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मुहल्ले की प्रेम कहानी का ताना बाना है ''बहन होगी तेरी''
By Deshwani | Publish Date: 10/6/2017 11:54:41 AM
मुहल्ले की प्रेम कहानी का ताना बाना है ''बहन होगी तेरी''

मुंबई, (हि.स.)। राजकुमार राव और श्रुति हासन की ये फिल्म उस दुविधा को लेकर बनी है, जिसमें आपसी रिश्तों को लेकर युवा अक्सर भ्रमित हो जाते हैं कि उनको क्या नाम दिया जाए। उत्तर भारत के शहरो से लेकर कस्बों और गांवों तक में ये आम तौर पर होता है, जबकि एक मुहल्ले के पड़ोस में रहने वालों को पहली नजर में बहन-भाई के रिश्ते से ही बांधने की कोशिश होती है। 

कहानी लखनऊ की है, जिसमें एक मुहल्ले में गट्टू (राजकुमार राव) और बिन्नी के घर एक दूसरे के सामने हैं। बचपन से दोनों साथ पले बढ़े हैं। बिन्नी का परिवार गट्टू को उसके भाई जैसा मानता है, जबकि गट्टू मन ही मन उसको चाहता है, पर कुछ कहने से डर लगता है। मामला तब आगे बढ़ता है, जब बिन्नी की शादी तय हो जाती है, तो गट्टू खुद पर काबू नहीं रख पाता। अपने दोस्त की मदद से गट्टू एक ऐसा प्लान बनाता है, जिसके चक्कर में उसके साथ साथ बिन्नी और उसके परिवार को भी दिन में तारे नजर आ जाते हैं, लेकिन क्लाइमैक्स में वही होता है, जो एक लव स्टोरी में दिखाया जाता है। 
इस फिल्म का निर्देशन अजय पन्नालाल ने किया है और बतौर निर्देशक ये उनकी पहली फिल्म है। उन्होंने रिश्तों के ऐसे छोर को लव स्टोरी में बांधने की कोशिश की, तो उत्तर भारत में काफी संवेदनशील माना जाता है। अजय पन्नालाल ने लोकल इमोशंस को उबारने की कोशिश तो की, लेकिन वे नाकाम रहे, तो इसलिए कि उनको खुद समझ नहीं आया कि वे जो दिखाना चाहते हैं, वो न्यायसंगत है या नहीं। 
लॉजिक और भावनाओं में तालमेल बैठाना आसान नहीं होता। जब रिश्तों की बात आती है, तो ये और जटिल हो जाता है। इसे संभालने के लिए एक अनुभवी निर्देशक की जरूरत थी, जबकि पन्नालाल अनुभवहीन रहे। फिल्म की सबसे बड़ी ताकत राजकुमार राव की परफॉरमेंस रही, जो अव्वल दर्जे की है। वे पर्दे पर अपने किरदार में गढ़े-बसे नजर आते हैं और एक बेचैन प्रेमी के जज्बातों को जोड़ने में सफल रहते हैं। रोमांस और इमोशन में राव संतुलन बैठाने की कला में माहिर हैं। श्रुति हसन हीरोइन हैं, लेकिन परफॉरमेंस के मामले में हमेशा कमजोर रही हैं और यहां भी यही है। वे रोमांस में भी सहज नहीं रहती। दर्शन जरीवाला, गुलशन ग्रोवर अपने किरदारों के साथ सहज हैं, तो गौतम गुलाटी छोटे पर्दे तक ही ठीक हैं। उनको फिल्मों से दूर रहना चाहिए। फिल्म का संगीत कमजोर है। प्रोडक्शन वेल्यू भी ज्यादा खास नहीं हैं। फिल्म का टाइटल फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी है। ये टाइटल ही काफी दर्शकों को दूर रखेगा। 
फिल्म औसत दर्जे की है, जिसमें राव का अभिनय ही अच्छा है। इतने भर से इस फिल्म का भला होने की गुंजाइश ज्यादा नहीं लगती। टाइम पास के लिए जाने वाले ही इस फिल्म का थोड़ा भला कर सकते हैं, पर ज्यादा नहीं। 
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