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संपादकीय
अयोध्या: तथ्य, तारीखें, हाशिम अली का बयान और मुस्लिमों का रुख : प्रवीण गुगनानी
By Deshwani | Publish Date: 6/12/2017 3:29:42 PM
अयोध्या: तथ्य, तारीखें, हाशिम अली का बयान और मुस्लिमों का रुख : प्रवीण गुगनानी

अयोध्या के राम जन्म भूमि स्थल पर भव्य मंदिर निर्माण का कार्य अब अपनी पूर्णता की ओर दिख रहा है। ढ़ाई दशक पहले जिस विवादित बाबरी ढांचें का विध्वंस हुआ, उसके स्थान पर राम लला तो विराजित हो गए किन्तु आज तक 25 वर्षों के पश्चात भी वहां पक्का मंदिर नहीं बन पाया है। देश के एक सौ दस करोड़ हिन्दुओं के आराध्य, आदर्श और आशाओं के केंद्र रामलला एक तिरपाल से बनें टेंट में ही विराजे हुए हैं। पिछले वर्ष बाबरी विध्वंस के शौर्य दिवस मनाने के ऐन दो दिन पहले राम मंदिर-बाबरी मस्जिद प्रकरण के महत्वपूर्ण और सबसे पुराने पैरोकार हाशिम अंसारी ने राम मंदिर निर्माण के पक्ष में अपनी राय व्यक्त कर इस जागृत और महत्वपूर्ण विषय को एक नए कोण से छेड़ दिया था। आज ऐसा लगता है कि श्री राम जन्मभूमि के निर्माण का नया अध्याय हाशिम अली के उस बयान से ही प्रारम्भ होना चाहिये। रामजन्म भूमि की सांस्कृतिक परिधि में कोई भी मस्जिद नहीं होना चाहिए व जन्मभूमि स्थान पर मंदिर के अतिरिक्त कुछ और बनाने के प्रयासों व प्रस्तावों को सिरे से नकार दिया जाना चाहिये। न्यायालय में चल रहे प्रकरण में मुस्लिम पक्ष की ओर से पिछले लगभग पैंसठ वर्ष से भूमिका निभा रहे और पचास वर्षों से पक्षकार रहे हाशिम अंसारी ने कहा अपने जीवित रहते हुए कहा था कि – रामलला इलायची दाना खाएं और तिरपाल में रहें और राम मंदिर के नाम पर राजनीति करके सत्ता भोग रहे लोग लड्डू खाएं और महलों में रहें, यह उन्हें अब और बर्दाश्त नहीं होगा। हाशिम अंसारी ने इस आशय की बात भी कही कि वे चाहते हैं कि राममंदिर भूमि पर अब भव्य राम मंदिर निर्माण हो जाए. हाशिम ने जो कहा उसके संवैधानिक मायने, कानूनी पक्ष और न्यायालीय परिणाम तो कानूनविद् ही जानें, किन्तु व्यावहारिक परिणाम और सन्देश बड़े ही स्पष्ट है। दिवंगत हाशिम अंसारी के इस बयान के आलोक से इस केस के कानूनी पक्ष का मार्ग प्रशस्त होगा, इस पर तो संशय ही है किन्तु देश का मुस्लिम समुदाय हाशिम अंसारी के इस बयान से प्रेरणा ले और मुख्य धारा में आ जाए तो निश्चित ही उनका यह बयान सार्थक होगा! हाशिम के इस कथन से मुस्लिम पक्ष के उन कट्टरवादियों को झटका लगा है जो मंदिर निर्माण में रोड़े डालने के नाम पर ही अपनी राजनीतिक दुकानें चलाते रहे हैं। आशा है कि इस देश का मुस्लिम समाज मुख्य धारा में आने व अपने पूर्वजों के पाप को धोने में विश्वास रखेगा व हिन्दू समाज का विश्वास जीतने की ओर ठोस कदम शीघ्र उठाएगा।

जन्म भूमि प्रकरण के मुख्य तथ्य और तिथियाँ

जिस अयोध्या में यह समूचा विवाद केन्द्रित है वह अयोध्या प्रतापी सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी के रूप में इतिहास में चर्चित रही है। महाराजा सगर, भगीरथ और सत्यवादी हरिश्चंद्र की वंश परम्परा में दशरथ के पुत्र और भारत भूमि के आराध्य श्री राम का जन्म हुआ। विश्व प्रसिद्द स्विट्स्बर्ग एटलस में 8 वीं शताब्दी से लेकर 17वीं शताब्दी तक के अयोध्या के चित्र और उल्लेख हैं। आस्ट्रिया के ईसाई पादरी टाईफैन्थेलर ने 1740 से लेकर 1785 तक की अपनी भारत यात्रा के संस्मरणों में अवध के अपने पचास पृष्ठीय वृतांत में विस्तार से लिखा है कि अयोध्या में एक बाबरी ढांचा है जिस स्थान की पूजा हिन्दू अपने मर्यादा पुरुषोत्तम का जन्म स्थान मानते हुए श्रद्धापूर्वक करतें हैं।

अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में छह दिसंबर यानी आज की तिथि बड़ी ही महत्वपूर्ण है। 25 साल पहले इसी दिन विवादित ढांचे को ढहा दिया गया था जिसका मुकदमा आज भी लंबित है। हाशिम अंसारी के बयान के नवीनतम घटना क्रम के बाद जरूरी है कि देश का हिन्दू समाज 1528 से लेकर 1949 तक के 76 युद्धों का स्मरण कर ले और 1949 यानी स्वतंत्रता के पश्चात के सभी संघर्षों का भी लेखा जोखा अपने ह्रदय में अंकित कर ले। 

1528: अयोध्या में बाबर के सेनापति द्वारा उस स्थल पर मस्जिद का जबरिया निर्माण किया गया जहाँ इस देश के करोड़ों हिन्दुओं के आराध्य श्री राम का जन्म हुआ था और वहां हिन्दुओं का मंदिर था। 

1885: कई सारे विवादों और झगड़ो के बाद मामला अदालत में पहुंचा। महंत रघुबर दास ने फैजाबाद न्यायालय में बाबरी मस्जिद से लगे एक राम मंदिर के निर्माण की इजाजत के लिए अपील दायर की।

22 दिसंबर, 1949: बाबरी ढांचें में भगवान राम की मूर्ति प्रकट हुई। इसके बाद उस स्थान पर हिंदू नियमित रूप से पूजा करने लगे।कलेक्टर फैजाबाद नें ढांचें में सलाखों वाला गेट लगवा कर प्रशासन का ताला डलवा दिया।

16 जनवरी, 1950: गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद अदालत में एक अपील दायर कर रामलला की पूजा-अर्चना की विशेष इजाजत मांगी. उन्होंने वहां से मूर्ति हटाने पर न्यायिक रोक की भी मांग की।

5 दिसंबर, 1950: महंत परमहंस रामचंद्र दास ने हिंदू प्रार्थनाएं जारी रखने और बाबरी ढांचें में राममूर्ति को रखने के लिए मुकदमा दायर किया।

17 दिसंबर, 1959: निर्मोही अखाड़ा द्वारा विवादित स्थल हस्तांतरित करने हेतु मुकदमा दायर।

8 अप्रेल 1984: विश्व हिंदू परिषद ने बाबरी मस्जिद के ताले खोलने और राम जन्मस्थान को स्वतंत्र कराने व एक विशाल मंदिर निर्माण के लिए अभियान शुरू किया। विज्ञान भवन में प्रथम धर्मसंसद का आयोजन हुआ।

1 फरवरी, 1986: फैजाबाद जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल पर हिदुओं को पूजा की इजाजत दी। ताले दोबारा खोले गए।

1989: प्रयागराज कुम्भ में सिद्ध संत, पूज्य पाद देवराहा बाबा ने देश भर के ग्राम-ग्राम में राम मंदिर हेतु शिला पूजन का आह्वान किया, राष्ट्र भर से पौने तीन लाख शिलाएं अयोध्या लाई गईं और 9 नव. 1989 को श्री कामेश्वर जी के हाथों जन्म भूमि मंदिर का शिलान्यास हुआ।

1 जुलाई, 1989: भगवान रामलला विराजमान नाम से पांचवा मुकदमा दाखिल किया गया।

24 मई, 1990: हरिद्वार में विराट हिन्दू सम्मेलन हुआ। संतो नें इस वर्ष की देवउठनी ग्यारस यानी 30 अक्टू. 1990 मंदिर निर्माण के लिए कार सेवा प्रारम्भ करनें की घोषणा की गई।

अक्टू.1990: उप्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह ने हिन्दुओं को चुनौती प्रस्तुत कर दी और कहा कि अयोध्या में कार सेवा तो क्या परिंदे को पर भी नहीं मारनें देंगे!! मुलायमसिंग ने अयोध्या को विशाल छावनी में बदल कर चप्पे-चप्पे पर पुलिस बल तैनात कर दिया और अयोध्या आनें जानें वाले सभी आवागमन के साधनों पर रोक लगा दी।

30 अक्टू. 1990: बाबरी ढांचे पर राम भक्तों ने भगवा ध्वज फहरा दिया।

2.नव.1990: मुलायम सिंह नरसंहार पर उतारू हो गए. कोलकाता से आये राम भक्त कारसेवक दो सगे भाई कोठारी भाइयों में से एक को मकान से निकाल कर गोली मारी और जब दूसरा भाई अपने भाई की जान बचाने आया तो उसे भी वहीं गोली मार दिया। शहीद कोठारी बंधुओं की नृशंस हत्या से देश भर के हिन्दुओं का रक्त उबल उठा!!

