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संपादकीय
हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का गवाह बन सकता है प्रयाग
By Deshwani | Publish Date: 27/12/2017 11:57:40 AM
हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का गवाह बन सकता है प्रयाग

सियाराम पांडेय ‘शांत’

धर्मो रक्षति रक्षितः। देश की रक्षा धर्म से होती है। भारत धर्म प्रधान देश है। इसकी अपनी महान सांस्कृतिक विरासत है। भारत सर्व धर्म सद्भाव के लिए तो जाना ही जाता है लेकिन प्रखर हिंदुत्व, तप-त्याग और ऋषि चिंतन के लिए वह पूरी दुनिया में विख्यात है। गौ, गंगा, गायत्री भारत की मजबूती का आधार रही हैं। इस आधार को यहां के लोग कभी छोड़ना नहीं चाहेंगे। इस देश के तीर्थ और संत जनजागृति के आधार स्तंभ रहे हैं। भ्रष्ट आचरण वाले कुछ आडंबरप्रिय कालनेमियों की वजह से साधु-समाज और भारतीय आस्था को चोट पहुंची है। संघ परिवार ने इस चुनौती को गंभीरता से लिया है और भारत की शालीन संत परंपरा को आगे बढ़ाने की दिशा में जबर्दस्त मुहिम छेड़ी है। दक्षिण भारत से उत्तर भारत तक, यही नहीं पूरे भारत को हिंदू चेतना से ओत-प्रोत करने का उसने जो कार्यक्रम बनाया है,अगर वह मजबूत होता है तो इससे पूरी दुनिया में हिंदुत्व की मजबूती का संदेश जाएगा। ज्ञान, वैराग्य और आस्था की तपस्थली,गंगा-यमुना और सरस्वती के पवित्र संगम में संतो के विशाल कुंभ के बीच धर्म संसद के प्रस्तावों पर मुहर लगवाने की संघ परिवार की योजना यह साबित करती है कि 1992 की हिंदू लहर एक बार फिर जोर पकड़ सकती है। 

 

 

 

भारत हिंदू राष्ट्र बने, यह संघ परिवार का बहुत पुराना सपना रहा है। अपने इस सपने को पूरा करने के लिहाज से वह लंबे समय से सक्रिय भी रहा है। संघ के बड़े नेताओं के भारत में पैदा होने वाले सभी हिंदू या भारतीय मुसलमानों के पूर्वज भी हिंदू जैसे बयान इस ओर इशारा करते हैं। संघ परिवार के बड़े नेता इंद्रेश कुमार के हस्ताक्षर वाले कुछ पोस्टकार्ड लोगों के पास पहुंच रहे हैं जिसमें अखंड भारत की इच्छा जाहिर की गई है। अखंड भारत की परिकल्पना तो तभी साकार हो सकती है जब इस्लामिक देश इसे स्वीकार करें। पाकिस्तान तो अपनी मर्जी से इसके लिए तैयार नहीं होगा। रहीम का एक दोहा याद कीजिए जिसमें ‘टूटे पर फिर ना जुरै, जुरै गांठ परि जाए’ जैसी बात कही गई है। वर्षों की गुलामी के बाद पहले तो हिंदुस्तान और पाकिस्तान का बंटवारा ही नहीं होना चाहिए था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पड़ोसी देशों से मित्रता कर सबका साथ-सबका विकास की अवधारणा को गति भी दे रहे हैं लेकिन पाकिस्तान और चीन के जरिए उनके प्रयासों को लगातार चुनौती मिल रही है। जिसने भी अखंड भारत का मानचित्र देखा है, उसे पता है कि अखंड भारत बनाना कितना दुस्तर कार्य है। नेहरू जी की चली होती तो न आज हमारे पास कश्मीर होता और न हैदराबाद। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने छोटी-छोटी रियासतों को भारत का हिस्सा न बनाया होता तो अखंड भारत के बारे में हम सोच भी नहीं पाते। अखंड भारत का निर्माण हो, यह अच्छी बात है लेकिन यह इस देश के हर नागरिक को विश्वास में लेकर ही संभव है।

 

 

 

हाल ही में भारत-पाक सीमा पर गश्त कर रहे सेना के एक अधिकारी और दो जवानों की पाकिस्तानी सेना के हमले में मौत हो गई। भारतीय जवानों ने पाकिस्तान में घुसकर उसके कुछ सैनिकों को मौत के घाट उतारकर कायराना हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया है। अबकी बार-लाहौर पार के नारे को अखंड भारत की परिकल्पना के इर्द-गिर्द ही माना जा सकता है। पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिए बगैर यह लक्ष्य पूरा नहीं हो सकता। पाकिस्तान का दिल तो नहीं जीता जा सकता। इसके लिए भारत को वैचारिक स्तर पर ही नहीं, सामरिक स्तर पर भी अपनी मजबूती दिखानी होगी। इसके लिए उसे वैश्विक विरोध भी झेलने पड़ सकते हैं। क्या इस देश के हुक्मरान इतना साहस दिखा पाएंगे?

