जापानी इन्सेफेलाइटिस से बचायेंगी होम्योपैथी की मीठी गोलियांः डा. अनुरूद्ध वर्मा
सरकार के अनेक प्रयासों के बाद भी उत्तर प्रदेश के अनेक जिलों में जापानी इन्सेफेलाइटिस में होने वाली मौतों का सिलसिला जारी हैै । अभी गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में 68 बच्चों की एक साथ मौत ने सभी को हिला कर रख दिया है। आरोपों- प्रत्यारोपों के बीच बच्चों की मौत का सिलसिला जारी है। प्रदेश एवं केन्द्र सरकार जापानी इन्सेफेलाइटिस के कहर से परेशान है और जनता भी भयभीत है। सारे समाचार पत्र एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया जापानी इन्सेफेलाइटिस से हो रही मौतों की खबरे लगातार प्रकाशित कर रहे हैं परन्तु सरकार की योजनाएं कारगर नहीं हो पा रही हैं। जापानी इन्सेफेलाइटिस जिसे मस्तिष्क ज्वर या दिमागी बुखार के नाम से भी जाना जाता है, का कहर केवल उ.प्र. में ही नहीं है बल्कि इससे आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, के कुछ क्षेत्र भी प्रभावित हैं। हां यह अवश्य है कि उत्तर प्रदेश में इसका कहर कुछ ज्यादा ही है। पिछले 35 वर्षों में लगभग 40 हजार से अधिक नन्हे-मुन्ने इस बीमारी से असमय मौत का शिकार हो चुके हैं।
आखिर क्या है जापानी इन्टिस:
जापानी इन्सेफेलाइटिस एक भयावह बीमारी है जो फ्लेवी वायरस द्वारा होती है। यह क्यूलेक्स विसनोई मच्छर के काटने से फैलता है। यह विशिष्ट मच्छर इस रोग को पक्षियों तथा जानवरों विशेषकर सुअरों के माध्यम से फैलाता है। यह सभी प्राणी एक कैरियर (संवाहक) का कार्य करते हैं। इसका सर्वाधिक प्रकोप पूर्वी भारत में मई से अक्टूबर तक तथा दक्षिण भारत में अक्टूबर से दिसम्बर तक होता है। वर्षा ऋतु तथा मच्छरों की अत्यधिक संख्या इसके फैलने में मददगार साबित होती है। यह रोग 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को ज्यादा प्रभावित करता है। वह बच्चे इसके ज्यादा शिकार होते हैं जो कम प्रतिरोधक क्षमता वाले तथा अतिसंवेतदनशील एवं अस्वास्थ्यकर स्थितियों में रहने वाले होते हैं।
जापानी इन्सेफेलाइटिस के लक्षण
1. तेज बुखार के साथ सिरदर्द
2. मांस-पेशियों में ऐंठन
3. मेरूदण्ड एवं गर्दन की मांस पेशियों में ऐंठन
4. अत्यधिक बदन दर्द
5. आंखों के सामने अंधेरा
6. उल्टी होना
7. अत्यधिक कमजोरी
8. मानसिक असंतुलन
9. बेहोशी
10.दृष्टि संबंधी परेशानी
11. चक्कर
12. पक्षाघात आदि
रोगी के लक्षण-
रोगी में मच्छर काटने के 5 से 15 दिन के बीच लक्षण प्रकट होते हैं। जापानी इन्सेफेलाइटिस से ग्रसित रोगियों की मृत्युदर बहुत अधिक है। यदि इसके प्रकोप के बाद रोगी किसी प्रकार से बच भी जाता है तो उसमें अनेक प्रकार की जटिलतायें उत्पन्न हो जाती है व इससे रोगी मानसिक व शारीरिक रूप से अपंग हो जाता है। रोगी में मतिभ्रम या लकवा जैसी अनेक प्रकार स्नायुविक गड़बड़ियां उत्पन्न हो जाती हैं। गंभीर रोगियों को तत्काल चिकित्सालय में भर्ती करा देना चाहिए।
