ब्रेकिंग न्यूज़
मोतिहारी के केसरिया से दो गिरफ्तार, लोकलमेड कट्टा व कारतूस जब्तभारतीय तट रक्षक जहाज समुद्र पहरेदार ब्रुनेई के मुआरा बंदरगाह पर पहुंचामोतिहारी निवासी तीन लाख के इनामी राहुल को दिल्ली स्पेशल ब्रांच की पुलिस ने मुठभेड़ करके दबोचापूर्व केन्द्रीय कृषि कल्याणमंत्री राधामोहन सिंह का बीजेपी से पूर्वी चम्पारण से टिकट कंफर्मपूर्व केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री सांसद राधामोहन सिंह विभिन्न योजनाओं का उद्घाटन व शिलान्यास करेंगेभारत की राष्ट्रपति, मॉरीशस में; राष्ट्रपति रूपुन और प्रधानमंत्री जुगनाथ से मुलाकात कीकोयला सेक्टर में 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को 9 गीगावॉट से अधिक तक बढ़ाने का लक्ष्य तय कियाझारखंड को आज तीसरी वंदे भारत ट्रेन की मिली सौगात
फीचर
वादों पर बढ़त
By Deshwani | Publish Date: 3/2/2017 4:23:01 PM
वादों पर बढ़त

डाॅ. दिलीप अग्निहोत्री

आईपीएन। यह सही है कि किसी पार्टी का पूरा चुनावी घोषणा पत्र लोगों के बीच चर्चित नहीं होता, लेकिन कई बार उसकी कुछ खास बातों की ओर लोगों का ध्यान जाता है। यह अलग दिखने वाले आकर्षित करते हैं। तामिलनाडु की राजनीति में यह यह नजारा खूब देखा जाता था। वहो भी सौगात के चुनावी वादे अक्सर हार-जीत का फैसला कर देत थे। बाद में यह प्रवृत्ति अन्य राज्यों में भी दिखाई देने लगी है।

उत्तर प्रदेश में पिछले विधानसभा चुनाव में इसी आधार पर समाजवादी पार्टी ने बढ़त बनायी थी। उस समय भी उसका पूरा घोषणा पत्र किसी ने नहीं पढ़ा होगा, लेकिन विद्यार्थियों को टैबलेट, लैपटाॅप, बेरोजगारी भत्ता जैसे वादों ने आमजन के दिल दिमाग में जगह बना ली थी। खास तौर पर पहली बार मतदाता बने तथा अन्य युवकों को इन वादों ने लुभाया था। इसके अलावा लैपटाॅप, टैबलेट की बातों ने समाजवादी पार्टी के परंपरागत वैचारिक स्वरूप में भी बड़ा बदलाव किया था।

मुलायम सिंह यादव के समय में आधुनिक तकनीक को महत्व नहीं मिला था। ऐसे में लैपटाॅप, टैबलेट के वादे ने असर दिखाया। सपा के प्रति युवा वर्ग का समर्थन बहुत बढा। उसे पूर्ण बहुमत मिलने में चुनावी घोषणा पत्र के दो तीन वादों का बडा़ योगदान था। ये बात अलग है कि सत्ता में आने के बाद पहली बार तो सरकार ने अपने वादों के अनुरूप लैपटाॅप बाॅटे, लेकिन बाद में शर्तें लागू कर दी गयीं,  यही बेरोगारी भत्ते के साथ किया गया। टैबलेट देने का वादा घोषणा पत्र से बाहर ही नहीं निकला, लेकिन यह तो मानना होगा कि पिछले विधान सभा चुनाव में सपा को बहुमत मिलने के पीछे घोषणा पत्र के चंद वादों का योगदान था।

दूसरे शब्दों में वादों के आधार पर सपा ने अन्य पार्टियों पर बढ़त बना ली थी। बाद में अन्य पार्टीयों ने अपने-अपने ढंग से  वादे किए थे, लेकिन ये सभी इस मामले में सपा से पीछे रह गयी थी। उसका लैपटाॅप, टैबलेट, बेरोजगारी भत्ते का वादा असर बना चुका था। इसे तोड़ने में अन्य पार्टियां विफल रही थीं। इस बार भी सपा ने वादों में कमी नहीं रखी। लेकिन पांच साल तक पूर्ण बहुमत की सरकार चलाने वालों कि जबावदेही ज्यादा होती है। वादा करते समय सभी इण्टर पास छात्रों को लैपटाॅप, हाई स्कूल पास करने वालों को टैबलेट देने कि बात कहीं गयी थी।

