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नीतीश का 'इमेज सेविंग' कदम! - डॉ. प्रभात ओझा
By Deshwani | Publish Date: 26/7/2017 8:45:20 PM
नीतीश का 'इमेज सेविंग' कदम! - डॉ. प्रभात ओझा

 पूरे पांच साल तक बीजेपी के साथ सरकार चलाने के बाद महागठबंधन के भागीदार बने नीतीश कुमार के बारे में चलताऊ ढंग से कहा जाता है कि वह वक्त को थोड़ा पहले ही पहचान लेते हैं। लगता है कि इस बार भी उन्होंने समय को ही समझने की कोशिश की है। समय ऐसा आ रहा है जब लालू परिवार पर लगे आरोपों के बीच उसके कई सदस्यों पर जांच एजेंसियों का शिकंजा कसता जा रहा है। इस परिवार का एक सदस्य नीतीश सरकार में निवर्तमान उप मुख्यमंत्री रहा। विवाद भी इसी उप मुख्यमंत्री यानी तेजस्वी यादव को लेकर ही है। लालू परिवार के दो ही सदस्य, यानी उनके दोनों बेटे नीतीश सरकार के हिस्सा रहे। पत्नी, खुद लालू, बेटी और दामाद के नाम विवादों में हैं, तो भी नीतीश इस बात से किनारा कर लेते। नैतिक रूप से तो सरकार से प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से जुड़े हर व्यक्ति के भ्रष्टाचार की जिम्मेदारी सरकार पर बनती है। मान लेते हैं कि वह दौर ही खत्म हो गया, जब ऐसी नैतिक जिम्मेदारियों का मतलब हुआ करता था। जब कोई इतना जिम्मेदार नहीं रहा तो नीतीश से भी बहुत उम्मीद नहीं की जानी चाहिए। फिर भी बिहार में सुशासन बाबू के नाम से मशहूर नीतीश कुमार की वर्तमान सरकार उनके इस रूप की भी हिफाजत नहीं कर पा रही थी, ईमानदारी तो और बड़ी बात है।

शासन, सुशासन और कुशासन की बहस लंबी हुआ करती है, बिहार में भी हो सकती है। फिर भी इतना तो तय है कि नीतीश और ईमानदारी एक दूसरे के पर्याय हैं, यह पूरे बिहार में ही नहीं, बाहर भी स्थापित सा हो रहा था। चुनाव जीतने की रणनीति के तहत कांग्रेस के साथ लालू प्रसाद यादव के राजद से भी जब नीतीश के जदयू ने समझौता किया, उसी वक्त इस गठबंधन के स्थायी होने पर शक जाहिर किया जाने लगा था। अलग बात है की ज्यादा सीटें जीतकर भी लालू प्रसाद ने पूर्व समझौते के तहत गठबंधन के नेता के तौर पर नीतीश को सीएम की कुर्सी देना सहज ही मान लिया था। समझा जा रहा था कि राजनीति में अपरिपक्व बेटों की ट्रेनिंग के लिए लालू ने एक बेहतर मौका देखा था। अब क्या पता कि कभी समाजवादी राजनीति के तेज तर्रार नेता रहे लालू ने खुद अपने परिवार को भी सम्पत्ति बटोरो अभियान में जिस तरह भागीदार बनाया, उसका भांडा भी फूटना था। भांडा फूटा तो लालू परिवार ही परेशान नहीं हुआ, उसे साथ लेकर चलने वाले सीएम नीतीश कुमार की मंशा पर भी सवाल खड़े होने लगे थे।

रही बात भाजापा विरोधी गठबंधन की तो दोनों ही पक्ष ताल ठोंकर इसे बचाने का दावा कर रहे हैं, पर दावे हैं दावों का क्या? सच यह है कि जिस तरह के आरोप-प्रत्यारोप लगने लगे हैं, दोनों पक्षों का फिर से साथ आना मुमकिन नहीं लग रहा। इस बीच खास बात यह हुई है कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भ्रष्टाचार विरोधी अभियान में शामिल होने के लिए नीतीश कुमार को बधाई दी है। पटना में भाजपा विधायक दल के नेता सुशील मोदी ने भी कह दिया है कि उनकी पार्टी मध्यावधि चुनाव नहीं चाहती। बहरहाल, नई सरकार की सम्भावनाएं तलाशी जाएंगी, अभी तो नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों से दूर रहने के अपने इमेज को बचाने की ही कोशिश की है।

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