पटना , (हि.स.) | कार्यपालिका, विधायक एवं मीडिया आदी संस्थाएं लोकतंत्र के आधार हैं। इन संस्थाओं में विश्वास की कमी से संकट पैदा होता है, जिससे सम्पूर्ण लोकतंत्र पर खतरा उत्पन्न होता है। विश्वास की जहां तक बात है तो यह संदेह और संदेहास्पद से शुरू होता है। प्रत्येक कारण तर्कसंकत नहीं है। विश्वास का केवल निश्चय ही है। यह बातें ललित नारायण मिश्रा आर्थिक एवं सामाजिक संस्थान में संविधान दिवस पर आयोजित एक दिवसीय व्याख्यानमाला को संबोधित करते हुए पटना हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश तथा पंजाब एवं हरियाणा मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस इकबाल अहमद अंसारी ने कही।
कार्यक्रम का आयोजन पटना हाईकोर्ट के एडवोकेट एसोसियेशन द्वारा किया गया था। इस मौके पर जस्टिस अंसारी के अलावा पटना हाईकोर्ट के जस्टिस डाॅ. रविरंजन, जस्टिस एहसानउद्दीन अमानुल्लाह, बिहार के लोकायुक्त जस्टिस मिहिर कुमार झा, वरीय अधिवक्ता, वाईवी. गिरी, विनोद कंठ, रामाकांत शर्मा, पूर्व महाधिवक्ता रामबालक महतो सहित बड़ी संख्या में अधिवक्तागण एवं आमजन उपस्थित थे। कार्यक्रम के आरंभ में आगत अतिथियों का पुष्पगुच्छ देकर सम्मानित किया गया।
मुख्य वक्ता जस्टिस अंसारी ने कहा कि इन संस्थाओं को किसी अन्य संस्थान से बदला नहीं जा सकता है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के चारों स्तम्भ में विश्वास की कमी के कई कारण गिनाये। उन्होंने कहा कि राजनीति में भ्रष्टाचार, ब्यूरोक्रेसी का मनमाना रवैय्या ऐसे कई महत्वपूर्ण कारण है जिससे कि आमजनों के विश्वास में कमी आयी है। उन्होंने कहा कि कोई भी नया कानून यहां रहने वाले लोगों के हिसाब से बने। न कि दूसरे देशों में प्रचलित कानूनों को हेरफेर कर कानून यहां की जनता पर थोपा जाय। उन्होंने उपस्थित श्रोताओं के सामने पुनः एक बार ‘स्वराज’ की महत्ता और उसकी परिभाषा को काफी सरल ढंग से समझाते हुए कहा कि अंग्रेजों के जमाने में जिस स्वराज की कल्पना की गयी थी उसकी आज भी जरूरत है।
जस्टिस अंसारी ने मीडिया की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि अरूषी हत्याकांड से लेकर मुम्बई बम ब्लास्ट, ताज पर हमला आदि कई ऐसे उदाहरण हैं जिसमें मीडिया ने अपनी जिम्मेदारी का सही तरीके से निर्वहन नहीं किया है। जिस कारण आमजनों का विश्वास डगमगाया हैं | उन्होंने कहा कि आजकल मीडिया ट्रायल का दौर चल निकला है। टीवी चैनलों पर डीबेट का आयोजन किया जाता है। अदालत द्वारा किसी को भी दोषी या निर्दोष साबित करने से पहले ही मीडिया अपना फैसला सुना देती है जो कि गलत है। उन्होंने कहा कि मीडिया के कंधों पर लोकतंत्र की काफी महत्वपूर्ण जिम्मेवारी है जिसका अनुपालन उसे करना चाहिए और ऐसे कृत्यों से बचना चाहिए जिससे कि लोकतंत्र खतरे में पड़े।