एम्स के पूर्व निदेशक की गिरफ्तारी मामले में निचली अदालत से रिकार्ड प्रस्तुत करने का निर्देश
पटना, ( हि स )- एम्स के पूर्व निदेशक की गिरफ्तारी कर लिये जाने के मामले में पटना हाईकोर्ट ने सख्त रूख अख्तियार करते हुए निचली अदालत से रिकार्ड प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। साथ ही साथ अदालत ने मामले के अनुसंधानकर्ता को अगली सुनवाई में अदालत में उपस्थित होकर जवाब देने का निर्देश दिया है।
आरोपित पुलिस अधिकारी पर अवमानना के आरोप गठन के बिंदु पर 12 जनवरी को सुनवाई होगी ।
जस्टिस डाॅ. रविरंजन एवं जस्टिस एस. कुमार की खंडपीठ ने डाॅ. गिरीश कुमार की ओर से दायर याचिका पर बुधवार को सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया ।
गौरतलब है कि पूर्व निदेशक पर एक डॉक्टर अशोक कुमार ने बिना वजह गाली देने व दुर्व्यवहार और नौकरी से निकाले जाने का आरोप ल्रगाते हुए याचिकाकर्ता के विरुद्ध 21 अक्तूबर 2016 को एससी/एसटी थाना में प्राथमिकी दर्ज की गयी थी1 जिसमें बिहार पुलिस ने निचली अदालत के आदेश के बावजूद पटना स्थित एम्स अस्पताल के पूर्व निदेशक को 14 नवंबर को गिरफ्तार कर लिया गया था 1
पूर्व निदेशक श्री सिंह को पुलिस ने गिरफ्तारी पर विशेष कोर्ट की रोक के बावजूद पकड़ लिया था तथा उन्हें हथकड़ी लगाकर कोर्ट तक जबरन ले गई थी । अनुसूचित जाति विशेष कोर्ट के न्यायाधीश अखिलानन्द दुबे ने तीन नवम्बर को उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी।
गिरफ्तारी के समय निचली अदालत द्वारा लगायी गयी रोक की याद दिलायी गयी, तो पुलिस ने कहा था कि ऊपर से ऑर्डर है 1 इस मामले में पटना हाईकोर्ट ने डाॅ. गिरीश सिंह की याचिका पर संज्ञान लेते हुए जस्टिस नवनीति प्रसाद सिंह और जस्टिस संजय प्रिया की खंडपीठ ने मामले में आईजी (कमजोर वर्ग) अनिल किशोर यादव, डीआईजी (सीआईडी) विनोद चैधरी, एससी-एसटी थाने के थानेदार रामशोभित और एससी-एसटी थाने के जांच अधिकारी कमलेश सिंह को अदालत के आदेश की अवमानना का प्रथम दृष्ट्या दोषी पाया था 1
अदालत ने स्पष्ट कहा था कि तत्कालीन आईजी को इतना तो मालूम होगा कि उच्चतम न्यायालय ने सात वर्ष से कम सजा के आपराधिक मामलों में गिरफ्तारी नहीं करने का निर्देश दिया था, जिसके आधार पर सीआरपीसी में संशोधन भी हो चुका है, जबकि एससी-एसटी अधिनियम के तहत किये गये अपराधों में अधिकतम सजा पांच वर्ष है.
उल्लेखनीय है कि 15 नवम्बर को पटना हाईकोर्ट के जस्टिस वीरेन्द्र कुमार की एकलपीठ ने पूर्व निदेशक डाॅ. गिरीश सिंह सहित एक अन्य सहकर्मी को बड़ी राहत प्रदान करते हुए उनदोनों के विरूद्ध एससी/एसटी एक्ट के तहत दर्ज मामले को निरस्त कर दिया था।