फिल्म समीक्षा - रेटिंग 3 स्टार
मुंबई, (हिस)। अक्षय कुमार की फिल्म टायलेट एक प्रेमकथा के विषय को लेकर कोई सस्पेंस कभी नहीं रहा। एक सामाजिक मुद्दे पर ये फिल्म ऐसे वक्त में बनी, जब केंद्र की सरकार इस मुद्दे को लेकर व्यापक अभियान चला रही है। फिल्म इस मुद्दे पर मुखर होकर अपनी बात कहती है, लेकिन इस मुद्दे से बाहर ये एक औसत प्रेमकथा बनकर रह गई।
कहानी यूपी के मथुरा के करीब एक गांव की है, जहां केशव (अक्षय कुमार) रहता है। केशव मांगलिक है, जिस वजह से उसकी शादी नहीं हो पा रही है। किसी तरह से जया (भूमि पेडणेकर) के साथ केशव की शादी हो जाती है, लेकिन दुल्हन बनकर जया जब ससुराल पंहुचती है, तो उसे पता चलता है कि घर में शौचालय नहीं है। यहीं से फिल्म असली मुद्दे से जुड़ती है।
पहली बार निर्देशन के मैदान में आए श्रीनारायण सिंह ने फिल्म को दो हिस्सों में बांट दिया। पहले हिस्से में जया और केशव की लव स्टोरी और दूसरे हिस्से में टायलेट की समस्या। फिल्म का पहला हिस्सा मनोरंजन के पल जुटाने का प्रयास करता है, लेकिन कमजोर स्क्रीनप्ले और बेतुके संवाद मजा किरकिरा करते हैं। गांव के परिदृश्यो को फिल्माने में जमकर सिनेमैटिक फायदा लिया गया है, जिससे मामला ज्यादा फिल्मी हो जाता है।
दूसरे हिस्से में जब फिल्म मुख्य मुद्दे पर आती है, तो कई जगहों पर सरकारी डाक्युमेंट्री जैसी बन जाती है। ऐसा लगता है कि मुद्दे की गंभीरता को न समझते हुए उसे बार बार दोहराया जा रहा है। दूसरे हिस्से का लेखन कमजोर है और एडीटिंग भी। लंबे लंबे सीन अखरने लगते हैं। फिल्म का संगीत भी कमजोर है।
फिल्म की खूबियों में अक्षय कुमार की परफारमेंस है, जो फिल्म पर मजबूती से अपनी पकड़ बनाए रखते हैं। केशव के किरदार में गांव के भोलेभाले युवक के किरदार को अक्षय कुमार ने सही टोन के साथ पकड़ा। ऐसे किरदारों में मजाकिया तड़का लगाने में वे माहिर हो चुके हैं, जिसका फायदा इस फिल्म को मिलता है। इमोशन सीनों में भी वे मजबूत रहे हैं। भूमि मैच्योर सीनों में गजब की लगती हैं और उनकी परफारमेंस बेहतरीन होती है। रोमांटिक सीनों में वे कहीं थोड़ी कमजोर होती हैं।
अनुपम खेर और सुधीर पांडे जैसे कलाकारों ने वही काम किया, जो उनसे कराया गया। अनुपम खेर तो रुटीन रोल में हैं, जिसमें कुछ खास नहीं। प्यार का पंचनामा वाले देवयेंदु शर्मा को इस फिल्म से फायदा होगा। वे प्रभावित करते है।
फिल्म का मुख्य आकर्षण अक्षय कुमार और भूमि की जोडी की कैमिस्ट्री है, जो काम करती है। टायलेट के मुद्दे पर भाषणबाजी कम होती, तो ये फिल्म के लिए अच्छा होता।
फिल्म की प्रेमकथा देखकर मजा आएगा, लेकिन टायलेट वाले मुद्दे को लेकर दर्शकों को वही ज्ञान मिलेगा, जो उनको पता है। कुल मिलाकर फिल्म एंटरटेनमेंट के लिहाज से अच्छी है। इसे और अच्छी बनाया जा सकता था। अक्षय कुमार के चाहने वालों को पसंद आएगी और बाक्स आफिस पर बहुत कमाल का नहीं, फिर भी अच्छा बिजनेस करेगी।