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रिश्तों के ताने-बाने का आईना है फिल्म 'ए डेथ इन द गंज'
By Deshwani | Publish Date: 2/6/2017 4:03:07 PM
रिश्तों के ताने-बाने का आईना है फिल्म 'ए डेथ इन द गंज'

 मुंबई, (हि.स.)। अभिनेत्री के तौर पर सिक्का जमाने वाली अभिनेत्री कोंकणा सेन शर्मा की बतौर निर्देशक फिल्म 'ए डेथ इन द गंज' बंगाली परिवेश में रची-बसी एक ऐसी फिल्म है, जो कमर्शियल हिंदी के मसाला पसंद दर्शकों के लिए नहीं बनी है। ये फिल्म गंभीर सिनेमा पर बनी अतिगंभीर फिल्म है, जिसमें रिश्तों के ताने-बाने को फिल्म की कहानी का आधार बनाया गया है। 

फिल्म की कहानी कोंकणा के पिता मुकुल शर्मा की सच्ची घटना से प्रेरित कही जाने वाली एक लघु कहानी पर आधारित है। ये कहानी बंगाल के कस्बे मैक्लुस्कीगंज की है, जहां एक बंगाली परिवार रहता है। इस परिवार के मुखिया बख्शी (ओमपुरी) और उनकी पत्नी (तनूजा) हैं। छुट्टियों में इस परिवार के कुछ रिश्तेदार वहां पहुंचते हैं, तो देखा जाता है कि कैसे वे सब रिश्तों के नाम पर एक दूसरे से उलझे हुए हैं। 
इन सबमें फिल्म का मुख्य किरदार शोटू (विक्रांत मैसी) का है, जो अपनी दुनिया में खोया रहता है और लगभग सभी उसकी भावनाओं को अनदेखा करते हैं। कहानी जैसे जैसे आगे बढ़ती है, तो बंगाली परंपराओं और आधुनिकता का टकराव भी देखने को मिलता है और रिश्तों का ताना-बाना भी उलझनों का शिकार होता नजर आता है। फिल्म के क्लाइमैक्स में शोटू का एक कदम रिश्तों की इस दुनिया को आईना दिखा जाता है। 
कोंकणा सेन संवेदनशील अभिनेत्री रही हैं। अपने पिता की अतिगंभीर कहानी को लेकर उन्होंने ये फिल्म बनाई। कोंकणा ने फिल्म में किरदारों की संवेदनाओं पर ही सबसे ज्यादा फोकस किया और गंभीर सिनेमा को पसंद करने वाले दर्शक इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते। निर्देशक के तौर पर कोंकणा का अपनी फिल्म पर पूरी तरह से कमांड रहा है और उन्होंने किरदारों को चमकने का भरपूर मौका दिया है। खास तौर पर विक्रांत मैसी ने इस मौके का भरपूर फायदा उठाया और खुद को संवेदनशील कलाकार के तौर पर स्थापित किया। गुलशन दहैया, रणवीर शौरी, काल्की कोचीन भी अपने अपने किरदारों में प्रभावशाली रहे हैं। तनूजा और दिवंगत ओमपुरी अपने-अपने किरदारों में सहज हैं। 
फिल्म की एक कमजोरी ये कही जा सकती है कि इसका आधार बंगाली और अंग्रेजी भाषा को रखा गया है, जिससे हिन्दी दर्शकों को परेशानी होगी। फिल्म में हिन्दी का इस्तेमाल बहुत कम हुआ है। जैसा कि साफ है कि ये कमर्शियल हिन्दी सिनेमा जैसी मसालेदार फिल्म नहीं है, इसलिए बहुत सारे दर्शकों को शायद ये फिल्म अपील न करे, लेकिन विश्वस्तरीय सिनेमा का प्रतिनिधित्व करने वाली ये फिल्म एक मजबूत संदेश के साथ गंभीर सिनेमा के दर्शकों की संवेदनाओं के साथ जुड़ने में सक्षम है। फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर कोई बड़ी कामयाबी नहीं मिलेगी, लेकिन इसे देखने वालों को ये अच्छी जरूर लगेगी। 
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