 

 

 

आरएसएस की दूसरी विंग है विश्व हिंदू परिषद। वह हिंदू राष्ट्र के निर्माण को साकार करने में जुटी है। राम मंदिर निर्माण आंदोलन को फिर व्यापक स्वरूप देने की उसकी तैयारी तो कुछ ऐसा ही संकेत देती है। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मामला भले ही सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है लेकिन विश्व हिंदू परिषद ने इस मुद्दे को गरमाने, केंद्र और उत्तर प्रदेश की मोदी और योगी सरकार पर दबाव बनाने की रणनीति पर काम करना आरंभ कर दिया है। विश्व हिंदू परिषद 15 हजार से अधिक युवा संतों व कथावाचकों को मैदान में उतारने वाली है। ऐसा वह हिंदू जागरण के लिहाज से करना चाहती है। एक ओर जहां देश में कुछ मठाधीश साधुओं के आचरण की वजह से साधु-संतों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। रोज ही किसी न किसी संत के दुराचरण के प्रसंग सामने आ रहे हैं। इससे संतो के प्रति विश्वास का भी खतरा उत्पन्न हो रहा है। इस बावत हिंदू महासभा का ऐसा मानना है कि कुछ लोग इस तरह के मामलों को उठाकर हिंदू भावनाओं को आहत करने का षड़यंत्र कर रहे हैं। विश्व हिंदू परिषद की योजना समाज में बड़ी तादाद में युवा साधु और प्रवचनकर्ताओं की खेप उतारने की है। इसके लिए वह हर माह युवा संत चिंतन वर्ग लगाएगी जिसमें बुजुर्ग संत व संगठन के वरिष्ठ सदस्य भजन, पूजन व प्रवचन का प्रशिक्षण देकर युवा संतों को संगठन की मुहिम की हिस्सा बनाएंगे। 

 

 

 

सच तो यह है कि विहिप चाहती है कि समाज में धर्माचार्यों की द्वितीय पंक्ति खड़ी हो। दिसंबर के अंतिम तीन दिन भुवनेश्वर में विहिप प्रबंधन समिति एवं प्रन्यासी मंडल की बैठक में इसका खाका तय होना है। हिंदुत्व को धार देने और आंदोलन चलाने का काम भले ही विहिप करती रही हो लेकिन इसकी अगुआई भारत का संत समाज ही करता रहा है। मार्गदर्शक मंडल का गठन कर श्रीराम जन्मभूमि में मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करना, सरकार पर दबाव बनाना, इस निमित्त बड़ा आंदोलन खड़ा करना ही संप्रति विश्व हिंदू परिषद का अभीष्ठ है। अपने इस लक्ष्य में वह कितनी सफल होगी, यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन इतना तो तय ही है कि इस बार जो कुछ भी होगा, आर-पार का ही होगा। मोदी और योगी के हाथ में क्रमशः केंद्र और उत्तर प्रदेश की कमान होने से भी संघ और उसके आनुषंगिक संगठनों का मनोबल बढ़ा-चढ़ा है। वे इस अवसर को हाथ से जाने-देने के पक्ष में हरगिज नहीं हैं। ‘अभी नहीं तो कभी नहीं’ की उसकी सोच ही इस मुहिम को विस्तार देने की मुख्य वजह है।

 

 

 

