नई दिल्ली (हि.स.)। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को डूबे ऋणों से राहत दिलाने के लिए रिजर्व बैंक को व्यापक नियामक अधिकार देने संबंधित बैंकिंग विनियमन (संशोधन) विधेयक, 2017 गुरुवार को लोकसभा में ध्वनिमत से पारित हो गया।
नये कानून के तहत रिजर्व बैंक को यह अधिकार मिल जायेगा कि वह फंसे कर्ज की वसूली के लिये जरूरी कारवाई शुरू करने संबंधी निर्देश बैंकों को दे सके। विधेयक को अरुण जेटली ने सोमवार को सदन के पटल पर रखा था। मई में इससे संबंधित अध्यादेश को दोबारा जारी किया गया था।
इस अवसर पर वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा कि आर्थिक उदारीकरण के मौजूदा समय में बैंकों की कर्ज वसूली के लिए बने कानून अप्रासंगिक हो गये थे। ऐसे में इसके स्थान पर एक नया सशक्त कानून लाना बहुत जरूरी था।
उन्होंने इस शंका को बेजा बताया कि नया कानून कर्ज नहीं चुकाने वाले बड़े कारोबारियों पर कोई असर नहीं डालेगी। उन्होंने बताया कि नयी व्यवस्था के तहत अब तक 12 बड़े डिफाल्टरों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू कर दी गई है।
विधेयक संसद में पारित होने के बाद इससे जुड़े 1949 के कानून को संशोधित करेगा और इस संबंध में जारी अध्यादेश का स्थान लेगा।
इससे रिजर्व बैंक को डूबे कर्जों के मामले में कार्रवाई करने की ज्यादा ताकत मिलेगी। अध्यादेश के माध्यम से पहले ही आरबीआई बैंकों को कर्ज नहीं चुकाने वाली कंपनियों के खिलाफ बैंकरप्सी प्रक्रिया शुरू करने का आदेश देने का अधिकार मिल गया है।
इससे संबंधित अध्यादेश को सरकार ने मई माह में फिर से जारी किया था। विधेयक को पेश किए जाने से पहले तृणमूल कांग्रेस के नेता सौगता रॉय ने कहा था कि यह निराश सरकार का निराशाजनक कदम है| इसका विरोध किया जाएगा|लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने जब वित्तमंत्री से पूछा था कि क्या वह इस विषय पर कुछ कहना चाहते हैं तो उन्होंने कहा कि यह विधेयक को पेश किए जाने से जुड़ा नहीं है| इस पर बाद में चर्चा के दौरान निपटा जाएगा।
उल्लेखनीय है कि डूबे हुए कर्जों में से 25 प्रतिशत हिस्सा केवल 12 बड़े कर्जदारों का है। इस मामले में आरबीआई ने प्रक्रिया शुरू कर दिया है।