बसपा में मायावती के एकाधिकार या वर्चस्व पर किसी को गलतफहमी नहीं हो सकती। किसी अन्य नेता के लिए यहां अलग पहचान बनाना दुर्लभ होता है। पार्टी स्थापना से लेकर आज तक यही सिलसिला चल रहा है। कई नेताओं ने अलग पहचान बनाने का प्रयास किया। उन्हेे लग रहा था कि पार्टी की स्थापना में उनका भी योगदान रहा है। उन्होंने संस्थापक कांशीराम के साथ मिलकर सहयोग व संघर्ष किया। यही एहसास उनकी सियासत पर भारी पड़ गया। उन्होंने उभरने या अलग पहचान बनाने का प्रयास किया, मायावती ऐसी बातें बर्दाश्त नहीं करतीं।
अन्ततः ऐसे अनेक नेता गुमनामी में चले गए। कांशीराम के साथ कार्य कर चुके लोगों को आज बसपा में तलाशना व्यर्थ है। इस इतिहास में स्वामी प्रसाद मौर्य अपवाद स्वरूप चंद नामों में शामिल हैं, जिन्होंने बसपा में अलग पहचान बनाई। इतना ही नहीं जमीनी स्तर पर मायावती के बाद उन्हीं का स्थान था। इस मामले में वह मायावती से भी एक कदम आगे थे। मायावती के बारे में एक तथ्य सभी जानते हैं। सत्ता के दौरान लखनऊ या उत्तर प्रदेश में रहती थीं। यह उनकी संवैधानिक विवशता भी थी, लेकिन जैसे ही वह सत्ता से अलग होती थीं, उनका अपने ही प्रदेश से मोहभंग जैसा हो जाता था। तब दिल्ली में ही उनका ज्यादा समय बीतता था। संघर्ष की इस अवधि में स्वामी प्रसाद मौर्य ही बसपा का झंड़ा बुलंद रखते थे। मायावती तो चुनाव घोषित होने के बाद उत्तर प्रदेश में सक्रिय होती थीं। इस हैसियत में मौर्य ने दलितों व पिछड़ों के बीच काम किया। वह कहते हैं कि बसपा छोड़ने से पहले उन्होंने तीन बार मायावती से वार्ता की। टिकट देने के संबंध में जो आरोप लगते रहे, उन पर मौर्य ने भी अपत्ति दर्ज कराई। उसके बाद ही उनका पार्टी में रहना असंभव हो गया। स्वामी प्रसाद मौर्य स्वीकार करते हैं कि बसपा छोड़ने के बाद उन्होंने अपने राजनीतिक भविष्य पर चिंतन के साथ समर्थकों से विचार विमर्श किया। उनका सम्मेलन बुलाया। सबका निष्कर्ष एक था।
डा. भीमराव अम्बेडकर व कांशीराम के बाद वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी में ही इन सबको उम्मीद नजर आयी। मोदी स्वयं अति पिछड़े समाज से हैं, उन्होंने गरीबी देखी है। संघर्ष करके आगे बढ़े हैं। अम्बेडकर व कांशीराम ने वंचितों का जीवन स्तर उठाने का कार्य किया। मोदी भी इस रास्ते पर चले। अम्बेडकर-कांशीराम ने वंचित समाज के लिए निजी जीवन के वैभव और सुख-सुविधाओं का त्याग किया था। मोदी ने भी ऐसे ही त्यागपूर्ण जीवन को अपनाया। इतना ही नहीं, मोदी ने पद संभालने के कुछ ही महीने में डाॅ. अम्बेडकर के जीवन से जुडे़ पांच तीर्थों को भव्यता प्रदान की। दशकों से इन पर कोई कार्य नहीं हुआ था। मुम्बई, इंदौर, दिल्ली के अलावा लन्दन तक में ऐसे तीर्थ बना दिए गये हैं। उज्ज्वला योजना, कौशल विकास, मुद्रा योजना, स्टार्ट अप आदि सभी में दलितों को उनकी आबादी के अनुरुप स्थान दिया गया। यह वह कारण है, जिनके कारण स्वामी प्रसाद मौर्य प्रधानमंत्री के मुरीद हुए।