युवा संतों को उतारने में भूल न हो जाए, इसलिए केंद्रीय और प्रांतीय मार्गदर्शक मंडल बनाया गया है। केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल में जिन 350 संतों को शामिल किया गया है, उसमें शंकराचार्य, महामंडलेश्वर, मंडलेश्वर, श्रीमहंत, महंत, रामानुजाचार्य, रामानंदाचार्य, माधवाचार्य सम्प्रदाय सहित जैन, सिख व बौद्ध धर्म के प्रमुख संत शामिल हैं। 280 संत-महात्मा की उम्र 70 साल पार हो चुकी है। प्रांतीय मार्गदर्शक मंडल में देशभर के 50 हजार संत-महात्मा विहिप से जुड़े हैं। 35 हजार से अधिक संन्यासी 70 साल पार कर चुके हैं। विहिप इस बात के लिए भी सतर्क है कि इन नए संतों की भूमिका पर कभी कोई सवाल न उठे। हर माह संत चर्चा कराने की वजह भी यही है। केंद्रीय और प्रांतीय मार्गदर्शक मंडल के अनुभव नए धर्माचार्यों और प्रवचनकर्ताओं की टीम खड़ा करने में सहायक होंगे, इसकी उम्मीद तो की ही जा सकती है। इन युवा धर्माचार्यों को प्रशिक्षित करने का काम अयोध्या, हरिद्वार व प्रयाग में होगा। विहिप की नजर देश में चल रहे वेद विद्यालयों पर है। यहां के विद्यार्थियों को अपने सांचे में ढालकर वह श्रीराम जन्मभूमि, गौ, गंगा, वेद व संस्कृत रक्षा एवं धर्मांतरण के विरोध में आंदोलन की धार को मजबूती देना चाहती है। 

 

 

 

देश के पांच हजार स्थानों पर रामोत्सव का आयोजन कर विहिप हिंदुत्व का माहौल बनाना चाहती है और इसके बाद आंदोलन की बागडोर अपने बड़े नेताओं के हाथ में सौंपना चाहती है। भाजपा भी संघ और विहिप की इस योजना में परोक्षतः सहयोग दे रही है। भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य कुंवर सैयद इकबाल हैदर ने लखनऊ में आपसी सहमति से अयोध्या मामले का हल निकालने पर जोर देकर यह साबित कर दिया है कि राम मंदिर निर्माण आंदोलन एक बार फिर जोर पकड़ सकता है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या में दीपावली मनाकर विश्व हिंदू परिषद को पूरे फार्म में ला दिया है। 

 

 

 

कर्नाटक के उड़प्पी में 24 से 26 नवंबर तक हुई विहिप की धर्म संसद से यह बात साफ हो चुकी है कि विहिप राम मंदिर निर्माण को लेकर जनता के बीच 1992 जैसा माहौल बनाने के पक्ष में है। धर्म संसद में शीर्ष अदालत से आने वाले संभावित परिणाम पर चर्चा तो हुई ही, भविष्य की योजनाओं पर भी मंथन हुआ है। प्रयाग में लग रहे माघ मेले में उड़प्पी में आयोजित धर्म संसद में पारित प्रस्तावों पर मुहर लग सकती है। प्रयाग में जगद्गुरु स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती के शिविर में धर्म संसद का आयोजन होगा। धर्म संसद में जिन प्रस्तावों पर मुहर लग सकती है, उनमें अयोध्या के विवादित स्थल पर मंदिर के लिए सरकार माहौल बनाए और सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की सुनवाई जल्द पूरी करने की मांग भी शामिल है। संत यह भी चाहेंगे कि केंद्र सरकार संसद व प्रदेश सरकार विधानसभा में मंदिर निर्माण का प्रस्ताव पारित कराए। अयोध्या में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पूरे क्षेत्र और अयोध्या के मठ, मंदिर व धर्मशालाओं का सुंदरीकरण हो। गंगा की निर्मलता बनी रहे और गौ रक्षकों पर दंडात्मक कार्रवाई न हो।

 

 

 

अयोध्या में मंदिर निर्माण में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद भी निर्णायक भूमिका निभाना चाहती है। उसका मानना है कि नेताओं की वजह से ही यह मामला लंबे समय से कोर्ट में विचाराधीन है, जबकि धर्मगुरु चाह लें तो आपसी सुलह-समझौते से चंद दिनों में उसका निपटारा हो सकता है। हाल के दिनों में श्री श्री रविशंकर ने इस बावत पहल भी की थी। यह अलग बात है कि विहिप और भाजपा की ओर से उन्हें इस बावत अपेक्षित सहयोग नहीं मिल सका था। अखाड़ा परिषद सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर यह मांग करना चाहती है कि कोई भी निर्णय करने से पहले अदालत उनकी भी राय जाने। कुल मिलाकर मंदिर निर्माण का श्रेय सभी लेना चाहते हैं। विहिप को लगता है कि राम मंदिर मुद्दे पर ही वह देश भर के हिंदुओं को एकजुट कर सकती है। 

 

-लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।

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