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रांगेय राघव यानी हिंदी के शेक्सपीयर
By Deshwani | Publish Date: 16/1/2017 2:34:03 PM
रांगेय राघव यानी हिंदी के शेक्सपीयर

वेद प्रकाश 

आईपीएन/आईएएनएस। आलौकिक प्रतिभा के धनी तमिल भाषी, लेकिन हिंदी साहित्य के धरोहर रांगेय राघव के कविता संग्रह ’मेधावी’ से जो परिचित नहीं हैं, उन्हें ये पंक्तियां जरूर यह बता देंगी कि रांगेय राघव किस मिजाज के कवि थे: “गहन कालिमा के पट ओढ़े

विकल विकल सी रात रो रही
दूर क्षीण तारों में कोई
टिमटिम करती बात हो रही..“
हिंदी के शेक्सपीयर कहे जाने वाले रांगेय राघव मूल रूप से तमिल भाषी थे। 1942 में बंगाल में आई अकाल पर लिखी गई उनकी रिपोर्ट ’तूफानों के बीच’ काफी चर्चित रही। उन्होंने कई विदेशी भाषाओं, जैसे जर्मन और फ्रांसीसी साहित्यकारों की रचनाओं का हिंदी में अनुवाद किया। राघव द्वारा की गई शेक्सपीयर की रचनाओं का हिंदी अनुवाद मूल रचना सी प्रतीत होती है, जिसके कारण उन्हें ’हिंदी के शेक्सपीयर’ की संज्ञा दी गई।
हिंदी साहित्य के विलक्षण कवि रांगेय राघव मूल रूप से तमिल भाषी थे। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में 17 जनवरी, 1923 को हुआ। राघव का मूल नाम तिरुमल्लै नंबाकम वीर राघव आचार्य था, लेकिन उन्होंने अपना साहित्यिक नाम ’रांगेय राघव’ रखा। उनके पिता का नाम रंगाचार्य और माता कनकवल्ली थी। इनका विवाह सुलोचना से हुआ था।
कहा जाता है कि उनके पिता के पूर्वज लगभग 300 साल पहले आकर जयपुर और भरतपुर के गांवों में रहने लगे थे। उनकी शिक्षा-दीक्षा आगरा में हुई। उन्होंने 1944 में ’सेंट जॉन्स कॉलेज’ से स्नातकोत्तर और 1949 में ’आगरा विश्वविद्यालय’ से गुरु गोरखनाथ पर शोध करके पीएचडी की डिग्री ली थी। उन्हें हिंदी, अंग्रेजी, ब्रज और संस्कृत के साथ-साथ पर तमिल और तेलुगू भाषा का भी अच्छा ज्ञान था।
रांगेय राघव ने साहित्य के क्षेत्र में अपनी शुरुआत कविता से की, लेकिन उन्हें पहचान मिली गद्य लेखक के रूप में। उनका पहला उपन्यास ’घरौंदा’ मात्र 23 वर्ष की उम्र में प्रकाशित हुआ, जिस पर उनकी पत्नी सुलोचना ने लिखा, “पढ़ने में अच्छे होने के बावजूद भी अर्थशास्त्र में उन्हें कपार्टमेंट आया। इसका पता बाद में चला जब ’घरौंदा’ तैयार हो गया। अर्थशास्त्र की क्लास जाने के बजाए वह कॉलेज प्रांगन में ’घरौंदा’ लिखने में व्यस्त रहते थे।“ यह उनका पहला मौलिक उपन्यास है, जिसे उन्होंने महज 18 की उम्र में लिखा था।
इसके बाद उनके कई उल्लेखनीय उपन्यास लिखे, जिनमें ’कब तक पुकारूं’, ’विषाद-मठ’, ’मुर्दो का टीला’, ’सीधा-साधा रास्ता’, ’अंधेरे का जुगनू’ और ’बोलते खंडहर’ आदि मुख्य हैं। उनकी रची प्रत्येक कृति बेजोड़ है।
वर्ष 1957 में प्रकाशित उनकी सबसे चर्चित उपन्यास ’कब तक पुकारूं’ और कहानी ’गदल’ वर्ण-व्यवस्था और लैंगिक मतभेद जैसी सामाजिक विकृतियों पर आधारित है। एक प्रसंग में राघव कहते हैं, “यह जात-पात सब आदमी के बनाए बंधन हैं। दुनिया में एक मुल्क अमेरिका है, जहां काले हब्सी रहते हैं। उन पर अत्याचार होता है, क्योंकि वहां के बाकि हुकूमत करने वाले लोग गोरे रंग के हैं।“
