ब्रेकिंग न्यूज़
मोतिहारी के केसरिया से दो गिरफ्तार, लोकलमेड कट्टा व कारतूस जब्तभारतीय तट रक्षक जहाज समुद्र पहरेदार ब्रुनेई के मुआरा बंदरगाह पर पहुंचामोतिहारी निवासी तीन लाख के इनामी राहुल को दिल्ली स्पेशल ब्रांच की पुलिस ने मुठभेड़ करके दबोचापूर्व केन्द्रीय कृषि कल्याणमंत्री राधामोहन सिंह का बीजेपी से पूर्वी चम्पारण से टिकट कंफर्मपूर्व केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री सांसद राधामोहन सिंह विभिन्न योजनाओं का उद्घाटन व शिलान्यास करेंगेभारत की राष्ट्रपति, मॉरीशस में; राष्ट्रपति रूपुन और प्रधानमंत्री जुगनाथ से मुलाकात कीकोयला सेक्टर में 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को 9 गीगावॉट से अधिक तक बढ़ाने का लक्ष्य तय कियाझारखंड को आज तीसरी वंदे भारत ट्रेन की मिली सौगात
बिहार
स्थानीय निकायों में पत्नियों की ताज पर चल रहा पतियों का राज
By Deshwani | Publish Date: 4/12/2017 11:58:48 AM
स्थानीय निकायों में पत्नियों की ताज पर चल रहा पतियों का राज

छपरा, (हि.स. )। जनता महिलाओं को ताज पहना रही है लेकिन राज उनके पति कर रहे हैं । यह हाल है त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था व शहरी निकायों के निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों की। यह अलग बात है कि महिलाओं को बराबरी का हक देने वाला बिहार देश का पहला राज्य है और 2005 से त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था व शहरी निकायों में पचास फीसदी पद महिलाओं के लिए आरक्षित है। 

महिलाओं के लिए आरक्षित 50 फीसदी पदों के अलावा अनारक्षित पदों पर भी महिलाएं निर्वाचित हो रही हैं। ग्राम पंचायतों में मुखिया, वार्ड सदस्य, सरपंच, पंच, जिला परिषद सदस्य, पंचायत समिति सदस्य के अलावा नगर निकायों में भी 55 से 60 फीसदी तक महिलाएं निर्वाचित हो रही हैं। पंचायतों के विकास योजना बनाने से लेकर सभी महत्वपूर्ण कार्यों का कमान उनके पति संभाल रहे हैं। पत्नी को जनता ने चुना है, लेकिन पति मुखिया जी कहला रहे हैं और इतना ही नहीं, पत्नी के बदले पति ही सरकारी, गैर सरकारी बैठकों में बेहिचक शामिल भी हो रहें हैं। 

अधिकारी भी उन्हें ही मुखिया मान रहे हैं और उनकी ही सहमति-असहमति को जायज मान रहे हैं। निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों के द्वारा निर्णय लेने में उदासीनता बरती जा रही है एवं अपने अधिकारों का उपयोग करने के लिए अपने परिजनों को खुली छूट दे दी गई है। महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं हो रही हैं और इसका भी लाभ पुरुष उठा रहे हैं। स्थिति यह है कि ''पंचायत प्रतिनिधियों का ताज भले महिलाओं के माथे है पर, राज उनके पति या परिजन का है'' जिसे लेकर पदाधिकारियों एवं आम जनों में भी समय-समय पर चर्चाएं होती है। महिलाओं की सक्रियता बढ़ नहीं रही है। 

पिछले सप्ताह भारत सरकार की महिला एवं बाल कल्याण मंत्री मेनका गांधी ने अपने संबोधन में महिला जनप्रतिनिधियों को स्पष्ट तौर पर कहा था कि सरकार से महिला सशक्तिकरण के उद्देश्य से मिले अधिकारों को अपने परिजनों को सौपने के बदले महिला प्रतिनिधि उसका उपयोग खुद करें। 

