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संपादकीय
आधुनिकता के नाम पर झारखंड में अश्लीलता : सियाराम पांडेय ‘शांत’
By Deshwani | Publish Date: 12/12/2017 12:33:40 PM
आधुनिकता के नाम पर झारखंड में अश्लीलता : सियाराम पांडेय ‘शांत’

पाश्चात्य संस्कृति ने झारखंड जैसे आदिवासी राज्य में भी अपने पांव पसारने आरंभ कर दिए हैं और इस संस्कृति को हवा दे रहे हैं वहां के राजनीतिक दल। आदिवासियों में प्रेम और विवाह की शानदार परंपरा है। प्रेम दिखावे की वस्तु है भी नहीं लेकिन झारखंड मुक्ति मोर्चा जैसी प्रमुख आदिवासी राजनीतिक पार्टी प्रेम को दिखावा साबित करने पर आमादा है। झामुमो के लिट्टीपाड़ा विधायक साइमन मरांडी ने प्रेम के उन्मुक्त प्रदर्शन की जो रणनीति अख्तियार की है, उसकी जितनी भी आलोचना की जाए, कम है। 

लिट्टीपाड़ा विधानसभा क्षेत्र में हर साल आदिवासियों के नायक और आदर्श रहे सिदो-कान्हू के नाम पर मेले का आयोजन किया जाता है। यह मेला अपनी विविधता और सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए पूरे झारखंड में विख्यात है। इस मेले में अगर चुंबन प्रतियोगिता जैसा भौंड़ा प्रदर्शन किया जाए तो उसे क्या कहा जाएगा? गनीमत रही कि विधायक ने शादीशुदा जोड़ों की ही प्रतियोगिता कराई। पति-पत्नी के बीच चुंबन सामान्य बात है लेकिन संबंधों की मर्यादा का ध्यान तो रखा ही जाना चाहिए था। इस प्रतियोगिता में 18 शादीशुदा जोड़ों ने प्रतिभाग किया। हजारों की भीड़ के सामने पति-पत्नियों ने एक दूसरे को खुलेआम चूमा। इस प्रतियोगिता में सबसे अधिक समय तक एक दूसरे को चूमने वाले तीन जोड़ों को विधायक साइमन मरांडी ने इनाम दिया। यह भी शादीशुदा जोड़ों के लिए साहस की ही बात है। शायद यह सब उन्होंने इनाम के लालच में ही किया होगा।

साइमन मरांडी और प्रो.स्टीफन मरांडी दोनों ही झारखंड के पुराने नेता हैं। उनकी मौजूदगी में चुंबन प्रतियोगिता हो और विजयी प्रतिभागियों को पुरस्कृत किया जाए तो इससे बड़ी उपहासास्पद स्थिति भला और क्या हो सकती है? विकथ्य है कि साइमन मरांडी ने उक्त चुंबन प्रतियोगिता अपने पैतृक गांव तालपहाड़ी में आयोजित डुमरिया मेले में कराई थी। मरांडी की मानें तो आदिवासी प्यार का इजहार करने में संकोच करतेे हैं, लज्जालु होते हैं। इसीलिए प्रेम और आधुनिकता को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने यह प्रतियोगिता करवाई। बहुत अच्छा तर्क है। आधुनिकता को प्रोत्साहित करने के नाम पर अश्लीलता को बढ़ावा देना उचित तो नहीं है। हिंदू जागरण मंच और भाजपा की ओर से भले ही इस आयोजन की आलोचना की गई है और इसे क्षेत्र के पिछड़ेपन और सांस्कृतिक विरासत का भद्दा मजाक कहा गया हो लेकिन इतना भर ही काफी नहीं है। इसे ईसाई मिशनरियों की साजिश बताकर ही भाजपा और हिंदू जागरण मंच अपने दायित्व से निवृत नहीं हो जाते। मंच ने इसके खिलाफ उग्र आंदोलन करने का भी ऐलान किया है लेकिन सवाल यह उठता है कि राज्य में भाजपा की सरकार है। उस भाजपा की सरकार में जिसे संस्कृति और सभ्यता के लिए जाना जाता है। भाजपा सरकार से यह उम्मीद तो की ही जानी चाहिए कि वह चुंबन प्रतियोगिता के आयोजकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेगी। सामाजिक मर्यादा और आदिवासी संस्कृति से खेलने वाली गतिविधियों को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। इससे समाज में गलत संदेश जाता है। भाजपा विधायक साहेब हांसदा ने भी चुंबन प्रतियोगिता की निंदा की है। उन्होंने कहा है कि आदिवासी समाज में सार्वजनिक तौर पर हाथ मिलाने या एक दूसरे का चुंबन लेने की कोई परंपरा नहीं है। यह युवा पीढ़ी को गलत राह दिखाने की शुरुआत है। सवाल उठता है कि साइमन मरांडी ने आधुनिकता के नाम पर जो भी करना था कर दिया, आदिवासी संस्कृति और परंपरा के संरक्षण के नाम पर वहां की भाजपा सरकार क्या करेगी, यह देखने वाली बात है।

