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नोटबंदी का असर काफी हद तक कम और मांग की स्थिति में सुधार : फिक्की सर्वे
By Deshwani | Publish Date: 29/4/2017 5:02:06 PM
नोटबंदी का असर काफी हद तक कम और मांग की स्थिति में सुधार : फिक्की सर्वे

नई दिल्ली, (हि.स.)। फिक्की के नवीनतम बिजनेस कॉन्फिडेंस सर्वे के नतीजों से संकेत मिलता है कि सरकार द्वारा उठाए गए नोटबंदी के कदम का अर्थव्यवस्था पर असर अनुमान के मुकाबले काफी तेजी से कम हुआ है। साथ ही काफी अगले चरण में अर्थव्यवस्था में नकदी बढ़ाने (रीमोनेटाइजेशन) से कॉरपोरेट सेक्टर के लिए हालात अब सामान्य होता लग रहा है। 

नवीनतम सर्वे में कारोबार जगत का भरोसा नए सिरे से बढ़ता देखा गया है, पिछली आठ तिमाहियों में सबसे ज्यादा, जबकि इसके पिछले सर्वे में इसमें गिरावट देखी गई थी, क्योंकि नोटबंदी से मांग सिकुड़ जाने की वजह से भरोसे का काफी चोट पहुंची थी।
सर्वे में हिस्सेदार कंपनियों ने बताया कि मौजूदा दशाओं और प्रदर्शन स्तर में सुधार हुआ है और अगले छह महीनों में उन्हें बेहतर बिक्री की उम्मीद है। यह मौजूदा साल में बेहतर आर्थिक वृद्धि का पूर्व सूचक हो सकता है - इसके संकेत दिखने लगे हैं - और इसके बारे में सरकार भी लगातार ज्यादा आश्वस्त होती जा रही है।
फिक्की बिजनेस कॉन्फिडेंस सर्वे उद्योग जगत के बीच हर तिमाही में किया जाने वाला सर्वे है जिसमें सभी सेक्टर और व्यापक भौगोलिक क्षेत्र की कंपनियां शामिल होती हैं। यह नवीनतम सर्वेक्षण मार्च-अप्रैल 2017 में किया गया है और इसमें करीब 185 कंपनियों ने हिस्सा लिया है।
सर्वे के नतीजों से पता चलता है कि इसमें भागीदार करीब 54 फीसदी कंपनियां यह मानती हैं कि पिछले छह महीनों की तुलना में मौजूदा आर्थिक दशाएं ‘संयमित से लेकर मजबूत होने तक बेहतर’ हैं। इसके अलावा सर्वे में भागीदार 79 फीसदी कंपनियां यह उम्मीद करती हैं कि अगले छह महीनों में अर्थव्यवस्था और बेहतर होगी। इसी तरह का रुख तब देखा जा सकता है जब हम उद्योग स्तर या किसी निजी कंपनी के स्तर पर उसके मौजूदा प्रदर्शन और आगे संभावित प्रदर्शन से जुड़े आंकड़ों पर नजर डालें।
नोटबंदी से गहराई से जुड़ा एक विषय है लेन-देन में डिजिटल मोड का ज्यादा इस्तेमाल, और फिक्की बिजनेस कॉन्फिडेंस सर्वे यह दर्शाता है कि यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसे कंपिनयों ने काफी बड़े स्तर पर अपनाया है। सर्वे में शामिल हर 10 कंपनियों में से करीब 7 ने इस बात की पुष्टि की है कि भुगतान के डिजिटल मोड के ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल के लिए उन्होंने विस्तार से योजनाएं बनाई हैं| इनमें सभी वेंडर्स को भुगतान और कर्मचारियों को की जाने वाली अदायगी शामिल है। यह काफी उत्साहजनक बात है और कॉरपोरेट इंडिया की ‘गोइंग डिजिटल’ के राष्ट्रीय लक्ष्य के प्रति प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है।
कंपनियों के संचालन संबंधी आंकड़ों की बात करें तो अप्रैल 2017 से सितंबर 2017 की अवधि के लिए करीब 65 फीसदी कंपनियां यह उम्मीद करती हैं कि उनकी बिक्री अच्छी रहेगी, 42 फीसदी मुनाफे में बढ़त की उम्मीद करती हैं, 40 फीसदी मौजूदा स्तर से ज्यादा निवेश की उम्मीद करती हैं, 31 फीसदी मौजूदा स्तर से ज्यादा निर्यात होने की उम्मीद करती हैं तथा 27 फीसदी कंपनियां अपने वर्कफोर्स को बढ़ाने के लिए और भर्ती करने की तैयारी कर रही हैं। पिछले सर्वे के नतीजों से तुलना करें, तो निर्यात के अलावा बाकी सभी क्षेत्रों में चीजें बेहतर दिख रही हैं। निर्यात में बेहतर प्रदर्शन (जिसके बारे में पिछले सर्वे में काफी कंपनियों ने उम्मीद की थी) के बाद अब कंपनियां इसमें कुछ हद तक संयम रखने की कोशिश कर रही हैं। इसलिए आगे इस रुख पर सावधानी से नजर रखनी होगी। वैश्विक स्तर पर तो धीरे-धीरे ग्रोथ रेट में सुधार हो रहा है, क्योंकि दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में बेहतर प्रदर्शन देखा गया है, लेकिन संरक्षणवाद की बढ़ती लहर और ‘घरेलू स्तर पर’ तरक्की तथा नौकरियों को बढ़ावा देने की अंतमुर्खी नीतियों के चलन से निर्यात प्रदर्शन पर असर पड़ सकता है।
