वाशिंगटन, (हि.स.)। अमेरिका ने पाकिस्तान में शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण का विचार व्यक्त किया है। ट्रंप प्रशासन की कोशिश होगी कि पाकिस्तान में एक ऐसी सरकार का गठन हो, जो उसके क्षेत्रीय हितों के मद्देनजर एक ओर भारत तथा दूसरी ओर अफगानिस्तान के साथ मिलकर आतंकवाद पर अंकुश लगाने में सफल हो।
अमेरिका को एक ऐसा अवसर मिला है, जब वह पाकिस्तान की नई सरकार पर दबाव बना सकता है। पेंटागन की सिफारिश के बावजूद व्हाइट हाउस ने अफगानिस्तान में अभी तक पांच हजार अमेरिकी सैनिक नहीं भेजे हैं।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद शुक्रवार को नवाज शरीफ सरकार के पतन के साथ ही पेंटागन और अमेरिकी विदेश मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों के कान खड़े हो गए। खास तौर पर उस स्थिति में जबकि अफगानिस्तान में अमेरिकी सुरक्षा हित जुड़े हों। नवाज शरीफ के जाने के बाद अमेरिकी सुरक्षा अधिकारियों को लगता है कि ऐसी स्थिति में पाकिस्तान के जनरल कमर जावेद बाजवा की स्थिति मजबूत होगी और उनकी भूमिका में सुधार होगा। इसका एक कारण यह बताया जा रहा है कि सही मायने में सेना के हाथों में ज्यादा शक्तियां हैं और आणविक हथियारों की कुंजी भी सेना के हाथों में होती है।
जनरल बाजवा के अमेरिकी राजनयिकों और सुरक्षा अधिकारियों से बेहतर संबंध हैं। वह पिछले ही सप्ताह अफगानिस्तान में अमेरिकी जनरल जान डब्ल्यू निकल्सन और पाकिस्तान में अमेरिकी राजदूत से मिल चुके हैं।
हालांकि तब जनरल बाजवा ने अफगानिस्तान में आतंकी घटनाओं में अमेरिकी और अफगानी हितों पर चोट के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराए जाने पर असहमति जताई थी। अमेरिकी सुरक्षा अधिकारियों की मान्यत है कि पाकिस्तान में शांति पूर्ण सत्ता हस्तांतरण नहीं होता है तो इसका असर अफगानिस्तान ही नहीं भारत पर भी पड़ सकता है।
अमेरिका की कोशिश होगी कि दक्षिण एशिया में शांति बनी रहे और आतंकवाद पर अंकुश स्थापित हो सके। नवाज शरीफ सरकार इन दोनों मायनों में असफल रहे हैं, जिसकी वजह से उन्हें सऊदी अरब से दुत्कार तो मिली ही है, ट्रंप प्रशासन का भी मानना रहा है कि वह सरहद पार आतंकी घटनाओं पर अंकुश लगा पाने में विफल रहे है।
अमेरिकी विदेश मंत्रालय में दक्षिण और सेंट्रल एशिया की एक्टिंग असिस्टेंट सचिव एलिस वेल्स आज एक सप्ताह के लिए पाकिस्तान और भारत के दौरे पर रवाना हो गए। हालांकि कहा तो यह जा रहा है इस दौरे में दोनों देशों के नेताओं और वरिष्ठ अधिकारियों से परिचय तथा जानकारियां हासिल करना है, लेकिन सच्च यह भी है कि ट्रंप प्रशासन दक्षिण एशिया पर एक ऐसी रणनीति बनाए जाने की कोशिश में है उसके शासन में जैश-ए-मुहम्मद और अल कायदा जैसे आतंकी संगठनों को पाकिस्तानी जमीं पर पनपने का मौका मिला है। यही नहीं, आतंकवाद के खिलाफ साझी लड़ाई में दो अरब डालर डकार लेने के बावजूद पाकिस्तानी शासक हक्कानी नेटवर्क पर अंकुश लगा पाने में विफल रहे हैं। इस संदर्भ में अमेरिका ने हाल ही में वर्ष 2016 के खाते के 2275 करोड़ रुपये भी रोक लिए हैं।