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बिहार
जिले का तापमान लुढ़का, जनजीवन अस्त-व्यस्त
By Deshwani | Publish Date: 15/12/2017 4:51:38 PM
जिले का तापमान लुढ़का, जनजीवन अस्त-व्यस्त

निर्मली/सुपौल, (हि.स.)| सुपौल जिले में साल के अंतिम में शीतलहर ने कोशी के गांवों को अपनी चपेट में ले लिया है। घने कुहासे के बीच हाड़ कंपा देने वाली ठंढ़ में (शुक्रवार) को शहर से लेकर गांव तक का जनजीवन ठहर सा गया था। सुबह और शाम सभी इलाके की सड़कें सुनसान हो गयी। लोग घरों में दुबकने पर मजबूर हो गए। दिसम्बर के दूसरे सप्ताह में ठंढ़ ने अपना रूप धारण कर लिया है। घने कुहासे के बीच बह रही पछिया हवा के कारण शुक्रवार को मौसम का पारा लुढककर छह डिग्री सेल्सियस पर पहुंच गया।
शुरुआती दिसम्बर में ऐसा लग रहा था कि अब ठंढ का मौसम समाप्त हो गया है। लेकिन दिसम्बर के दूसरे सप्ताह में ही सुबह और शाम ठंढ इतना लगने लगा कि लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया गया। दो दिनों से बह रही पछिया हवा ने लोगों का जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया। शुक्रवार को भगवान भाष्कर की किरणों में तपिश नहीं थी। अहले सुबह से ही कुहासे के बीच हाड़ कंपकपा देने वाली ठंढ से आमलोग सूर्य की इस धुंधली किरण से परेशान रहे। दिन भर लोगों को कुहासे के कारण निजात नहीं मिली। सुबह से दस बजे तक शाम के चार बजे से लेकर अहले सुबह तक कुहासे की दृष्यता 15 मी. की रही। ठंढ से सुबह-सुबह स्कूल जाने वाले बच्चे सबसे अधिक परेशान रहे। खास कर आंगनबाड़ी केन्द्रों पर पढ़ने वाले नौनिहालों को ठंढ सता रही है। गौरतलब है कि नववर्ष के आगमन के साथ ही ठंढ ने लोगों को राहत दी थी। लेकिन दूसरे सप्ताह में ही पछिया हवा ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया है।
संकट में है जनजीवन
ठंढ बढ़ने की स्थिति में आम जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। ठंढ में बच्चे व बुर्जुगों के साथ-साथ आम लोगों की भी सेहत संकट में है। ठंढ में बडे बुर्जुग व छोटे-छोटे बच्चों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। डाक्टरों ने बढ़ती ठंढ को देखते हुए बच्चों व बूढे लोगों को विशेष सावधानी बरतने की सलाह दी है। निर्मली पीएचसी के चिकित्सा पदाधिकारी डा. रामप्रसाद मेहता ने बताया कि वृद्ध और बच्चे ठंढ़ में अधिक से अधिक गर्म कपड़ों का प्रयोग करें। बूढे व बच्चे ठंढ में खुले बदन बाहर न निकलें। बुर्जंग व बच्चे को ठंढ में आसानी से वायरल, डायरिया, वायरल निमोनिया, कोल्ड स्टाॅक व इन्फ्लुएंजा के शिकार हो रहे हैं। शीतलहर की स्थिति में शरीर की धमनियां संकुचित हो जाती हैं व रक्त प्रवाह में बाधा उत्पन्न होती है। दमा के रोगियों के लिये भी ठंढ मुश्किल से भरा होता है।
ठंढ ने किया जीना मुहाल
नये साल में दूसरे सप्ताह में ही भीषण ठंढ के कारण सीमावर्ती क्षेत्र सहित जिले की जीवन की रफ्तार पर ब्रेक सा लग गया है। आसपास की सड़के सुबह से लेकर दस बजे तक सूनी सी लगती है। ठंढ में लोग घर में दुबकने में ही भलाई समझते हैं। आवश्यक काम से ही लोग सड़क पर निकलते हैं। सिसक-सिसक कर बह रही पछिया हवा के कारण ठंढ में चुभन भी थी। कुहासे का आलम यह था कि अहले सुबह दस कदम पर लोग ठीक से दिखाई नहीं दे रहे थे। इधर रिक्शा चालक ठेला मजदूरों का हालत ठंढ के कारण दयनीय हो गई है। गरीब व लाचार लोगों के लिये ठंढ ने काल का रूप धारण कर लिया है।
ठंढ बना बच्चों का दुश्मन
ठंढ में बच्चों के बीमार होने की आशंका से अधिकांश अभिभावक शंशकित हैं। ठंढ के कारण सड़क पर पैदल जाने वाले स्कूली बच्चे खासकर ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। सरकारी विद्यालय ठंढ में बंद नहीं होना या समय का परिवर्तन नहीं होने का खामियाजा सबसे अधिक सुबह-सुबह स्कूल जाने वाले बच्चों को भुगतना पड़ रहा है। डाॅक्टरों का मानना है कि बच्चे ठंढ का आसानी से शिकार बन जाते हैं। शिशु रोग विषेषज्ञ डा0 टी एन एल कर्ण ने बताया कि शून्य से तीन वर्ष के बच्चों की जान ठंढ में सांसत में रहती है। छोटे बच्चे कोल्ड डायरिया अर्थात वायरल डायरिया से आसानी से प्रभावित होते हैं। इससे बच्चों को बचाना चाहिये तथा स्वयं भी बचना चाहिये।
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