जिले में 323 मुखिया, 323 सरपंच, 47 जिला पार्षद, 467 बीडीसी समेत 11 हजार है जनप्रतिनिधि हैं। पंचायती राज व्यवस्था के तहत एक ओर जहां 323 पंचायतों में 323 मुखिया उतने ही सरपंच, 467 बीडीसी, 4467 वार्ड सदस्य तथा उतने ही ग्राम कचहरी के पंच के पद हैं। इसके अलावा छपरा नगर निगम के 44 वार्ड आयुक्त के अलावा रिविलगंज, एकमा, दिघवारा, सोनपुर, मढ़ौरा, परसा बाजार नगर पंचायत में भी कुल 221 वार्ड आयुक्त निर्वाचित होकर आए हैं। जिनमें लगभग छह हजार महिला जनप्रतिनिध हैं। पर, अधिकतर महिला जनप्रतिनिधि की स्थिति तो यह है कि वे अपने पंचायत या अपने क्षेत्र की सीमा तक नहीं जानती। 

आम जनों से मिलने की बात तो काफी दूर है। हां उनके बदले उनके परिजन ही क्षेत्र में भ्रमण एवं आमजनों से रूबरू होकर उकने समस्या के समाधान के लिए सरकारी कार्यालयों में जाकर अपने को जनप्रतिनिधि बताने से भी परहेज नहीं करते। यही नहीं मुख्यमंत्री के द्वारा वार्ड आयुक्तों को दिए जाने वाले अधिकारों का विरोध व सात निश्चय का विरोध करने के लिए भले ही बैनर मुखिया संघ का होता है। पर, संबंधित मुखिया के बदले उनके पति, पुत्र या अन्य परिजन धरना, प्रदर्शन की कौन कहें प्रखंड स्तर पर सरकारी बैठकों में भी भाग लेने से नहीं हिचकते। 

जिला में भी पूर्व में एक बैठक के दौरान जिला प्रशासन द्वारा कुछ महिला जनप्रतिनिधियों के बदले उनके परिजनों को बैठने पर आपत्ति जताते हुए उन्हें बैठक से बाहर किया गया था। बावजूद प्रखंड स्तर पर अभी भी ये कारगुजारियां ज्यादा है। पिछले सप्ताह मशकर तथा पानापुर आदि प्रखंडों में बिहार सरकार के सात निश्चय या वार्ड सदस्यों के अधिकार देने का विरोध करते हुए धरना प्रदर्शन के दौरान एक भी महिला मुखिया उपस्थित नहीं थी। बल्कि उनके परिजनों ने धरना में भाग लेकर बजाप्ता तसवीर भी खिचवाई जो समाचार पत्र में सुर्खिया भी बनी हैं। यही नहीं महिला जनप्रतिनिधियों के परिजन उनके बदले हस्ताक्षर करने या कागजी कार्रवाई करने में भी परहेज नहीं करते। ऐसी स्थिति में महिलाओं के मिले अधिकार की धज्जियां अधिकतर महिला प्रतिनिधियों की उदासीनता एवं कथित मिली भगत के कारण उड़ रही हैं। 

जिला पंचायती राज पदाधिकारी, सारण कुमार ओमकेश्वर का कहना है कि, पंचायती राज अधिनियम के तहत किसी भी निर्वाचित प्रतिनिधि के बदले उनके परिजन को सरकारी बैठक में भाग लेने, धरना प्रदर्शन में शामिल होने या उनके बदले कार्य करने का अधिकार नहीं है। यह करना पूरी तरह गैरकानूनी है। ऐसा करने वाले जनप्रतिनिधियों के खिलाफ नियमानुसार प्रावधान के तहत कार्रवाई भी की जा सकती है। 

image
COPYRIGHT @ 2016 DESHWANI. ALL RIGHT RESERVED.DESIGN & DEVELOPED BY: 4C PLUS