फिल्म समीक्षा - रेटिंग 1.5 स्टार
मुंबई, (हि.स.)। वैचारिक स्तर पर बेहद गंभीर विषयों पर फिल्में बनाने वाले फिल्मकार की पहचान बना चुके तिग्मांशु धूलिया की नई फिल्म 'रागदेश' नेता जी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज के तीन फौजियों के खिलाफ ब्रिटिश हुकूमत में चलाए गए एक मुकदमे पर बनी है। एेतिहासिक पृष्ठभूमि वाली इस फिल्म में देशभक्ति के मसाले भी डाले गए, लेकिन बात नहीं जमी।
कहानी के मुताबिक, आजाद हिंद फौज के तीन सेनाधिकारियों- शाहनवाज (कुणाल कपूर), गुरुबख्श सिंह ढिल्लों (अमित साध) और कर्नल प्रेम सहगल (संदीप मारवाह) पर ब्रिटिश शासनकाल के दौरान दिल्ली के लालकिले में देशद्रोह का मुकदमा चलाया जाता है। दोनों पक्षों की बहस के बाद अंतिम नतीजा किस तरह से सामना आता है, ये फिल्म देखने के बाद पता चलेगा।
निर्देशक तिग्मांशु धूलिया ने बेहद गंभीर और इतिहास में दबे उस अध्याय को छूने की कोशिश की, जिससे देशवासी अब तक अनजान ही रहे हैं। तिग्मांशु ने गंभीरता से फिल्म बनाने की कोशिश की, लेकिन उनके साथ दो परेशानियां हो गईं। उनके पास कहानी बहुत छोटी सी थी।
दूसरी बात, फिल्म की गति इतनी धीमी रही कि मामला गड़बड़ होता चला गया। लंबे लंबे सीन, बेहद बोझिल संवाद फिल्म की गति पर पूरी तरह से ब्रेक लगाते हैं और कहानी बिखरती चली जाती है। बार-बार अतीत में जाने का ट्रैक भी अखरता है। एक और कमजोरी ये है कि किरदार दर्शकों से जुड़ नहीं पाते।
कलाकारों की बात की जाए, तो कुणाल ने अपने किरदार में बहुत मेहनत की। वे पर्दे पर जमते हैं, लेकिन उनकी संवाद अदायगी मे कमजोरी है। अमित साध सीमित क्षेत्र में रहकर ही काम कर सकते हैं। उनके हिसाब से उनका किरदार बड़ा हो गया और संदीप मारवाह तो एक्टिंग के बारे में बिल्कुल नहीं जानते और फिल्म में खटकते हैं। बाकी सब ठीकठाक है। निर्देशक के तौर पर तिग्मांशु धूलिया इस बार चूक गए।
कुल मिलाकर फिल्म अति गंभीर विषयों पर बनी फिल्मों को पसंद करने वालों को भी ये फिल्म शायद ही अपील कर सके। आम दर्शकों को तो इस फिल्म से खास कुछ नहीं मिलने वाला। बॉक्स ऑफिस पर इस फिल्म का कोई भविष्य नहीं है।