वाशिंगटन, (हि.स.)। अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने जलवायु परिवर्तन पर हुए पेरिस समझौता से अलग होने की घोषणा करते हुए कहा कि नए सिरे से एक समझौता किया जाएगा जिसमें अमेरिकी हितों की रक्षा करना उनका मकसद होगा। यह जानकारी शुक्रवार को मीडिया रिपोर्ट से मिली।
समाचार एजेंसी रॉयटर के अनुसार, राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि वह एक ऐसा समझौता करना चाहेंगे जो अमरीका के औद्योगिक हितों की रक्षा करता हो और लोगों की नौकरियां बचाता हो। उल्लेखनीय है कि पिछले साल राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव अभियान के दौरान उन्होंने मतदाताओं से चुनाव जीतने पर अमरीका को जलवायु परिवर्तन समझौते से बाहर करने का वादा किया था। उन्होंने कहा कि पेरिस समझौता कर अमेरिका दूसरे को फायदा पहुंचाने के लिए खुद के हितों को नुक्सान पहुंचाया है और देश आज से ही गैर बाध्यकारी पेरिस समझौते को लागू करना बंद कर देगा।
ट्रंप ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र का हरित जलवायु कोष अमरीका से धन हथियाने की धोखाधड़ी है और अरबों डॉलर के इस फ़ंड को वह तुरंत ख़त्म कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अमरीका के पास अपना व्यापक ऊर्जा स्रोत है और अमरीका दूसरे देशों पर निर्भर रहे बिना अपनी ऊर्जा ज़रूरतें पूरी कर सकता है।
ट्रंप ने कहा कि पेरिस समझौता चीन और भारत जैसे देशों को फ़ायदा पहुंचाता है। यह समझौता अमरीका की संपदा को दूसरे देशों में बांट रहा है। भारत अरबों डॉलर की विदेशी मदद लेकर समझौते में शामिल हुआ है। इससे उनके देश के तेल और कोयला उद्योग को मदद मिलेगी। उधर, उनके विपक्षियों का कहना था कि समझौते से अलग होना एक अंतरराष्ट्रीय चुनौती के सामने अमरीकी नेतृत्व का समर्पण होगा। इससे पहले संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने ट्रंप से पेरिस समझौता नहीं तोड़ने की अपील की थी। हालांकि गुटेरस ने यह भी कहा था कि अमरीका के अलग हो जाने के बावजूद जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ लड़ाई जारी रहेगी।
बीबीसी के अनुसार, गुटरेस ने कहा, "ज़ाहिर तौर पर यह बहुत अहम फ़ैसला है, क्योंकि अमरीका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।" उन्होंने आगे कहा, "पेरिस समझौता हमारे साझा भविष्य के लिए बेहद अहम है और अन्य समाजों की तरह, अमरीकी समाज के लिए भी महत्वपूर्ण है कि वह पेरिस समझौते को बरकरार रखने के लिए एकजुट हो।" इसी बीच, चीन और यूरोपीय संघ के नेता पेरिस समझौते को बरक़रार रखने के लिए साझा बयान पर तैयार हो गए हैं।
बयान के मसौदे में कहा गया है कि, "बढ़ते हुए तापमान से राष्ट्रीय सुरक्षा प्रभावित होती है और सामाजिक और राजनीतिक अस्थिरता आती है। स्वच्छ ऊर्जा इस्तेमाल करने से अधिक नौकरियां पैदा होती हैं और आर्थिक विकास होता है।"