संपादकीय
इस्राइल सुलझाएगा एसवाइएल इश्यू : रमेश ठाकुर
By Deshwani | Publish Date: 6/7/2017 7:20:47 PMप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस्राइल यात्रा का सकारात्मक असर अभी से दिखने लगा है। एसवाईएल मुद्दा हरियाणा-पंजाब के लिए वर्षों से नासूर बना हुआ है। इसे सुलझाने की पहल इस्राइल ने की है। इस्राइल ने एसवाईएल पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए प्रधानमंत्री मोदी के समक्ष एक मसौदा प्रस्तुत किया है। मसौदे पर बात करने के लिए इस्राइल ने अगले माह पंजाब के मुख्यमंत्री को अपने यहां बुलाया है। भारत के कुछ ऐसे और भी आंतरिक मुद्दे हैं, जिन्हें सुलझाने में इस्राइल प्रत्यक्ष रूप से सहयोग करना चाहता है। एसवाईएल मसला उनमें से एक है। एसवाईएल नहर के पानी के लिए झगड़ रहे हरियाणा और पंजाब सिंचन चिंतन के लिए इस्राइली विज्ञानियों की ओर बड़ी आशा भरी निगाहों से देख रहे हैं। इस मुद्दे को लेकर इस्राइल ने पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह को आंमत्रित किया है जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया है। वह सितंबर माह में इस्राइल जाएंगे।
हरियाणा में करनाल स्थित इस्राइली सेंटर पर हर साल लगभग बीस हजार से भी ज्यादा किसान नर्सरी में सब्जियों के हाइब्रिड बीज और इस्राइली तकनीक सीखने आते हैं। एसवाइएल पर इस्राइल की दिलचस्पी का हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने स्वागत किया है। उनको उम्मीद है कि पंजाब के मुख्यमंत्री वहां जाएंगे तो कोई न कोई हल जरूर निकलेगा। इस्राइल सरकार की इस पहल पर हरियाणवी लोगों में एक उम्मीद की किरण जगी है क्योंकि अब सतलुज-व्यास के पानी में से उनको उनका हक मिलेगा। जो भी निर्णय हों उसे लागू करने की दोनों राज्यों की जिम्मेदारी होगी। इस पर राजनीति नहीं करनी चाहिए। असलियत यह है कि हरियाणा को अस्तित्व में आये 50 साल बीत चुके हैं। पानी के लिए वह वर्षों से लड़ रहा है। आगामी वर्षों में इंडो-इस्राइल एग्रीकल्चर प्रोजेक्ट के माध्यम से इस्राइल दोनों राज्यों के साथ अपने संबंध नयी ऊंचाई पर ले जाने को कमर कस रहा है। कुल मिलाकर मोदी की इस्राइल यात्रा भारत के लिए विशेष हितकर साबित होगी।
दोस्ती की नई इबारत लिखने के लिए भारत- इस्राइल दशकों से एक दूसरे की राह ताक रहे थे। पहल कौन करे, इसका इंतजार किया जा रहा था। आखिर वह वक्त आया जब खुद भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आगे बढ़कर इस्राइल को दोस्ती की नई पटकथा लिखने को आमंत्रित किया और पहुंच गए इस्राइल। इस्राइल ने मोदी का जिस गर्मजोशी से स्वागत किया, पूरा संसार देखता रह गया। किसी दूसरे नेता के लिए शायद ही इस्राइल ने अभी तक इतनी गर्मजोशी से स्वागत किया हो। मोदी जब तेल अवीव एयरपोर्ट पहुंचे तो इस्राइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू अपनी कैबिनेट के साथ खुद उनके स्वागत के लिए वहां उपस्थित थे। नेतन्याहू के अलावा मोदी के आवभगत के लिए वहां के तमाम विपक्षी नेता भी मौजूद थे। पूर्व में ऐसा विशेष स्वागत या तो पोप का हुआ था या अमेरिकी राष्ट्रपतियों का।
