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न डिग्री न पूंजी,अब बड़े उद्यमियों में गिनी जा रहीं कृष्णा यादव
By Deshwani | Publish Date: 19/4/2017 8:44:09 PM
न डिग्री न पूंजी,अब बड़े उद्यमियों में गिनी जा रहीं कृष्णा यादव

राष्ट्रपति से सम्मानित होती श्रीमति कृष्णा यादव।

मोतिहारी। विनय कुमार परिहार।

असफलता के लिए अपनी परिस्थियों को जिम्मेदार ठहराने वाली बात अब सीधे तौर पर बहानेबाजी मानी जाएगी। मसलन मेरे पास पूंजी नहीं है। मेरे पास टेक्निकल ज्ञान नहीं है। मेरे पास समुचित डिग्री नहीं। वगैरह। वगैरह। अगर मेरे पास ये सब चीजें होती तो मैं भी सफलता के शिखर पर विरजमान होता। यूपी बुलंदशहर के एक गांव में कुछ एेसी ही कमियों के साथ गरीब किसान परिवार में पैदा हुई बेटी कृष्णा यादव की फर्श से अर्श तक पहुंचने की कहानी तो यही बयां कर रही है। अगर सच्ची निष्ठा व लगन से लक्ष्य की तरफ ध्यान रखा जाए तो रास्ते के रोड़े व कांटे चुभते तो जरूर है। लेकिन ये परेशानियां हमारे जेहन को ज्यादा ही मजबूत करती जाती हैं।
 
कृष्णा यादव अगर अपने भूमिहीन, गुरबत व अनपढ़ होने का रोना रोती रहती तो देश के नामचीन अचार बनाने वालों की फेहरिस्त उन्हें शुमार नहीं किया जाता। आज वो किसानों व खासकर एेसी महिलाओं की रोल मॉडल नहीं बनती जो अपनी सफलताओं के लिए संघर्षरत हैं।
 
आज इनका श्री कृष्णा पिकल्स देशभर में अपने जायके का डंका बजा रहा है। 500 रुपये उधार लेकर फुटपाथ से आचार बेंचने का सफर अचार व मुरब्बा के 190 से ज्यादा उत्पाद तक पहुंचा है। इनकी सफलता की जर्नी अभी थमी नहीं है। अनवरत जारी है। इनका निशाना अपने प्रोडक्ट्स को ग्लोबल बनाने व अपनी तरह की संघर्ष करने वाली अधिक से अधिक अबलाओं को रोजगार मुहैया कराने का है। 
 
 
राष्ट्रीय स्तर के कई सम्मानों से हुई है पुरस्कृत
इनका मैंगो, नारंगी व लीची के जूस इतने लजीज है कि कोई एक बार जो कोई पी ले इसका मुरीद हो जाता है। श्री कृष्णा जूस की खासियत है कि इसमें फलों के महज फ्लेवर नहीं। उसकी जगह ओरिजन फ्रूट पाल्प(फलों का गुदा) ही प्रयोग होता है। इनकी सफलता व संघर्ष की कहानी दिल्ली एनसीआर में घर-घर कही व सुनी जा रही है। श्री कृष्णा पिकल्स की मालकिन श्रीमती क‍ृष्णा देश के बड़े-बड़े सम्मान व पुरस्कारों से नवाजी जा चुकी हैं। प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति व कृषि व किसान कल्याण मंत्री राधामोहन सिंह द्वारा कई बार सम्मानित हो चुकी है। भारत सरकार के कृषि एवं कल्याण मंत्रालय परामर्श फर्स्ट कमेटी व बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट की सम्मानित सदस्य हैं।
2014 में हरियाणा सरकार की तरफ से इनोवेटीव आइडिया के लिए चैंपियन किसान महिला अवार्ड से नवाज गया।

