ब्रेकिंग न्यूज़
मोतिहारी के केसरिया से दो गिरफ्तार, लोकलमेड कट्टा व कारतूस जब्तभारतीय तट रक्षक जहाज समुद्र पहरेदार ब्रुनेई के मुआरा बंदरगाह पर पहुंचामोतिहारी निवासी तीन लाख के इनामी राहुल को दिल्ली स्पेशल ब्रांच की पुलिस ने मुठभेड़ करके दबोचापूर्व केन्द्रीय कृषि कल्याणमंत्री राधामोहन सिंह का बीजेपी से पूर्वी चम्पारण से टिकट कंफर्मपूर्व केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री सांसद राधामोहन सिंह विभिन्न योजनाओं का उद्घाटन व शिलान्यास करेंगेभारत की राष्ट्रपति, मॉरीशस में; राष्ट्रपति रूपुन और प्रधानमंत्री जुगनाथ से मुलाकात कीकोयला सेक्टर में 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को 9 गीगावॉट से अधिक तक बढ़ाने का लक्ष्य तय कियाझारखंड को आज तीसरी वंदे भारत ट्रेन की मिली सौगात
संपादकीय
झुंझुनू के कण-कण में अंकित है रणबांकुरों की शौर्यगाथाः रमेश सर्राफ
By Deshwani | Publish Date: 26/7/2017 12:07:03 PM
झुंझुनू के कण-कण में अंकित है रणबांकुरों की शौर्यगाथाः रमेश सर्राफ

शुरा निपजे झुंझुनू, लिया कफन का साथ।
रण-भूमि का लाडला, प्राण हथेली हाथ।।
उक्त कहावत को चरितार्थ किया है, झुंझुनू जिले के अमर सपूतों ने। इस वीर भूमि के रणबांकुरों ने जहां स्वतंत्रता पूर्व के आन्दोलनो में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया वहीं स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद की लड़ाइयों में भी इस धरती की माटी में जन्मे सेनानी देश की धरोहर साबित हुए हैं। यहां की धरती ने सदियों से जन्म लेते रहे सपूतों के दिलों में देशभक्ति की भावना को प्रवाहित किया है। शहादत राजस्थान की परम्परा है। यहां गांव-गांव में लोकदेवताओं की तरह पूजे जाने वाले शहीदों के स्मारक इस परम्परा के प्रतीक हैं। 
इस जिले के वीरों ने बहादुरी का जो इतिहास रचा है उसी का परिणाम है कि भारतीय सैन्य बल में उच्च पदों पर सम्पूर्ण राजस्थान की ओर से झुंझुनू का ही वर्चस्व रहा है। वास्तव में यहां की धरती को यह वरदान सा प्राप्त होना प्रतीत होता है कि इस पर राष्ट्रभक्ति के कीर्तिमान स्थापित करने वाले लाडेसर ही जन्म लेते हैं। चाहे 1948 का कबायली हमला हो या 1962 का भारत चीन युद्ध, चाहे 1965 व 1971 का भारत-पाक युद्ध यहां के वीरों ने मातृभमि की रक्षा हेतु सदैव अपना जीवन बलिदान किया हैं। जल,थल व वायु तीनों सेनाओं की आन के लिए यहां के नौजवान सैनिकों के उत्सर्ग को राष्ट्र कभी भुला नही सकता है।
इस क्षेत्र के सैनिकों ने भारतीय सेना में रहकर विभिन्न युद्धो में बहादुरी एवं शौर्य की बदौलत जो शौर्य पदक प्राप्त कियें हैं वे किसी भी एक जिले के लिए प्रतिष्ठा एवं गौरव का विषय हो सकता है। सीमा युद्ध के अलावा जिले के बहादुर सैनिकों ने देश मे आंतरिक शान्ति स्थापित करने में भी सदैव विशेष भूमिका निभाई है। सीमा संघर्ष एवं नागा होस्टीलीटीज हो या ऑपरेशन ब्लूस्टार या श्रीलंका सरकार की मदद हेतु किये गये आपरेशन पवन अथवा कश्मीर में चलाया गया आतंकवादी अभियान रक्षक या कारगिल युद्व। सभी अभियान में यहां के सैनिको ने शहादत देकर जिले का मान बढ़ाया है। 
झुंझुनू जिले में प्रारम्भ से ही सेना में भर्ती होने की परम्परा रही है तथा यहां गांवों में हर घर में एक व्यक्ति सैनिक होता था। सेना के प्रति यहां के लगाव के कारण अंग्रेजो ने यहां ‘‘ शेखावाटी ब्रिगेड ‘‘की स्थापना कर सैनिक छावनी बनायी थी। जिले के वीर जवानों को उनके शौर्यपूर्ण कारनामों के लिए समय-समय पर भारत सरकार द्वारा विभिन्न अलंकरणों से नवाजा जाता रहा है। अब तक इस जिले के कुल 117 सैनिकों को वीरता पुरस्कार से नवाजा जा चुका है, जो पूरे देश में किसी एक जिले के सर्वाधिक है। 
