने अमेरिका से आम और अनार के निर्यात की प्रक्रियाओं को भी आसानी बनाने की मांग की है। वाणिज्य मंत्री ने अमेरिकी कंपनियों से भारत में मेक इन इंडिया नीति का लाभ उठाने के लिए भारत में विनिर्माण इकाइयां लगाने की अपील की।