दुमका, (हि.स.)। शहर के मास्टर प्लान में शामिल होने वाले कुल 42 गांवों को शहर में मिलाने का कैबिनेट के निर्णय के विरोध में शुक्रवार को पारंपरिक हथियारों से लैस विरोध रैली एवं जुलूस निकाला गया। रैली को सिदो-कान्हू मुर्मू चौक से स्वतंत्रा सेनानी सिदो-कान्हू मुर्मू की प्रतिमा पर माल्यापर्ण कर निकाला गया। रैली सिदो-कान्हू मांझी परगना बैसी के बैनर तले निकाली गई। इसका संयुक्त नेतृत्व ग्रामीणों, रैयतों, मुखिया, वार्ड सदस्यों, ग्रामप्रधान, मांझीबाबा, गुडीत, नायकी, जोगमांझी, भोक्ता, कुड़म नायकी और प्राणिक ने सामूहिक रूप से की। रैली सिदो-कान्हू मुर्मू चैक से शहर के विभिन्न पथ पर होते हुए समाहरणालय कार्यालय परिसर पहुंची, जहां ग्रामीणों ने डीसी के माध्यम सीएम और गवर्नर के नाम मांग पत्र सौंपा। साथ ही ग्रामीणों ने सांसद शिबू सोरेन प्रतिनिधि विजय कुमार सिंह और प्रतिपक्ष के नेता हेमंत सोरेन के विधायक प्रतिनिधि को भी ग्रामसभा का प्रति और मांग पत्र सौंपा। ग्रामीणों ने ग्रामसभा प्रति और मांग पत्र के माध्यम दुमका शहर के मास्टर प्लान के अन्तर्गत गांवों को शहर में नहीं जोड़े का आग्रह किया है।
ग्रामीणों का कहना है कि दुमका जिला अनुसूचित क्षेत्र में आता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 244 के तहत जनजातीय समुदाय की सुरक्षा एवं संरक्षण प्रदान करने के लए विशेष प्रावधान रखा गया है। शहरीकरण के तहत अनुसूचित गांवों को यहां के जनजाति समुदाय से मिली कानूनी संरक्षण एवं सुरक्षा समाप्त होने का खतरा है। इसके फलस्वरूप आदिवासी समुदाय, मूलवासियों, किसानों, गरीबों का जमीन का अतिक्रमण होने की बात कही, जिससे आदिवासी और मूलवासियों का अस्तित्व खतरे में पड़ने की संभावना है। ग्रामीणों ने कहा कि जहां एक ओर सरकार आदिवासी और मूलवासी के भावनाओं और हित के विरुध सीएनटी-एसपीटी एक्ट का संशोधन और स्थानीय नीति लाई है। वहीं शहर के विस्तारीकरण कर गांवों को जोड़ कर किसानों, ग्रामीणों, गरीबों, आदिवासी, मूलवासी के हित के विरुद्ध काम कर रही है। जिन गांवों को दुमका शहर में जोड़ा जा रहा है, वहां 90 फीसदी आबादी की मुख्य आजीविका कृषि है। गांवों को शहर से जोड़ने का सीधा मतलब है कि किसानों और गरीबों का दमन। गांवों को शहर से जोड़ने से आदिवासियों का मांझी परगना, प्रधानी, मांझी, प्रधान पूर्ण रूप से समाप्त हो जाएंगे।