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संपादकीय
अन्ना हजारे फिर करेंगे आंदोलन : सुधांशु द्विवेदी
By Deshwani | Publish Date: 14/12/2017 3:39:42 PM
अन्ना हजारे फिर करेंगे आंदोलन : सुधांशु द्विवेदी

गांधीवादी समाजसेवी अन्ना हजारे एक बार फिर बड़े आंदोलन के मूड में नजर आ रहे हैं। हालाकि देश को ऐसे राजनेताओं एवं आंदोलनकारियों की आवश्यकता तो प्रमुखता से है, जो हमेशा कर्म करते रहने पर यकीन रखते हुए जनहित एवं राष्ट्रहित में सफल आंदोलन भी करते हैं तथा उनकी साख व धाक भी कायम रहती है, लेकिन अन्ना हजारे के बारे में अगर कहा जाए तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगा कि केन्द्र में यूपीए सरकार के सत्ता से बाहर होने एवं केन्द्र की सत्ता में भाजपा के आने के बाद अन्ना का आंदोलन ध्वस्त सा हो गया है। 
हमेशा ही भ्रष्टाचार की खिलाफत व शुचिता की पैरवी का दावा करने वाले अन्ना हजारे ने पिछले दो-तीन साल के दौरान शायद ही कोई आंदोलन किया हो। ऐसे में लोगों के मन में यह सवाल उठ रहा है कि अन्ना हजारे का पिछला आंदोलन कहीं पूर्वाग्रह और पक्षपात से प्रेरित तो नहीं था। क्यों कि पिछले दो-तीन साल में देश के विभिन्न प्रांतों में किसानों पर संकट की स्थिति लगातार निर्मित होती रही है तथा किसान संगठनों, उनके बड़े नेताओं- आंदोलनकारियों ने ऐसे अवसरों पर अपनी उत्कृष्ट सक्रियता दिखाते हुए न सिर्फ सरकार को अपना रवैया बदलने पर मजबूर किया अपितु उन्होंने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय देते हुए यह भी साबित कर दिया कि वह जोर-जुल्म के खिलाफ अच्छी तरह लड़ऩा भी जानते हैं। यही कारण है कि किसानों के हित में सरकार द्वारा भले ही अभी कोई ठोस निर्णय नहीं लिये गये हों लेकिन किसानों के उत्थान एवं कल्याण की दिशा में कुछ उम्मीद तो अवश्य ही नजर आ रही है, लेकिन इस पूरे दौर में अन्ना हजारे का विलुप्त एवं अप्रासंगिक जैसा हो जाना ऐसे सवालों को भी जन्म देता है कि यदि अन्ना हजारे भविष्य में कोई आंदोलन करते हैं तो जनमानस द्वारा उन्हे पर्याप्त समर्थन मिल पायेगा? क्यों कि देश के लोग काफी जागरुक हैं तथा वह आंदोलनों के जरिये समाज में क्रांतिकारी बदलाव की अहमियत को भी भली भांति समझते हैं तो फिर जनमानस द्वारा यह भी उम्मीद की जाती है कि ऐसे आंदोलनकारी एवं राजनेता समय के साथ कदमताल करते रहें। अब देखना यह होगा कि अगर अन्ना हजारे भविष्य में कोई आंदोलन करते हैं तो देशवासियों का उनको कितना समर्थन मिलता है। वहीं दूसरी ओर अब अन्ना हजारे का कहना है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मेरा कोई संबंध नहीं है, अब मैं अपने आंदोलन से दूसरा केजरीवाल नहीं निकलने दूंगा। 
अन्ना का कहना है कि हमें भाजपा और कांग्रेस सरकार नहीं चाहिए क्योंकि इनके दिमाग में उद्योगपति और इंडस्ट्री हैं, आम जनता नहीं। देश के किसानों को फसल का उचित मूल्य नहीं मिल रहा। जबकि बैंकों द्वारा किसानों से मोटा ब्याज वसूला जा रहा है, जिसके चलते वह आत्महत्या कर रहे हैं। नोटबंदी और जीएसटी से आम आदमी को कोई लाभ नहीं हुआ, उल्टे इससे कालाधन सफेद हो गया। अब वह 23 मार्च को दिल्ली के रामलीला मैदान में लोकपाल के समर्थन और किसान हित में जनसभा करेंगे। उनका कहना है कि फिलहाल वह ढाई माह तक भ्रमण कर लोगों को उनके अधिकारों के प्रति सजग कर रहे हैं। अन्ना हजारे का कहना है कि वह अब किसी की राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरा नहीं होने देंगे। उनका कहना है कि आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वालों से इस आशय के शपथपत्र लूंगा कि वे राजनीति में नहीं जाएंगे और न ही किसी पार्टी को समर्थन करेंगे। 
अभी कुछ दिन पूर्व ही अन्ना हजारे मध्यप्रदेश के खजुराहो आये थे। जहां उन्होंने कहा था कि भाजपा की केंद्र सरकार में लोकपाल बिल में हुए संशोधन से वह नाराज हैं। उनका कहना था कि लोकपाल बिल पर अमल होता तो देश से 85 फीसदी भ्रष्टाचार खत्म हो जाता। 
तब कांग्रेस और भाजपा में अंतर की बात पर अन्ना हजारे ने कहा था कि मैंने पूर्व में भी कहा था नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के दिमाग में उद्योगपति बैठे हैं। किसान जब तक नहीं बैठेगा देश का भविष्य नहीं है। वैसे अन्ना हजारे की किसानों को लेकर जो सोच है, वह तो स्वागतयोग्य है लेकिन अगर अन्ना हजारे का यह कहना है कि आंदोलनकारियों को राजनीति में नहीं जाना चाहिये तथा उनमें राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं होनी चाहिये तो अन्ना हजारे को अपने इस रवैये पर पुनर्विचार करना चाहिये क्यों कि आंदोलनकारी अगर राजनेता बन जाएं तो इसमें कोई गलत बात नहीं है क्यों कि आंदोलनों के दौरान उनमें समाहित संघर्ष क्षमता, जीवटता एवं रचनात्मक सोच का सदुपयोग वह केन्द्रीय मंत्री, प्रदेश सरकार के मंत्री, सांसद, विधायक के रूप में करते हुए जनहित में व्यवस्था को क्रांतिकारी ढंग से व अपनी इच्छा के अनुरूप बदल सकते हैं। क्यों कि कई बार ऐसा होता है कि आंदोलनकारियों की मंशा के अनुरूप सत्ताधारियों द्वारा निर्णय नहीं लिया जाता है।
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