हाईस्कूल पास करने वाले तो पूरी तरह वंचित रहें। वह टैबलेट की शक्ल भी नहीं देख सके। बाद में लैपटाॅप भी परीक्षा में श्रेष्ठता दिखाने वाले छात्रों को ही देने का फैसला लिया गया। बेरोजगारी भत्ते में भी उम्र आदि की सीमा लगायी गयी। जो चुनावी वादों में नहीं था, लेकिन इस बार सपा का घोषणा पत्र अपना प्रभाव नहीं जमा सका। चुनाव के समय बिना षर्त वादे किये गए। सत्ता में आने के बाद उनके नीचे लिख दिया गया-शर्तें लागू इससे अविश्वास उत्पन्न होता हैं। यह उन वादों कि स्थिति थी जिन्होंने सपा को सत्ता में पहुंचाया था।

वैसे सपा में वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर नीचले स्तर का नेता एक डेढ़ साल पहले से कह रहा है कि सारे वादे पूरे कर लिए, अब नये इरादे हैं। किन्तु आत्म प्रषंसा के ये बोल केन्द्र की पूर्व राजग सरकार के शाइनिंग इण्डिया व फील गुड़ नारे की भांति है। इन दावों ने 2004 के चुनाव में राजग को नुकसान पहुंचाया था। जबकि वह सरकार अच्छी थी, लेकिन इण्डिया शाइनिंग फील गुड़ के दावे जल्दबाजी में किए गए। आमजन उनसे सहमत नहीं हो सका। बिल्कुल इसी तरह सपा के घोषणा पत्र इस बार लोगों ने ध्यान नहीं दिया। कांगेस व बसपा घोषणा पत्र के मामले में पीछे ही रहती है। कांग्रेस इस बार सपा की बी टीम के रूप में चुनाव मैदान में हैं। वह मात्र 105 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। ऐसे में वादों, घोषणाओं का कोई मतलब नहीं है।

बसपा कहती है कि वह कभी चुनावी घोषणा पत्र जारी नही करती। यह बात केवल तकनीकि रूप से सही है। वह लिखित पत्रिका भले ही जारी ना करती हो, लेकिन बडी़ चालाकी से कुछ घोषणायें करती अवश्य हैं, ये चुनावी वादे होते हैं। घोषणा पत्र जारी करने वाले दल भी दो-चार से ज्यादा वादे चर्चा में नहीं ला पाते। मायावती यही काम बिना घोषणा पत्र जारी किए कह देती हैं। इस बार भी उन्होंने ऐसा ही किया। उन्होंने कहा कि वह लैपटाॅप, टैबलेट, कूकर आदि की जगह नगद धनराशि देंगीं। ऐसे में पहले यह गलतफहमी निकाल देनी चाहिए कि मायावती घोषणा पत्र जारी नहीं करती। इसकर स्वरूप अवष्य पुस्तिका के रूप में नही होता। वह मायावती के भाषणों में ही लिखा जाता है, लेकिन नगद धन देने का वादा भी असर नहीं दिखा सका। इसका कारण शायद यह हो सकता है कि मायावती की बहुमत वाली सरकार धनराशि के मामले में साफ छवि नहीं बना सकी थीं। कहा जा सकता है कि घोषणा पत्र के मामले मे पिछले चुनाव में सपा ने बढ़त बनाई थी, लेकिन इस बार भाजपा ने बाजी मारी है। उसके घोषणा पत्र में प्रायः सभी वर्गों को आकर्षित किया है। भाजपा के घोषणा पत्र में लैपटाॅप का वादा है। यह नए ढंग से पेष किया गया। कहा गया कि काॅलेज मे प्रवेश लेते समय ही विद्यार्थियों को लैपटाॅप दिया जाएगा। इसके साथ ही प्रतिमाह एक जीबी इन्टरनेट डाटा मुुुफ्त दिया जायेगा। गरीब परिवार की बेटी के जन्म पर पचास हजार का ब्राण्ड दिया जायेगा। इसी प्रकार  किसान, गांव, कौशल विकास, बुन्देलखण्ड पर अलग से वादे किये गए हैं। कौशल विकास को परिवारों से लेकर प्रत्येक तहसील के केन्द्र तक से जोड़ा गया। लघु एवं सीमांत किसानों का फसली ऋण माफ करने और बिना ब्याज के कर्ज देने का वादा भी ग्रामीण क्षेत्र में चर्चा का विषय बना है। चुनाव में किसको कितना फायदा मिलेगा, यह तो परिणाम आने के बाद पता चलेगा। लेकिन इतना तय है कि इस बार भाजपा ने वादों के मामलों में बाजी मारी है।

(लेखक वरिष्ठ स्तम्भकार हैं।)

image
COPYRIGHT @ 2016 DESHWANI. ALL RIGHT RESERVED.DESIGN & DEVELOPED BY: 4C PLUS