निर्मली, सुपौल, (हि.स.)| गेहूं की बोआई अंधाधुंध चल रही है, चूंकि किसाजुबानी 25 दिसम्बर के बाद गेहूं की बुआई का सीजन खत्म माना जाता है। गेहूं की बोआई की इस मारामारी के दौरान बाजार से देशी डीएपी खाद गायब है। यदि काफी मशक्कत के बाद किसी तरह खाद मिल भी गयी तो वास्तविक मूल्य से 100 रुपया अधिक देकर लेना पड़ता है और उसमें भी शुद्धता की गारंटी नहीं है। परन्तु इस कालाबाजारी व मिलावटी खाद पर अंकुश लगाने में प्रशासन से लेकर विभागीय अधिकारी तक विफल साबित हुए हैं।
निर्मली प्रखंड के सीमावर्ती क्षेत्र के तीन पंचायत कमलपुर, डगमारा व कुनौली के अनेकों पंचायतों की लाखों की आबादी की जीविका का मुख्य साधन कृषि ही है। परन्तु किसानों को आसमान छूती खाद की कीमतों ने विवश कर दिया है। विभागीय कृषि अधिकारियों की उपेक्षा व खाद के बढते दाम से किसानों की हताशा बढती ही जा रही है। पैक्स के माध्यम से रबी फसल के लिये बीज उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। सीमावर्ती क्षेत्र के पैक्स अध्यक्ष सुभाष सिंह, संतोष कुमार साह ने बताया कि सरकार की तरफ से ही पैक्स के माध्यम से किसानो के हित में बीज उपलब्ध नहीं करा रही है तो हम क्या कर सकते हैं।
कई किसानों ने बताया कि खुले बाजार में देसी पारस डीएपी 13500, एपीएल 1300 व नवरत्ना 1350 रुपये प्रतिबोरा की दर से खुलेआम बेचा जा रहा है। वहीं किसानों द्वारा इन दिनों बाजार में मिल रही खाद की गुणवत्ता पर भी कई सवाल उठाया जा रहा है। साथ यह भी शंका है कि जो बीज किसान बुआई कर रहे हैं, वह उन्नत किस्म का है कि नहीं। ऐसी स्थिति में किसान बेचारा क्या करे। क्योंकि कृषि विभाग के अधिकारी भी इस बीज की जांच नहीं कराते जबकि सरकार व विभाग कह रही है कि किसी भी सूरत में किसानों को खाद-बीज की किल्लत नहीं होने दी जायेगी। परन्तु कथनी व करनी में काफी अंतर है और किसानों को महंगे दरों पर खाद-बीज खरीदना पड़ रहा है।
फसल बोआई का समय आया तो फिर वहीं बात। पूर्व की भांति किसान महंगे दरों पर नकली व मिलावटी खाद-बीज खरीदने को विवश हैं। इनका दुखड़ा अधिकारी से लेकर मंत्री तक नहीं सुनते। सीमावर्ती क्षेत्र में रबी फसल के लिये किसान उच्चतम कीमत पर खाद-बीज खरीदने को विवश हैं। जबकि बीएओ मनोज कुमार कहते हैं कि अभी तक इन बातों की शिकायत नहीं मिली है। शिकायत मिलने पर कार्रवाई की जायेगी।