इसमें शक नहीं कि आदिवासी समाज में प्रेम की अपनी मर्यादा है। उन्हें अपना जीवन साथी ढूंढ़ने की आजादी है। प्यार के इजहार का यह खुल्लम खुल्ला प्रदर्शन आदिवासी समाज वैसे भी कभी स्वीकार नहीं करेगा। आदिवासी आर्थिक लिहाज से गरीब हो सकता है लेकिन वह मानसिक रूप से दिवालिया कभी नहीं रहा। आदिवासियों की शालीन परंपरा भारतीय जीवन मूल्यों की निधि है। उस निधि का इस तरह लुटना अच्छी बात नहीं है। मुख्यमंत्री रघुवर दास को तत्काल इस घटना का संज्ञान लेना चाहिए। इस नई परिपाटी का चलन तत्काल रोका नहीं गया तो संबंधों के मामले में अराजकता के से माहौल बन जाएंगे। संस्कृति, सभ्यता और परंपरा की रक्षा बड़े ही जतन से की जाती है। आधुनिक होना जरूरी है लेकिन इस मतलब यह तो नहीं कि आदिवासी समाज अपनी जड़ों से ही कट जाए। अगर साइमन मरांडी और स्टीफन मरांडी को आदिवासियों को आधुनिक बनाने की इतनी ही चिंता है तो उन्हें उनके आर्थिक अभ्युदय पर विचार करना चाहिए। झामुमो लंबे समय तक झारखंड में सत्ता शीर्ष पर रही है। उसके नेताओं की आर्थिक श्री समृद्धि तो खूब बढ़ी लेकिन आदिवासी समाज की माली हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। आजादी के पूर्व आदिवासियों की जो स्थिति थी, आज भी वही है। ले-देकर उसके पास अपनी परंपरा थी लेकिन उसको भी राजनीतिक दलों की नजर लग गई है, इस प्रवृत्ति की जितनी भी आलोचना की जाए, कम है।

झारखंड की राजनीति में कभी सीबू सोरेन की तूती बोलती थी। वे आदिवासियों के बड़े सरमाएदार माने जाते थे, लेकिन उनके राज्य में भी आदिवासी तरक्की नहीं कर पाए और आज तो उन्हीं की पार्टी के विधायक आदिवासी संस्कृति को तार-तार कर रहे हैं। साइमन मरांडी ने सीबू सोरेन को कभी धृतराष्ट कहा था। वे हेमंत सोरेन को राज्य का मुख्यमंत्री चुने जाने से नाराज थे। यह अलग बाद है कि सरकार बनने के दो माह बाद ही हेमंत सोरेन ने साइमन मरांडी को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया था। साइमन और स्टीफन मरांडी की उपस्थिति में राज्य की सभ्यता और संस्कृति का चीरहरण निंदनीय है। ऐसे कार्यक्रमों के आयोजन से बचना ही लोकहित का तकाजा है। काश, ये दोनों नेता अपने कृत्य पर पश्चाताप करते लेकिन जिस तरह से इसे आधाुनिकता की चासनी में लपेटकर लोकप्रिय बनाने की बात की जा रही है, वह सुखद संकेत तो हरगिज नहीं है। भाजपा सरकार को इस पूरे प्रकरण को गंभीरता से लेना चाहिए और इस तरह के आयोजनों की पुनरावृत्ति न हो, इसका भी बंदोबस्त किया जाना चाहिए।

(लेखक हिंदुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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