वीरचक्र प्राप्त करने वालों में 1947-48 के कबायली हमले में कैप्टन बसन्ताराम, सुबेदार सांवलराम, गुगनराम, हनुमानाराम, हवलदार रक्षपाल, नायक बीरबलराम, सिपाही हनुमानाराम, लादुराम व मोहर सिंह(मरणोपरान्त), 1962 के भारत-चीन युद्व में सूबेदार हरीराम को मरणोपरान्त,1965 के भारत-पाक युद्व में कैप्टन मोहम्मद अयूब खान,हवलदार दयानन्द मरणोपरान्त,1971 के भारत-पाक युद्व में एडमिरल विजय सिंह शेखावत,मेजर एच.एम.खान मरणोपरान्त,कैप्टन पुरूषोत्तम तुलस्यान,नायब सूबेदार रामसिंह,हवलदार जसवंत सिंह,गंगाधर मरणोपरान्त,नायक निहालसिंह, रघुवीरसिंह, सिपाही बिड़दाराम मरणोपरान्त, सिपाही रामकुमार, सूबेदार मदनलाल व नायब सूबेदार मदनलाल मरणोपरान्त शामिल है।
1971 के भारत-पाक युद्व में एडमिरल विजयसिंह शेखावत को परम विशिष्ठ सेवा मेडल,अति विशिष्ठ सेवा मेडल, वीर चक्र व आर्मी डिस्पेच सर्टिफिकेट, ले.जनरल कुन्दन सिंह को परम विशिष्ठ सेवा मेडल, ब्रिगेडियर आर.एस.श्योरान को अतिविशिष्ठ सेवा मेडल दिया गया। सूबेदार दयानन्द,नायक मेघराज सिंह मरणोपरान्त, नायक हरिसिंह मरणोपरान्त,सिपाही रामस्वरूप मरणोपरान्त को कीर्तिचक्र से सम्मानित किया गया। मेजर रणवीर सिंह शेखावत,सूबेदार मेहरचन्द,नायक मनरूपसिंह, सिपाही महिपालसिंह, हवलदार भीमसिंह सभी मरणोपरान्त,हवलदार जगदीश प्रसाद, सिपाही नेत्रभानसिंह को शौर्यचक्र प्रदान किया गया। इसके अलावा जिले के 23 सैनिकों को सेना मेडल,व 14 को मेन्सन इन डिस्पेच से सम्मानित किया गया था।
भारतीय सेना में योगदान के लिए झुंझुनू जिले का देश में अव्वल नम्बर है। वर्तमान में इस जिले के 45 हजार जवान सेना में कार्यरत हैं। वहीं 62 हजार भूतपूर्व सैनिक हैं। आजादी के बाद भारतीय सेना की और से राष्ट्र की सीमा की रक्षा करते हुए यहां के 422 जवान शहीद हो चुके हैं। जो पूरे देश में किसी एक जिले से सर्वाधिक है। कारगिल युद्व के दौरान पूरे देश में 527 जवान शहीद हुये थे जिनमें यहां के 22 सैनिक शहीद हुये थे जो पूरे देश में किसी एक जिले से शहादत देने वालों में सर्वाधिक जवान थे। कारगिल युद्व के बाद से अब तक झुंझुनू जिले के 114 से अधिक सैनिक जवान सीमा पर शहीद हो चुके हैं।
यहां के जवानों ने सेना के सर्वोच्च पदों तक पहुंच कर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है। इस जिले के एडमिरल विजय सिंह शेखावत भारतीय नौसेना के अध्यक्ष रह चुके हैं वहीं कुन्दन सिंह शेखावत थल सेना में लेफ्टिनेन्ट जनरल व भारत सरकार के रक्षा सचिव रह चुके हैं। जे.पी.नेहरा , सत्यपाल कटेवा सेना में लेफ्टिनेन्ट जनरल, कंवर करणी सिंह आर्मी हास्पिटल,दिल्ली में मेजर जनरल पद पर कार्यरत हैं। इसके अलावा यहां के काफी लोग सेना में ब्रिगेडियर,कर्नल,मेजर सहित अन्य महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत हैं। देश में झुंझुनू एकमात्र ऐसा जिला है, जहां सैनिक छावनी नहीं होने के उपरान्त भी गत पचास वर्षो से अधिक समय से सेना भर्ती कार्यालय कार्यरत है। इससे यहां के काफी युवकों को सेना में भर्ती होने का मौका मिल पाता है। यहां के हवलदार मेजर पीरूसिंह शेखावत को 1948 के युद्व में वीरता के लिए देश का सर्वोच्च सैनिक सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया जा चुका है। परमवीर चक्र पाने वाले पीरूसिंह शेखावत देश के दूसरे व राजस्थान के पहले सैनिक थे। यहां के सैनिकों ने द्वितीय विश्व युद्व में भी बढ़चढ़ कर भाग लिया था। आज भी यहां के 406 द्वितीय विश्व युद्व के पूर्व सैनिकों या उनकी विधवाओं को सरकार से पेंशन मिल रही है। 