 
घर के बने आचारों की याद दिलाती है श्रीकृष्णा पिकल्स

इतना ही नहीं फूड प्रोडक्ट्स इतना जायकेदार है कि देश की नामी-गिरामी कंपनियां इनके प्रोडक्ट्स अपने ब्रांड नाम से बेचने के लिए इनके पीछे पड़े हैं। बताया जाता है कि इनके पिकल्स घर के बने अचारों की याद दिलाती है।
बुलंदशहर के दौलतपुर में भूमिहीन किसान धर्म सिंह के घर 1971 में पैदा हुई। ये बटाई की जमीन लेकर किसानी करते थें। इनके पास इतना भी पैसे नहीं थें कि अपनी लाडली को कम से कम प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा भी दिलवा सके। बल्कि इन्हें पांच वर्ष की अल्पवय में पिता के साथ खेतों में हाथ बटांना पड़ा और मजदूरी भी करनी पड़ी। 1986 में कम ही उम्र में कृष्णा की शादी बुलंदशहर के गंगोल गांव निवासी किसान सोहन लाल यादव के बेटे गोवर्धन सिंह यादव से हो गयी। इनकी ससुराल का परिवार भी खेती पर निर्भर था। श्रीमती कृष्णा घर के कामकाज में हाथ बंटाने लगी। लेकिन इसमें इनका मन नहीं रमा। इनके पति गोवर्धन सिंह ने ड्रावरी का काम किया। लेकिन श्रीमती कृष्णा टार्गेट कुछ और ही था। कृष्णा व इनके पति गोवर्धन सिंह यादव 1988 में 500 रुपये उधार लेकर दिल्ली आ गये। इन्होंने सब्जी बेंचने का काम शुरू किया। फिर 5 किलो अचार से अपने सफर का पहला कदम बढ़ाया। लेकिन उनदिनों वे अचार बनाने में उतनी प्रवीण नहीं थीं। लिहाजा कहा जाता है कि दिलो दिमाग में जज्बा हो। जेहन में कुछ कर गुजरते की आग हो तो भगवान भी रास्ता दिखाने लगता है।  विज्ञान केन्द्र से भारत सरकार की तरफ से उन्हें अचार व जैम जेली बनाने की ट्रेनिंग मिल गयी। फिर इन्हें उड़ान भरने को पंख ही मिल गये। इस संघर्ष में इनके पति भी हमकदम बने रहें। इनके घर के बने अचारों को इनके पति 1990 में हरियाणा के नजबगढ़ की सड़कों पर टेबुल लगा बेंचने लगे। कई लोगों ने इनकी हंसी भी उड़ायी। लेकिन ये दम्पति अपने इरादों से डिगे नहीं।आज आलम यह है कि उद्यमियों के बीच नजीर बन गयी हैं।

सरकार किसानों के उत्पाद की कीमत दुगुणा कराना चाहती तो श्रीमती कृष्णा का दावा है कि किसानों की फसल दाम 10 गुणा तक जा सकती है। बताती है कि किसान गेहूं की बजाए उसे आटा बनाकर बेंचे। फल की जगह उसका जैम बेंचे। इलाके के सभी किसान अपनी फसल को एक ही साथ बाजार में न उतारे। क्योंकि अर्थशास्त्र का नियम कहता है कि बाजार में एक ही तरह के उत्पाद का ज्याद आवक होने पर उसके कीमत कम हो जाती हैं।
 
बहरहाल श्रीमती कृष्णा के संघर्ष व सफलता के सोपान चढ़ने की इस गाथा से लोग प्रेरणा जरूर ले रहे हैं।
 
( जिला स्कूल, मोतिहारी में चम्पारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष समारोह के अवसर पर  किसान मेले केे लिए श्रीकृष्णा पिकल्स का एक काउंटर लगा था। इस काउंटर अत्याधिक भीड़  देखी गयी। श्रीमती कृष्णा यादव के पति धनश्याम सिंह यादव ने काउन्टर संभाल रखा था। श्री यादव से बातचीत पर आधारित है यह स्टोरी।)

 
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