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शबाना आजमी ने कला और व्यावसायिक सिनेमा को दी नई ऊंचाई
By Deshwani | Publish Date: 18/9/2017 6:57:05 PM
शबाना आजमी ने कला और व्यावसायिक सिनेमा को दी नई ऊंचाई

 मुंबई। बॉलीवुड की सुप्रसिद्ध अभिनेत्री शबाना आजमी उन अभिनेत्रियों में शामिल हैं जिन्होंने कला फिल्मों के साथ व्यावसायिक फिल्मों में भी अपनी विशेष पहचान बनाई है। आज उनके जन्मदिन के अवसर पर चलिए डालते है एक नजर उनके जीवन पर। 18 सितंबर 1950 को जन्मी शबाना के पिता कैफी आजमी मशहूर शायर और गीतकार थे जबकि मां शौकत आजमी रंगमंच की जानी मानी अभिनेत्री थी।

 
शबाना ने स्नातक की पढ़ाई दिल्ली के सेंट जेवियर कॉलेज से पूरी की और इसके बाद पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट में दाखिला ले लिया। पुणे में अभिनय का प्रशिक्षण हासिल करने के बाद वह अभिनेत्री बनने के लिए 1973 में मुम्बई आ गईं। यहां उनकी मुलाकात निर्माता-निर्देशक ख्वाजा अहमद अब्बास से हुई जिन्होंने उन्हें अपनी फिल्म फासले में काम करने का प्रस्ताव किया। यह फिल्म पूरी हो पाती उससे पहले ही उनकी फिल्म अंकुर प्रदर्शित हो गई।
 
श्याम बेनेगल के निर्देशन में बनी और 1974 में प्रदर्शित फिल्म अंकुर हैदराबाद की एक सत्य घटना पर आधारित थी। इस फिल्म में शबाना आजमी ने लक्ष्मी नामक एक ऐसी ग्रामीण युवती का किरदार निभाया था जो शहर से आये एक कॉलेज स्टूडेंट से प्यार कर लेती है। फिल्म के निर्माण के समय श्याम बेनेगल ने अपनी कहानी कई अभिनेत्रियों को सुनायी थी लेकिन सभी ने फिल्म में काम करने से मना कर दिया था।
 
कैरियर के शुरआती दौर में इस तरह का किरदार किसी भी अभिनेत्री के लिये जोखिम भरा काम हो सकता था लेकिन शबाना आजमी ने इसे एक चैलेंज के रूप में लिया और सधे हुये अभिनय से समीक्षकों के साथ ही दर्शकों का भी दिल जीतकर फिल्म को सुपरहिट बना दिया। इस फिल्म में अपने दमदार अभिनय के लिये वह सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित की गयी।
 
इसके बाद 1975 में श्याम बेनेगल की ही फिल्म निशांत में शबाना आजमी को उनके साथ फिर काम करने का मौका मिला। वर्ष 1977 शबाना आजमी के सिने कैरियर का अहम पड़ाव साबित हुआ। इस वर्ष उन्हें जहां महान फिल्मकार सत्यजीत रे की फिल्म शतरंज के खिलाड़ी में काम करने का मौका मिला। वहीं फिल्म स्वामी में उत्कृष्ट अभिनय के लिये वह सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित की गयी।
 
इस बीच शबाना आजमी ने व्यावसायिक सिनेमा की ओर भी अपना रख कर लिया। इस दौरान उन्हें विनोद खन्ना के साथ परवरिश और अमर अकबर एंथोनी जैसी फिल्मों में काम करने का अवसर मिला जिसकी सफलता ने उन्हें व्यावसायिक सिनेमा में भी स्थापित कर दिया। वर्ष 1982 में प्रदर्शित फिल्म  अर्थ शबाना आजमी के लिये कैरियर की एक और महत्वपूर्ण फिल्म साबित हुयी। महेश भट्ट के निर्देशन में बनी इस फिल्म में शबाना आजमी ने एक ऐसी शादीशुदा महिला का किरदार निभाया जिसका पति उसे अन्य महिला के कारण छोड़ देता है। इस फिल्म के लिये शबाना आजमी दूसरी बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित की गयी।
 
वर्ष 1983 में प्रदर्शित फिल्म मंडी शबानी आजमी की अहम फिल्मों में शुमार की जाती है। श्याम बेनेगल निर्देशित इस फिल्म में उन्होंने वेश्यालय चलाने वाली रक्मणी बाई की भूमिका को पहले पर्दे पर साकार किया। इस भूमिका को स्वाभाविक बनाने के लिये उन्होंने अपना वजन भी बढ़ाया। इस फिल्म के लिये वह सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्म फेयर पुरस्कार से नामांकित भी की गयी।
 
वर्ष 1984 में शबाना आजमी की मृणाल सेन निर्देशित फिल्म खंडहर और 1985 में गौतम घोष निर्देशित फिल्म पार प्रदर्शित हुयी। इन फिल्मों में उनके अभिनय के विविध रूप देखने को मिले। इन दोनों ही फिल्मों के लिए वह सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित की गयी। वर्ष 1986 में इंडो फ्रेच बेल्जियन स्विस प्रोडक्शन के बैनर तले बनी फिल्म जेनेसिस शबाना आजमी की एक और महत्वपूर्ण फिल्म है।
 
मृणाल सेन के निर्देशन में बनी इस फिल्म में आदमी और औरत के बीच प्यार और उनके बीच तकरार को दिखाने के साथ ही राजस्थान के रेगिस्तान की खूबसूरती को भी पेश किया गया था। इस फिल्म में नसीरद्दीन शाह और ओमपुरी ने भी मुख्य भूमिकाएं निभाईं। वर्ष 1996 में प्रदर्शित फिल्म फायर से शबाना आजमी को अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हुयी। दीपा मेहता के निर्देशन में बनी इस विवादस्पद फिल्म में उन्होंने राधा नामक युवती का किरदार निभाया जो एक अन्य युवती से प्रेम करने लगती है। समलैंगिकता के विषय पर बनी यह फिल्म भारत में पहली ऐसी फिल्म थी।
 
फिल्म में उनके उत्कृष्ट अभिनय को देखते हुये उन्हें शिकागो फिल्म फेस्टिवल में सम्मानित किया गया। वर्ष 1999 में प्रदर्शित फिल्म गॉडमदर में शबाना आजमी ने एक ऐसी महिला का किरदार निभाया जो अपने पति की मौत के बाद माफिया डॉन बनकर भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था के विरूद्ध आवाज उठाती है और अपने पति की मौत का बदला लेती है। फिल्म में अपने दमदार अभिनय के लिये वह सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित की गयी।
 
शबाना आजमी अभिनय के अलावा सामाजिक क्षेत्रों में सक्रिय भूमिका निभाती रही हैं और कई कल्याणकारी संगठनों में सदस्य के रूप में जुड़ी है। इनमें एड्स पीडितों और बच्चों के उत्थान के लिये चलायी जा रही संस्थायें खास तौर पर शामिल हैं। इसके अलावा कश्मीरी बाह्मणों के पलायन और लातूर भूकंप पीडि़त परिवारों के कल्याण में उन्होंने अपना सक्रिय योगदान दिया है।
 
शबाना आजमी चार बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित की गयी है। फिल्मों में उनके उल्लेखनीय योगदान को देखते हुये वह 2006 में पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित की गयीं। शबाना आजमी ने अपने तीन दशक लंबे सिने करियर में अब तक लगभग 130 फिल्मों में अभिनय किया है। 
 
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