मौजूदा सर्वे का एक और महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह है कि क्षमता इस्तेमाल के पैमाने पर देखें तो कंपनियों के प्रदर्शन में कुछ सुधार हुआ है। हमने देखा कि अब कुछ ज्यादा कंपनियां 75 फीसदी तक क्षमता इस्तेमाल की जानकारी दे रही हैं। पिछले सर्वे में इस श्रेणी में सिर्फ 40 फीसदी कंपनियां शामिल थीं, जबकि इस बार यह आंकड़ा बढ़कर 45 फीसदी हो गया है - यह इस बात का संकेत है कि अब ज्यादा कंपनियां और ज्यादा सेक्टर के लिए मांग की स्थिति में सुधार हो रहा है।
अर्थव्यवस्था में मांग की स्थिति में सुधार हो रहा है, लेकिन कंपनियां अभी भी उस बिंदु से दूर हैं, जहां वे कीमत के मामले में अपनी मर्जी से कुछ निर्णय ले सकें। कच्चे माल की लागत बढ़ती जा रही है - मौजूदा सर्वे में शामिल हर 10 में से करीब 6 कंपनी ने यह कहा कि कच्चे माल की लागत उनके कारोबारी प्रदर्शन में अड़चन बन रही है - और इससे कंपनियां कीमतों के मामले में पुनर्विचार को मजबूर हो रही हैं। 
आम धारणा यह है कि कंपनियों को कीमत के मोर्चे पर कुछ मनमाफिक करने में अभी 9 से 12 महीने का समय लग सकता है, क्योंकि वे अब भी अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल नहीं कर रही हैं। जैसा कि हमने पहले बताया, मांग की स्थिति पर तो नोटबंदी का असर काफी हद तक कम हो गया है, लेकिन आर्थिक प्रदर्शन में सुधार से जो स्वाभाविक वातावरण तैयार होना चाहिए उसकी गति धीमी है। पिछले सर्वे में करीब 80 फीसदी भागीदारों ने यह बताया था कि कमजोर मांग-सरकार द्वारा उठाए गए नोटबंदी के कदम की वजह से- साफतौर पर हतोत्साहित करने वाली है, और मौजूदा सर्वे में इस आंकड़े में अच्छी गिरावट तो आई है, लेकिन अब भी यह करीब 60 फीसदी पर टिका हुआ है।
कर्ज की बात करें तो, सर्वे में यह शिकायत करने वालों की संख्या में गिरावट आई है कि कर्ज की उपलब्धता और कर्ज की लागत ने उनके कदम रोक रखे हैं। मौजूदा सर्वे में 39 फीसदी भागीदार कंपनियों ने यह बताया कि कर्ज की लागत उनके लिए परेशानी की बात है। पिछले सर्वे में 43 फीसदी कंपनियों ने ऐसी बात कही थी।
पिछले कुछ वर्षों में अर्थव्यवस्था में कर्ज की दर को संयत रखने के लिए सरकार और रिजर्व बैंक, दोनों ने कई तरह के उपाय किए हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ने जनवरी 2015 और अक्टूबर 2016 के बीच रेपो रेट में 175 बेसिस पॉइंट (1.75 फीसदी ) तक की कटौती की, छोटी बचत योजनों की ब्याज दरों में बदलाव किया गया और पिछले साल मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स बेस्ड लेंडिंग रेट (एमसीएलआर) की शुरुआत की गई। इस साल के शुरुआती महीनों में जमा में तेजी से बढ़त के बाद बैंकों ने अपने कर्ज दरों में कटौती की है।
इन सब परिस्थितियों को देखते हुए सर्वे में भागीदार कंपनियों से यह पूछा गया कि, क्या वे हाल में बैंकों द्वारा कर्ज दरें घटाने का कोई फायदा उठाने की स्थिति में हैं? अचरज की बात है कि करीब 67 फीसदी कंपनियों ने इसका नकारात्मक जवाब दिया और इससे यह संकेत मिलता है कि ज्यादातर कंपनियों को कम रेट पर कर्ज उपलब्धता का फायदा नहीं मिल पा रहा है। जिन कंपनियों ने यह स्वीकार किया कि उन्हें घटते ब्याज दर का फायदा मिला है, उन्होंने बताया कि उन्हें कर्ज दर में 10 से लेकर 200 बेसिस पॉइंट तक का फायदा मिला है।
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