उन्होंने केवल 39 वर्ष की अवस्था में कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, रिपोर्ताज के अलावा आलोचना, संस्कृति और सभ्यता पर कुल मिलाकर 150 से अधिक पुस्तकें लिखीं।
रांगेय राघव ने हिंदी कहानी को भारतीय समाज के उन धूल-कांटों भरे रास्तों, भारतीय गांवों की कच्ची और कीचड़-भरी पगडंडियों से परिचित कराया, जिनसे वह भले ही अब तक पूर्ण रूप से अपरिचित न रहे हो पर इस तरह घुले-मिले भी नहीं थे।
रांगेय राघव को उनके असाधारण कृतियों के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। 1947 में उन्हें हिंदुस्तानी अकादमी पुरस्कार, 1954 में डालमिया पुरस्कार, 1957 और 1959 में उत्तर प्रदेश शासन पुरस्कार, 1961 में राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार और 1966 में मरणोपरांत महात्मा गांधी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
राघव को सिगरेट पीने का बहुत शौक था। वह हमेशा ’जानपील’ नाम की सिगरेट पीते रहते थे, दूसरी सिगरेट को हाथ तक नहीं लगाते। उनके लिखने की मेज पर सिगरेट की कई डिब्बियां रखी रहती थीं। उनका कमरा सिगरेट की गंध और धुएं से भरा रहता था। सिगरेट उनकी आवश्यकता बन गई थी। बिना सिगरेट के वह कुछ भी करने में असमर्थ थे। 1962 में सिगरेट पीने की आदत के कारण ही हिंदी के इस विलक्षण साहित्यकार का निधन हो गया।
रांगेय राघव के बारे में कई लेखकों के अलग-अलग दृष्टिकोण रहे हैं। प्रसिद्ध लेखक राजेंद्र यादव ने राघव के बारे में कहा, “उनकी लेखकीय प्रतिभा का ही कमाल था कि सुबह यदि वे आद्यैतिहासिक विषय पर लिख रहे होते थे तो शाम को आप उन्हें उसी प्रवाह से आधुनिक इतिहास पर टिप्पणी लिखते देख सकते थे।“
दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राध्यापक विभास चंद्र वर्मा ने कहा कि आगरा के तीन ’र’ का हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान है और ये हैं रांगेय राघव, रामविलास शर्मा और राजेंद्र यादव। 
वर्मा ने कहा, “रांगेय राघव हिंदी के बेहद लिक्खाड़ लेखकों में शुमार रहे हैं। उन्होंने करीब करीब हर विधा पर अपनी कलम चलाई और वह भी बेहद तीक्ष्ण ²ष्टि के साथ। उनकी रचनाओं में स्त्री पात्र अत्यंत मजबूत होती थी और लगभग पूरी कहानी उनके इर्द-गिर्द घूमती थी। 
सिंधु घाटी सभ्यता के एक प्रमुख केंद्र मोहनजोदड़ो पर आधारित उनका काल्पनिक उपन्यास ’मुर्दो का टीला’ से लेकर कहानी तक में स्त्री पात्र कहानी की मुख्य बिंदु होती थी। साथ ही स्त्री के चिंतन विश्व को दर्शाती उनकी कृतियां ’रत्ना की बात’, ’लोई का ताना’ और ’लखिमा की आंखें’ बेमिसाल हैं।
हिंदी साहित्य का यह योद्धा मात्र 39 वर्ष की उम्र में हिंदी साहित्य को विरान कर गया। 12 सितंबर, 1962 को मुंबई में रांगेय राघव का निधन हो गया। इनकी अद्भुत रचना ने हिंदी साहित्य में कई कृतिमान स्थापित किए। हिंदी साहित्यकारों की कतार में अपने रचनात्मक वैशिष्ट्य और सृजन विविधता के कारण वे हमेशा स्मरणीय रहेंगे।
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