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अदालतों-अस्पतालों पर लगे लगाम : डॉ. वेद प्रताप वैदिक
By Deshwani | Publish Date: 14/2/2017 2:58:13 PM सर्वोच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश जे चेलमेश्वर ने एक नए कोर्ट-भवन का उद्घाटन करते हुए बड़े पते की बात कही। उन्होंने कहा कि किसी भी देश में नए-नए अस्पतालों और अदालतों का खुलते जाना कोई आदर्श स्थिति नहीं है। आज तक किसी डाक्टर या जज ने ऐसी बात कभी कही है, क्या? इस उलटबासी को कहने का सही अर्थ आप नहीं लगा पाएंगे तो आप शायद सोचने लगेंगे कि यह कैसा जज है? यह अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार रहा है? उनके ऐसा कहने का असली मंतव्य यह है कि देश के लोगों को आदतन कानून का पालन करना सिखाया जाना चाहिए और अपने स्वास्थ्य के प्रति सदा सचेत रहना चाहिए। यदि ऐसा हो तो कानूनी झगड़े कम से कम होंगे और कम से कम लोग बीमार पड़ेंगे। ऐसी स्थिति में अदालतों और अस्पतालों की भरमार भी घट जाएगी। आज अदालतें और अस्पताल लूट-पाट के सबसे बड़े अड्डे बन गए हैं।
वकील लोग एक-एक मुकदमे की फीस लाखों-करोड़ों में लेते हैं। उन पर किसी तरह की कानूनी पाबंदी नहीं है। इसी तरह गैर-सरकारी अस्पताल तो अदालतों से भी ज्यादा निर्मम लूट-पाट करते हैं, क्योंकि वहां लुटने वाले को अपनी जान की पड़ी रहती है। तीसरी संस्था, जो जमकर लूट-पाट कर रही है, वह है, गैर-सरकारी शिक्षा संगठन ! इन तीनों संस्थाओं को सुधारने के लिए सरकार क्या-क्या ठोस कदम तुरंत उठा सकती है, यह मैं पहले लिख चुका हूं लेकिन सरकारें चलाने वाले नेताओं का मन उन्हीं कामों में लगता है जिनसे उन्हें नोट और वोट मिलें। इसलिए अभी सरकार को हम अपने गोरखधंधे में लगे रहने दें। हम तो अपनी बात करें।
जनता क्या करे? जनता को चाहिए कि वह मनस्थिति पर जोर दे। बचपन से ही बच्चों को खेल, व्यायाम और स्वास्थ्यप्रद भोजन के सुद्दढ़ संस्कार दे। वे क्यों तो बीमार पड़ेंगे और क्यों अस्पताल जाएंगे? इसी प्रकार यदि सत्यनिष्ठ जीवन के संस्कार मिलेंगे तो ऐसे बच्चों को अदालत की शरण में जाने की जरूरत बहुत कम पड़ेगी। अगर पड़ेगी भी तो वे सारा मामला बातचीत से सुलझाने की कोशिश करेंगे। अस्पतालों और अदालतों को खत्म नहीं किया जा सकता लेकिन उनकी जरूरत को घटाया तो जा ही सकता है।