बातचीत के लिए जब दोनों नेता आमने-सामने बैठे तो इस्राइल की ओर से एसवाईएल पर चर्चा की गई। इसे सुलझाने के लिए उन्होंने अपने फार्मूले को पेश किया। पीएम मोदी को उनका फार्मूला पसंद आया। इस दिशा में आगे काम करने को कहा। मोदी का इस्राइल दौरा अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति के नजरिये से न सिर्फ भारत के लिए विशिष्ट माना जा रहा, बल्कि इस्राइल के लिए भी उतना ही अहम है। मोदी इस्राइल की धरती पर कदम रखने वाले पहले प्रधानमंत्री हैं। पूर्व के भारतीय प्रधानमंत्री इससे पहले इस्राइल क्यों नहीं गए, यह सवाल अब आगे नहीं दोहराया जाएगा। उसका जवाब मोदी ने सबको दे दिया। इस्राइल आना-जाना अब लगा रहेगा। क्योंकि फिलीस्तीन और इस्राइल के बीच संतुलन बनाकर चलने की भारत की नीति को पीछे छोड़कर मोदी संबंधों की नई राह पर बढ़े हैं। पिछले माह ही फिलीस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने भारत को दौरा किया था। भारत और फिलीस्तीन के बीच कृषि, खेल, स्वास्थ्य, इलेक्ट्रोनिक्स और आईटी क्षेत्र में पांच समझौते भी हुए थे। यह भी अभूतपूर्व है कि कोई भारतीय नेता इस्राइल जाए और फिलीस्तीन न जाए। वर्ष 1992 में इस्राइल से भारत के औपचारिक कूटनीतिक संबंध बने और अब ये रणनीतिक संबंधों में परिवर्तित हो गए। दोस्ती का सिलसिला यूं ही आगे चलता रहे, इस बात पर बल दिया जाएगा।
गौरतलब है कि भारत और इस्राइल के बीच रक्षा संबंधों की शुरुआत 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान ही हुई थी। इसके अलावा करगिल युद्ध के वक्त 1999 में जब देश के पास तोपों की कमी थी, तब इस्राइल ने भारत की ओर मदद का हाथ बढ़ाया। भारत के ज्यादातर यूएवी इस्राइली ही हैं और इसी साल दो अरब डॉलर के रक्षा सौदों की अहमियत भी कम नहीं है। इनमें सतह से हवा में मार करने वाला मिसाइल सिस्टम शामिल है। रक्षा, संरक्षा और आतंकवाद से निपटने की स्मार्ट इस्राइली टेक्नालॉजी पर भारत की निगाह है। मोदी की इस यात्रा पर जिन राज्यों की आस टिकी है, उनमें गुजराती हीरों के कारोबारियों के साथ ही हरियाणा और पंजाब के किसान भी शामिल हैं। इस्राइल के साथ कृषि, बागवानी और जलसंचय के सबसे ज्यादा साझा कार्यक्रम इन्हीं दोनों राज्यों में चल रहे हैं।
नहर के पानी को लेकर हरियाणा और पंजाब के बीच एसवाईएल मसला बहुत पुराना है। इसे सुलझाने के लिए कई प्रयास हुए, लेकिन सब बेअसर साबित हुए। हालांकि इस मसले को सुलझाने के लिए इस्राइल ने अपने स्तर पर पहल की है। पंजाब पुनर्गठन अधिनियम के अन्तर्गत एक नवंबर 1966 को हरियाणा अलग राज्य बना था, पर पंजाब व हरियाणा के बीच पानी का बंटवारा नहीं हुआ। विवाद खत्म करने के लिए केंद्र ने अधिसूचना जारी करके हरियाणा को 3.5 एमएएफ पानी आवंटित कर दिया। इसी पानी को लाने के लिए 212 किमी लंबी एसवाइएल नहर बनाने का निर्णय हुआ था। हरियाणा ने अपने हिस्से की 91 किमी नहर का निर्माण वर्षो पूर्व पूरा कर दिया था, लेकिन पंजाब की ओर से अब तक विवाद चला आ रहा है। वह हरियाणा को पानी देना ही नहीं चाहता। इसके पीछे उसकी दलील है कि यदि वह नहर के जरिए हरियाणा को पानी देता है तो राज्य में जल संकट गहरा जाएगा। पंजाब को अपने दिनोंदिन घट रहे जलस्तर की चिन्ता सता रही है। इसलिए वह इस मसले पर अड़ंगा डालता रहा है। फिर भी समय की मांग है कि इस मुद्दे को अब सुलझा लिया जाय।