वाशिंगटन, (हि.स.)। ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों की सेना में भर्ती पर रोक अमेरिकी मीडिया में एक बड़ा मुद्दा बन गया है। न्यूयार्क टाइम्स सहित अमेरिका के सभी बड़े समाचार पत्र, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सोशल मीडिया में इस मुद्दे को ओबामा की मौजूदा नीति में बदलाव और मानवीय पहलुओं के साथ जोड़ कर देखा जा रहा है। कांग्रेस में सत्तारूढ़ रिपब्लिकन और पेंटागन ने भी इस फैसले पर आश्चर्य जताया है।
वहीं ट्रांसजेंडर समुदाय ने तो एक जुट हो कर मामले को अदालत में ले जाने की बात की है। इस पर पेंटागन ने कहा है कि अभी तक इस दिशा में कोई स्पष्ट दिशा निर्देश नहीं हैं। पेंटागन प्रवक्ता ने कहा है कि रक्षा मंत्री खुद इस मुद्दे की समीक्षा करेंगे।
उल्लेखनीय है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार की सुबह ट्वीट कर कहा था कि अब ट्रांसजेंडर सेना में किसी भी पद पर नियुक्त नहीं हो सकेंगे। इसका कारण बताया गया था कि अमेरिकी सेना ट्रांसजेंडर थेरेपी पर होने वाले व्यय का वहन करने को तैयार नहीं है।
इस संदर्भ में राष्ट्रपति ने सेना के जनरल और विशेषज्ञों से सलाह मशविरा किए जाने के भी संकेत दिए थे। लेकिन इसको लेकर सिलिकॉन वैली की बड़ी कंपनियां, खासतौर पर गूगल के भारतीय मूल के सीईओ सुंदर पिचई, एपल के टिम कुक और माइक्रोसाफ्ट के सीईओ ने इस निर्णय की निंदा की थी।
वाशिंगटन पोस्ट ने रैंड संस्थान की विशेषज्ञ राधा आयंगार के एक अध्ययन के हवाले से कहा है कि सेना में हेल्थ केयर बजट में ट्रांसजेंडर पर मेडिकल व्यय के एक प्रतिशत का दसवां हिस्सा आवंटित है। अमेरिका में तेरह लाख ट्रांसजेंडर बताए जाते हैं, जिनमें कुछ हजार ही सेना में हैं। इनमें भी कुछ को ही मामूली शल्य क्रिया अथवा थेरेपी की जरूरत पड़ती है।