दोहा, (हि.स.)। अरब देशों के साथ राजनयिक संबंध सामान्य बनाने के लिए कतर अपनी वैश्विक नीति का समर्पण नहीं करने का संकल्प लिया है। यह जानकारी शुक्रवार को मीडिया रिपोर्ट से मिली।
समाचार एजेंसी रॉयटर के अनुसार, क़तर के विदेश मंत्री शेख मोहम्मद बिन अब्लुरहमान अल थानी ने कहा है कि वे बढ़ते हुए संकट राजनीतिक हल के पक्षधर थे और इसके सैन्य समाधान नहीं थे। उन्होंने कहा, "हमें इसलिए अलग थलग किया जा रहा है, क्योंकि हम सफल और प्रगतिशील हैं। हम शांति समर्थक हैं। हम आतंकवाद के समर्थक नहीं हैं और हम समर्पण के लिए तैयार हैं और कभी भी अपनी वैश्विक नीति की स्वतंत्रता का समर्पण नहीं करेंगे।"
बीबीसी के अनुसार, ये पूरा क्षेत्र राजाओं और अमीरों का है जो सामान्य तौर पर स्थानीय स्तर पर इतनी पकड़ रखते हैं कि वह सत्ता के लिए खतरा बनने वाले किसी भी विरोध के स्वर को कुचल सकते हैं। लेकिन क़तर के अमीर उन नीतियों पर चलते हैं जो सामान्यत: सुन्नी इस्लाम के सुपरपॉवर सऊदी अरब के संकीर्ण खांचे में फिट नहीं होती है।
सऊदी अरब को क़तर की बातचीत करने की नीति सुन्नी एकता के लिए संकट दिखाई पड़ती है, क्योंकि क़तर के अमीर और उनके मंत्री शिया मुस्लिम देश ईरान के साथ बातचीत और बेहतर संबंधों का पक्षधर हैं। सऊदी अरब इस नीति का धुर विरोधी है। अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के सऊदी राजा सलमान के पक्ष में होने की बात सामने आने के बाद सऊदी अरब क़तर के खिलाफ शत्रुता को कार्रवाई में बदलना चाहता है। लेकिन रूस के इस मामले में पड़ने से समाधान की कोशिशें मुश्किल हो सकती हैं।
विदित हो कि सऊदी अरब ने क़तर के सामने जमीन और हवाई क्षेत्र पर लगाए गए प्रतिबंधों को हटाने की शर्त रखी है। सऊदी विदेश मंत्री अदेल अल-ज़ुबैर ने कहा है अगर क़तर समाधान चाहता है तो उसे कब्जे वाले क्षेत्रों में फिलिस्तीन इस्लामी संगठन हमास और मिस्र में मुस्लिम ब्रदरहुड से संबंध तोड़ने होंगे।
इसी बीच तुर्की ने क़तर के समर्थन में सैन्य मदद देने के लिए कानून पास किया है। क़तर में अमरीका का सबसे बड़ा एयरबेस भी है। यही वजह है कि अमरीकी राष्ट्रपति ने सऊदी अरब के राजा सलमान को फोन करके उनसे खाड़ी देशों में एकता लाने का आग्रह किया। हालांकि, राष्ट्रपति ट्रंप पहले क़तर पर दवाब डाले जाने का श्रेय ले चुके हैं।