नई दिल्ली, (हि.स.)। यूरोपीय संघ के निवेश को बढ़ावा देने और उसे सुगम बनाने के लिए ईयू और भारत ने शुक्रवार को देश में एक निवेश सुविधा तंत्र (आईएफएम) की स्थापना की घोषणा की। इस तंत्र से यूरोपीय संघ और भारत सरकार के बीच करीबी तालमेल स्थापित हो सकेगा।
यह समझौता मार्च 2016 में ब्रसेल्स में यूरोपीय संघ-भारत के 13वें शिखर सम्मेलन में जारी संयुक्त बयान के दौरान तैयार किया गया था, जिसमें यूरोपीय संघ ने इस प्रकार का एक तंत्र तैयार करने के भारत के फैसले का स्वागत किया था। दोनों देशों के नेताओं ने संरक्षणवाद का विरोध करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाई थी। साथ ही एक निष्पक्ष, पारदर्शी और शासन आधारित व्यापार और निवेश माहौल बनाने की वकालत की थी।
इस पहल के महत्व पर जोर देते हुए भारत में यूरोपीय संघ के राजदूत तोमास्ज़ कोसलोवस्की ने कहा कि निवेश सुविधा तंत्र की स्थापना यूरोपीय संघ और भारत के बीच व्यापार और निवेश संबंधों को मजबूत करने की दिशा में एक सही कदम है। यूरोपीय संघ भारत में सबसे बड़ा विदेशी निवेशक है और उसकी पहल से यूरोपीय संघ के निवेशकों के लिए अधिक मजबूत, प्रभावी और पूर्वानुमेय व्यापार माहौल बनाने में मदद मिलेगी।
डीआईपीपी सचिव रमेश अभिषेक ने कहा कि ‘व्यापार में सुगमता’ सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ अभियान की मूल प्राथमिकता है और भारत में यूरोपीय संघ के निवेश को सुगम बनाने के लिए आईएफएम की स्थापना इस उद्देश्य को हासिल करने के लिए एक अन्य कदम है।
उन्होंने कहा कि आईएफएम की स्थापना यूरोपीय संघ की कंपनियों और निवेशकों के भारत में प्रचालन के दौरान उनके सामने आने वाली समस्याओं को पहचानने और उन्हें हल करने का मार्ग प्रशस्त करने के उद्देश्य से की गई। आईएफएम यूरोपीय संघ की कंपनियों और निवेशकों की दृष्टि से सामान्य सुझाव पर विचार-विमर्श करने के लिए एक मंच का काम करेगा।
व्यापार और निवेश यूरोपीय संघ और भारत के बीच 2004 में शुरू की गई रणनीतिक भागीदारी के प्रमुख तत्व हैं। वस्तुओं और सेवाओं में पहला व्यापार भागीदार होने के साथ यूरोपीय संघ भारत में सबसे बड़े विदेशी निवेशकों में से एक है, जिसका सामान मार्च 2017 तक 81.52 अरब (4.4 लाख करोड़ रुपये से अधिक) का था। इस समय भारत में यूरोपीय संघ की छह हजार से ज्यादा कंपनियां है जो 60 लाख लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्रदान कर रही हैं।