बचाव एवं रोकथाम-
आस पास साफ सफाई रखे, गन्दगी ना होने दें तथा मच्छर ना पनपने दे।
मच्छरो से बचें।
सुअरों को आबादी से बाहर रखें।
जापानी इन्सेफेलाइटिस की वैक्सीन प्रयोग करें परन्तु वैक्सीन प्रभावित क्षेत्र के सभी बच्चों को दी जानी चाहिए। प्रदेश के सभी प्रभावित जिलों में एक से पन्द्रह साल के बच्चों के टीकाकरण के लिए वैक्सीन देना सम्भव नहीं है।
जापानी इन्सेफेलाइटिस की रोकथाम का होम्योपैथिक प्रयास-
जापानी इन्सेफेलाइटिस की रोकथाम में होम्योपैथिक दवाइयों की कारगरता को प्रमाणित करने के लिए आन्ध्र प्रदेश सरकार ने भारत सरकार की सहायता से प्रदेश में इस रोग से प्रभावित जिलों के समस्त एक से 15 वर्ष बच्चों को होम्योपैथिक दवाइयां वितरित कराई। पल्स पोलियो की तरह आन्ध्र प्रदेश में चलाये गये इस अभियान में स्वास्थ्य विभाग, शिक्षा विभाग, भारतीय चिकित्सा पद्धतियां एवं होम्योपैथिक विभाग एवं अन्य विभागों के समन्यवय से कार्यक्रम संचालित किया गया। आन्ध्र प्रदेश में लगातार इस अभियान को जारी रखने के बाद मौतों में आश्चर्यजनक रूप से कमी आयी और आन्ध्र प्रदेश में लगभग यह संख्या शून्य के बराबर हो गई इस अभियान में बेलाडोना 200 कैलकेरिया कार्ब 200 तथा ट्यूबरकुलिनम 10एम का वितरण कराया गया। होम्योपैथिक औषधियां जापानी इन्सेफेलाइटिस की रोकथाम में कारगर तो हो ही सकती हैं, साथ ही जटिलताओं को दूर करने में भी सहायक सिद्ध हो सकती है। उ.प्र. में केन्द्रीय होम्योपैथिक अनुसन्धान परिषद द्वारा बीआरडी मेडिकल कालेज गोरखपुर में एक नैदानिक परीक्षणिक इकाई स्थापित की गयी है जिसमें मरीजों की भर्ती कर एवं होम्योपैथिक औषधियों के माध्यम से उपचार किया जाता है इसके साथ ही गोरखपुर जनपद के एक ब्लाक चरगांवा को सघन कार्य के लिये चुना गया है। इसमें औषधियों की कारगरता प्रमाणित करने के लिये कार्य किया जा रहा है।
जापानी इन्सेफेलाइटिस की रोकथाम के लिए कुछ सुझाव-राज्य सरकार इस रोग के रोकथाम के लिए आन्ध्र प्रदेश की भांति प्रभावित क्षेत्रों में होम्योपैथिक औषधियां का वितरण कराये। रोग के लक्षण, बचाव, उपचार एवं होम्योपैथी के माध्यम से बचाव की जानकारी का प्रचार-प्रसार पर्चों, समाचार-पत्रों एवं अन्य माध्यमों से कराये।
अभियान को सफल बनाने के लिए विशेषज्ञों की सलाह लेनी चाहिए। समान्वित प्रयास से जापानी इन्सेफेलाइटिस से होने वाली मौतों को रोका जा सकता है परन्तु इसके लिये सरकार को आगे आना होगा तभी यह प्रयास मूर्त रूप प्राप्त कर सकेगा और बच्चों की असमय मौतों को रोका जा सकेगा।
(लेखक डॉ. अनुरूद्ध वर्मा होम्योपैथिक चिकित्सक और केन्द्रीय होम्योपैथी परिषद के सदस्य हैं।)