मुंबई, (हि.स.)। यशराज की फिल्म बैंक चोर एक कॉमेडी थ्रिलर है और टाइटल से ही साफ हो जाता है कि ये एक बैंक डकैती को लेकर बनी है। पहले हाफ में कॉमेडी और फिर सस्पेंस का तड़का इस फिल्म को बेहतर बनाने का काम करते हैं।
इस कहानी में मुंबई का चंपक (रितेश देशमुख) और दिल्ली के उसके दो दोस्त हैं, जो बैंक डकैती की योजना बनाते हैं। डकैती होती है, तो तेजतर्रार पुलिस अधिकारी अमजद (विवेक ओबेराय) की एंट्री इसकी जांच को दिलचस्प बना देती है। आगे जाकर इसमें सस्पेंस का एक और ट्रैक जुड़ता है, तो कॉमेडी के साथ आगे बढ़ता चला जाता है। फिल्म सस्पेंस थ्रिलर है, इसलिए कहानी को लेकर ज्यादा बात करना ठीक नहीं होगा।
कहानी में नयापन तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन स्क्रीनप्ले अच्छा है और कॉमेडी के ट्रैक पर तेजी बनाए रखता है। अच्छी रफ्तार इस फिल्म से दर्शकों को बांधे रखती है। घटनाओं को संतुलित रखने का प्रयास अच्छा है। सिर्फ क्लाइमैक्स में जाकर फिल्म कमजोर होती है। ये फिल्म पूरी तरह से रितेश देशमुख के कंधे पर है और मुंबईकर के रोल में वे जंचते हैं। ये उनके करियर की बेहतर फिल्मों में से एक मानी जाएगी।
उन्होंने अपने किरदार को खूबसूरती के साथ पकड़ा और उसकी लय में आगे बढ़ते चले गए। दोनों दोस्तों के किरदारों में विक्रम थापा (पूर्व पत्रकार) और भुवन अरोड़ा भी दिलचस्प हैं। विवेक ओबेराय के लिए यही बहुत बड़ी बात है कि बहुत दिनों बाद उनको एक दिलचस्प किरदार मिला और जिसे उन्होंने मेहनत से निभाया। टीवी पत्रकार के रोल में रिया चक्रवर्ती ग्लैमरस हैं और यही उनकी कामयाबी है। बाबा सहगल का रैप दर्शकों को हंसाने का काम करता है।
निर्देशन के मैदान में आए बंपी अपने मकसद में काफी हद तक कामयाब रहे। सिर्फ क्लाइमैक्स छोड़कर पूरी फिल्म पर उनका नियंत्रण बना रहा। किरदारों में तालमेल और कॉमेडी के पंचेज का इस्तेमाल उन्होंने समझदारी से किया। इस फिल्म से बहुत बड़ी कामयाबी की उम्मीद बेमानी होगी। कॉमेडी को पसंद करने वाले दर्शकों के लिए ये अच्छा अनुभव होगा और माउथ पब्लिसिटी इसकी कामयाबी की संभावना को मजबूत करेंगे। वन टाइम एंटरटेनमेंट के फार्मूले पर ये फिल्म खरी उतरती है, यही इसकी कामयाबी है।