जिले में इतने अधिक लोगों का सेना से जुड़ाव होने के उपरान्त भी सरकार द्वारा सैनिक परिवारों की बेहतरी व सुविधा उपलब्ध करवाने के लिये कुछ भी नहीं किया गया है। कारगिल युद्व के समय सरकार द्वारा घोषित पैकेज में यह बात भी शामिल थी कि हर शहीद के नाम पर उनके गांव में किसी स्कूल का नामकरण किया जायेगा, मगर जिले के ऐसे 24 शहीदों के नाम पर अब तक सरकार ने स्कूलों का नामकरण कई वर्ष बीत जाने के बाद भी नहीं किया है। ऑपरेशन कारगिल विजय के दौरान 28 दिसम्बर 1999 को सैनिक अमरसिंह ने देश रक्षा में अपने प्राणों की आहुति दी थी। लेकिन आज भी शहीद के परिजनों को न्याय की आश है, सरकारें बदलती रही पर शहीद के परिजनों की किसी ने सुध नही ली। भारत सरकार की और से कारगिल शहीद के परिजनों को दी जाने वाली सभी सुविधाएं आज तक शहीद अमरचन्द जांगिड़ के परिजन को भी नही मिल पाई हैं। शहीद वीरांगना सुशीला ने बताया कि शहीद परिवार के भरण-पोषण के लिए शहीद परिवजन को आवंटित किया जाने वाला पेट्रोल पम्प भी इतने वर्ष बीत जाने के बाद आज तक स्वीकृत्त नही हो पाया है।
जिले की खेतड़ी तहसील के गोठड़ा गांव के शहीद धर्मपाल सैनी 14 अक्टूबर, 2012 को अफ्रीका के कांगो में शहीद हो गए थे। धर्मपाल सैनी के अंतिम संस्कार 19 अक्टूबर, 2012 के समय ऊर्जा व जलदाय मंत्री डॉ.जितेंद्रसिंह ने शहीद परिवार की सहायता करवाने के लिए लंबी चौड़ी घोषणाएं की थी। उसके बाद 13 अप्रेल, 2013 को शहीद की मूर्ति का अनावरण मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने किया था। उस वक्त भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने शहीद परिवार को सहायता दिलाने के लिए कई लंबी चौड़ी घोषणाएं की थी। मगर उनमें से आज तक कोई भी घोषणा पूरी नहीं हुई है और ना ही सरकार की तरफ से मिलने वाला पैकेज भी अभी तक शहीद के परिवार को मिल पाया है। अब तक सरकारी सहायता के नाम पर सिर्फ एक लाख रुपये मिले हैं। सरकार ने शहीद के परिवार को एक फ्लैट व 25 बीघा सिंचित भूमि देने की घोषणा की थी। मुख्यमंत्री द्वारा शहीद के नाम से गोठड़ा गांव के स्कूल का नामकरण, सडक़ का निर्माण व बिजली कनेक्शन की घोषणाएं अभी तक मुंह बाए खड़ी हैं।
30 साल बीतने पर भी कई सैनिक परिवार 25 बीघा जमीन के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हाईकोर्ट ने सैनिक परिवारों के पक्ष में फैसला दिया। सरकार इसे नहीं मानती। सज्जन कंवर निवासी खिरोड़, संतोष कंवर निवासी झाझड़, फूलकंवर निवासी बुगाला का परिवार ऐसी ही लड़ाई लड़ रहा है। सज्जन कंवर ने बताया कि पति रघुनाथसिंह पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध लड़े थे। वे 1982 में सेना से रिटायर हो गए थे। इसके बाद 1983 में जमीन के लिए आवेदन किया। 2004 में रघुनाथ सिंह की मौत हो गई। पति जमीन मिलने का इंतजार करते-करते चले गए। दो महीने बाद जमीन मिल सकी। वर्ष 2009 में सैनिक परिवार हाईकोर्ट की शरण में चला गया, इसके बाद 12 मार्च 2014 को हाईकोर्ट का फैसला सैनिक परिवार के पक्ष में गया। इसके बाद सरकार इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट की डबल बेंच में चली गई।
झुंझुनू जिले की जनता के लिए सैनिक स्कूल खुलवाना आज भी सपना बना हुआ है। करीब 15 साल पहले करगिल तो हमने जीत लिया, लेकिन शहीदों के परिवारों के सामने समस्याओं के कई करगिल हैं। जिन पर उन्हें जीत दर्ज करनी है। सरकार द्वारा झुंझुनू जिले को देश का सैनिक जिला घोषित कर यहां के सैनिक परिवारों को सुविधाएं उपलब्ध करवाने की तरफ पर्याप्त ध्यान दें तो आज भी झुंझुनू क्षेत्र से अनेक पीरूसिंह पैदा होकर देश के लिये प्राण न्योछावर कर सकते हैं।
image
COPYRIGHT @ 2016 DESHWANI. ALL RIGHT RESERVED.DESIGN & DEVELOPED BY: 4C PLUS