4अप्रेल1991: इतिहास की सबसे बड़ी रैली के रूप में अंकित इस समागम में देश भर से पच्चीस लाख राम भक्त दिल्ली में एकत्रित हुए जन्मभूमि का संघर्ष तीव्र हो चला। 

अक्टूबर 1991: उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह सरकार ने बाबरी मस्जिद के आस-पास की 2.77 एकड़ भूमि का अधिग्रहण कर लिया।

9जुलाई,1992: मंदिर की नींव के चबूतरे का कार्य प्रारम्भ हुआ। प्रधान मंत्री नरसिम्हाराव नें संतो से समय माँगा। उन्हें समय देकर कार्य रोका गया।

26 सित.1992: श्री राम पादुका पूजन के कार्यक्रमों के माध्यम से देश भर में जनजागरण हुआ।

30 अक्टू.1992: दिल्ली की पाचवी धर्मसंसद में घोषणा हुई कि 6 दिस. 1992 से पुनः अयोध्या में कारसेवा प्रारम्भ होगी।

6 दिसंबर, 1992: हजारों की संख्या में कार सेवकों ने अयोध्या पहुंचकर बाबरी मस्जिद को ढहा दिया। एक अस्थाई राम मंदिर बनाया गया। उधर प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने मस्जिद के पुनर्निर्माण का वादा किया।

8 दिस.1992: अयोध्या में कर्फ्यू, जन्मभूमि परिसर केन्द्रीय सुरक्षा बालों को सौंप दिया गया।

1 जन.1991: हरिशंकर जैन नामक महानुभाव नें न्यायालय से कहा कि भगवान् श्री राम के राग, भोग, पूजन की अनुमति दी जाए।अनुमति मिल गई।

7जन. 1993: भारत सरकार ने बाबरी ढांचें को घेरते हुए उसके चारो ओर की 67 एकड़ भूमि का अधिग्रहण कर लिया। भगवान् के दर्शन हेतु कष्टप्रद घेरे और स्थितियों से गुजरने को मजबूर होने लगे हिन्दू। 

16 दिसंबर, 1992: मस्जिद की तोड़-फोड़ की जिम्मेदार स्थितियों की जांच के लिए एम.एस. लिब्रहान आयोग का गठन हुआ।

जनवरी 2002: प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यालय में एक अयोध्या विभाग शुरू किया, जिसका काम विवाद को सुलझाने के लिए हिंदुओं और मुसलमानों से बातचीत करना था।

अप्रैल 2002: अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर उच्च न्यायालय के तीन जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू की।

मार्च-अगस्त 2003: इलाहबाद उच्च न्यायालय के निर्देशों पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अयोध्या में खुदाई की। खुदाई हेतु विदेशों से विशेषज्ञ आये और सभी पक्षों के प्रतिनिधियों के साथ साथ प्रशासनिक देख रेख और वीडियोग्राफी में खुदाई कार्य किया गया। विशेषज्ञों ने बताया कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष होने के स्पष्ट प्रमाण मिले हैं। इससे सामान्य मुस्लिम समाज में भी इस स्थान को हिन्दुओं को सौंप देनें की मानसिकता पुख्ता होनें लगी।

जुलाई 2005: संदिग्ध इस्लामी आतंकवादियों ने विस्फोटकों से भरी एक जीप का इस्तेमाल करते हुए विवादित स्थल पर हमला किया।सुरक्षा बलों ने पांच आतंकवादियों को मार गिराया।

जुलाई 2009: लिब्रहान आयोग ने गठन के 17 साल बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपनी विवादास्पद रिपोर्ट सौंपी।

28 सितंबर 2010: सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहबाद उच्च न्यायालय को विवादित मामले में फैसला देने से रोकने वाली याचिका खारिज करते हुए फैसले का मार्ग प्रशस्त किया।

30 सितंबर 2010: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया जिसे सभी पक्ष असहमत हुए।

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