मुंबई, (हिस)। पुनर्जन्म की कहानियों के साथ बालीवुड का लगाव कभी कम नहीं होता। 21वीं सदी के बालीवुड में भी इन कहानियों पर फिल्में बनना बदस्तूर जारी है। निर्माता से निर्देशक बने दिनेश विजन की फिल्म राब्ता घोषित रुप से पुनर्जन्म की कहानी है, जिसमें वही मसाले हैं, जो इस तरह की फिल्मों में इस्तेमाल किए जाते हैं। पिछले जन्म के बिछड़े प्रेमी नए जन्म में फिर एक दूसरे से मिलते हैं और पिछले जन्म की प्रेम कहानी से जुड़ते हैं।
राब्ता शिव (सुशांत सिंह राजपूत) और सायरा (कीर्ति सेनन) की कहानी है। शिव काम के सिलसिले में पंजाब से बुडापेस्ट पंहुचा है। दिलफेंक आशिक मिजाज शिव महिलाओं को आकर्षित करने की कला में माहिर है और सायरा के साथ उसके प्रेम संबंध जैसे जैसे आगे बढ़ते हैं, तो एक मोड़ पर ये 300 साल से भी पुराने दौर से जुड़ जाते हैं, जहां एक प्रेमी युगल को कत्ल कर दिया गया था। फिल्म का क्लाइमेक्स अटपटा है और पूरी फिल्म की बात करें, तो सुशांत और कीर्ति की कैमिस्ट्री छोड़कर सब कुछ घिसा पिटा है और निराश करने वाला है।
दिनेश विजन को न तो निर्देशन की समझ है और न ही कोई अनुभव। उन्होंने टुकड़ों टुकड़ों में फिल्म बनाई और फिर सबको जोड़ने की कला दिखाई, जिसमें वे चौपट नजर आए। फिल्म का डायरेक्शन और स्क्रीनप्ले दोनों ही दोयम दर्जे के हैं, जिनको ऐसे घटिया मसालों से भर दिया गया है, जिनको इस दौर के युवा भी खारिज कर चुके हैं। फिल्म में युवा दर्शकों को रिझाने के लिए हाट सीनों की भरमार है। सुशांत और कीर्ति की केमिस्ट्री बेहतर है और ताजगी का एहसास कराती है, लेकिन दोनों ही इमोशनल सीनों में कमजोर साबित होते हैं। खास तौर पर कीर्ति तो बेहद कमजोर हैं। राजकुमार राव का किरदार दिलचस्प है, लेकिन उसे कहानी में ठीक से फिट नहीं किया गया। उनके संवाद भी अच्छे हैं। फिल्म का म्यूजिक बुरा नहीं है, लेकिन बहुत अच्छा भी नहीं। तकनीकी रुप से फिल्म ठीकठाक है। विदेशी लोकेशनों से लेकर पुराने दौर को परदे पर लाने के लिए हुई मेहनत का एहसास नजर आता है। दिनेश विजन का विजन बुरा है और फिल्म की नैया को डूबोने वाला है।
बात भविष्य की, तो सुशांत की बदौलत पहले दिन फिल्म को अच्छा रेस्पांस मिल सकता है, लेकिन ये फिल्म तीन दिन में दम तोड़ देगी और सोमवार से कमजोर पड़ जाएगी। सुशांत के फैंस भी उनकी ऐसी कमजोर फिल्म से खुश नहीं होंगे।