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चतरा
जैविक खाद का उत्पादन कर आत्मनिर्भर हो रही हैं देवरिया की महिलायें
By Deshwani | Publish Date: 21/1/2017 3:09:28 PM
जैविक खाद का उत्पादन कर आत्मनिर्भर हो रही हैं देवरिया की महिलायें

चतरा, (हि.स.)। चतरा के देवरिया गांव की महिलाएं अपने हौसले के पंखों के साथ गांव की तस्वीर बदलने में जुटी हुई हैं। सदर प्रखंड के देवरिया गांव में महिलाओं ने रासायनिक खाद को अलविदा कहकर जैविक खाद का प्रयोग करना शुरू किया है। 

इतना ही नहीं महिलाएं समूह बनाकर दूसरे गांव में भी यह अभियान चला रही है। इस सकारात्मक अभियान का ही प्रतिफल है कि देखते-देखते एक ही गांव में तकरीबन 150 से भी ज्यादा महिलाओं ने जैविक खाद यानी वर्मी कम्पोस्ट का उत्पादन करना शुरू कर दिया है। चतरा के जिला कृषि पदाधिकारी अशोक सिन्हा ने कहा है कि यदि यह प्रयोग सफल रहा तो केंचुआ खाद का व्यावसायिक उत्पादन शुरू किया जायेगा। गौरतलब है कि देवरिया गांव में महिलाओं ने अपने प्रयास से ही वर्मी कम्पोस्ट का उत्पादन शुरू किया और अब अपने ही उत्पाद का खेतों में प्रयोग कर रही हैं। इन महिलाओं ने अपने-अपने घरों में जैविक खाद का उत्पादन शुरू किया और अब यह अभियान दूसरे गांवों तक पहुंचा रही है। 
दरअसल करीब तीन महीना पहले नाबार्ड के सहयोग से गांव में वर्मी कम्पोस्ट के उत्पादन के लिये शिविर का आयोजन किया गया| उसके बाद महिलाओं ने अपनी लागत से वर्मी कम्पोस्ट का उत्पादन करने की ठान ली और एक ही गांव में 156 वर्मी कम्पोस्ट बेड बना डाले। देवरिया गांव की प्रीति देवी ने बताया कि वर्मी कम्पोस्ट से फसल को काफी फायदा होता है और फसल में कीट भी नहीं लगता। चंपा देवी कहती हैं कि पहले गोबर और कचरे की महत्त्व से वे अनभिज्ञ थी और आज इसे सोना मानकर उसका उपयोग जैविक खाद के रूप में करते हुए अपने खेतों में बेहतर उत्पादन कर रही हैं| वहीं देवरिया गांव के ही एक बुजुर्ग रामस्वरूप पाण्डेय ने बताया कि महिलाओं के प्रयास से गांव की तकदीर बदल रही है। इस काम में महिलाओं ने काफी सराहनीय प्रयास किया है। उन्होंने बताया कि केंचुआ खाद से कम लागत पर फसल के उत्पादन में काफी वृद्धि हुई है। महिलाओं को जागरूक करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता उदय सिंह व राजेश ने बताया कि सबसे पहले महिलाओं का समूह बनाया गया। उसके बाद वर्मी कम्पोस्ट के उत्पादन का वीडियो क्लिप दिखाते हुए देवरिया पंचायत के पांच गांवों की महिलाओं को इसका प्रशिक्षण दिया गया। 
उन्होंने कहा कि महिलाओं ने अपने ही दम पर वर्मी कम्पोस्ट का बेड तैयार किया और शुरू हो गया केंचुआ खाद का उत्पादन। उदय सिंह बताते हैं कि आज महिलाओं की मेहनत ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है और इसका परिणाम देवरिया के खेत-खलिहानों के साथ-साथ यहां की ग्रामीण महिलाओं के चेहरे पर भी साफ झलक रही है। इधर, चतरा के जिला कृषि पदाधिकारी अशोक सिन्हा ने बताया कि देवरिया गांव में वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन का प्रयोग पूरी तरह से सफल रहा है। 
उन्होंने कहा कि इस सफलता का मुख्य कारण है कि गांव की महिलाओं ने यह काम काफी सजगता से शुरू किया है। चतरा जिला के देवरिया गांव के महिलाओं की मेहनत अब खेतों की हरियाली ही साफ बयां कर रही है| महिलायें रासायनिक खाद को बाय-बाय कर नई परम्परा की शुरुआत करते हुए इस अभियान को दूसरे गांवों तक पहुंचाने में जुटी हुई हैं।
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