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सिर्फ अंग्रेजी नहीं बोलने की कमी बन गयी प्यार पाने में बाधा
By Deshwani | Publish Date: 19/5/2017 3:43:54 PM
सिर्फ अंग्रेजी नहीं बोलने की कमी बन गयी प्यार पाने में बाधा

 मुंबई, (हि.स.) । काय पोचे, थ्री इडियटस, 2 स्टेटस के बाद चेतन भगत के नॉवेल पर बनी एक और फिल्म हाफ गर्लफ्रेंड, जिसमें एक के बाद एक कई मुद्दों को लेकर एक ऐसा घालमेल हो गया, जिससे ये फिल्म बिखरी और बिखरती चली गई। 

ये कहानी दिल्ली की है। बिहार के छोटे से गांव से दिल्ली पढ़ाई आए माधव झा (अर्जुन कपूर) को अंग्रेजी बोलना नहीं आता, लेकिन कॉलेज में माधव का दिल रिया सोमानी (श्रद्धा कपूर) पर दिल आ जाता है, जो अमीर परिवार से है और फर्राटेदार अंग्रेजी बोलती है। उनकी लव स्टोरी आगे बढ़ती है और हाफ गर्लफ्रेंड के मुद्दे पर ठहर जाती है। दोनों के बीच रिश्ते बिगड़ते हैं और उनके रास्ते अलग-अलग हो जाते हैं। माधव अपने गांव में स्कूल में बच्चियों के लिए शौचालय बनवाने की योजना के लिए बिल गेट्स के फाउंडेशन की मदद चाहता है। 
रिया और माधव पटना में फिर मिलते हैं। लव स्टोरी फिर आगे बढ़ती है। पता चलता है कि रिया की शादी भी हो गई और पति से अलगाव भी हो गया। इस बार दोनों की लव स्टोरी में माधव की मां (सीमा बिस्वास) आड़े आ जाती हैं और रिश्ता फिर टूट जाता है। कहानी बिहार से अमेरिका पहुंच जाती है, जहां माधव फिर से रिया की तलाश शुरू करता है और उसकी तलाश कामयाबी के साथ पूरी होती है। 
हाफ गर्लफ्रेंड का कॉन्सेप्ट उम्मीदें जगाने वाला था। फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाली लड़की और बिहारी हिन्दी बोलने वाले लड़के की लव स्टोरी में भी कोई बुराई नहीं थी, लेकिन इस फिल्म की सबसे बुरी बात ये रही कि लेखक के तौर पर चेतन भगत और निर्देशक के तौर पर मोहित सूरी की जोड़ी ने इसे इतना लचर बना दिया कि फिल्म चौपट हो गई। एक अच्छे कॉन्सेप्ट पर पुराने मसालों का इस्तेमाल, फ्लैशबैक में आना-जाना, मोनोटोनस से कैरेक्टर और कलाकारों की कास्टिंग ने इस फिल्म को हाफ वे पर लाकर भटकने के लिए छोड़ दिया।
अर्जुन कपूर इस फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी हैं, जो माधव के किरदार को समझ ही नहीं पाए। सपाट चेहरे के साथ न वो हंस पाते हैं, न रो पाते हैं, न कुछ और कर सकते हैं। माधव के किरदार में अर्जुन का चयन ही गलत रहा। श्रद्धा भी अपने किरदार को लेकर ज्यादा कुछ नहीं कर पाईं। ग्लैमरस लुक के अलावा श्रद्धा के मामले में कुछ और अच्छा नहीं कहा जा सकता। माधव की मां के रोल में सीमा बिस्वास को ढंग का मेकअप तक नहीं दिया गया। कलाकारों की कमजोरियों के अलावा लम्बे-लम्बे सीनों और बिखरे सीनों का शिकार स्क्रीनप्ले इस फिल्म को बुरा बनाने में योगदान देता है। मोहित सूरी अभी तक इस खुमार में जी रहे हैं कि उन्होंने 'आशिकी 2' बनाई थी। हाफ गर्लफ्रेंड के कॉन्सेप्ट को वे खुद नहीं समझ सके। मुंबई के आलीशान घरों में बैठकर जब कोई बिहार के गांव की बात सोचने की कोशिश करेगा, तो हश्र यही होगा। 
किसी फिल्म की इससे बड़ी विफलता और क्या होगी कि एक सीन या किरदार ऐसा नहीं, जो दर्शकों की संवेदनाओं से जुड़ जाए। इस फिल्म को तो सबसे पहले बिहार के लोग ही खारिज करेंगे।  फिल्म की अच्छी बातें करें, तो एक दो गानों को छोड़कर कुछ और अच्छा नहीं कहा जा सकता। बॉक्स ऑफिस पर ये फिल्म निराशा के अलावा कुछ और नहीं दे पाएगी। इसे देखने वाले निराश ही होंगे, जिसका श्रेय मोहित सूरी, चेतन भगत, अर्जुन कपूर और श्रद्धा कपूर सबको जाता है। 
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