छपरा, (हि.स.)। इस बार बारिश कम होने के कारण प्रदेश सहित जिले के किसान धान के कम पैदावार को लेकर चिंतित हैं। किसान शिवशंकर भगत का कहना है कि धान की फसल अपेक्षा के अनुरूप नहीं रही। हथिया नक्षत्र में बारिश नहीं होने के कारण पहले धान की खेती मारी गई और अब इसका असर गेहूं की बोआई पर भी पड़ा है। खेतों में नमी नहीं है। ऐसे में गेहूं की फसल होने की भी आशा क्षीण होती नजर आ रही है।
किसानों का कहना था कि रबी फसल की बुआई का प्रशिक्षण विभाग की ओर से शिविर लगा कर दी जा रही है लेकिन बोआई कैसे होगी? इसके प्रति सरकार व प्रशासन लापरवाह बना हुआ है। शिवशंकर भगत ने कहा कि खेतों में नमी नहीं है । पहले तो धान की फसल मारी गयी । अब गेहूं की बारी है।
डॉ. आरके झा , कार्यक्रम समन्वयक सह कृषि वैज्ञानिक , कृषि विज्ञान केन्द्र, मांझी ने कहा कि गेहूं की बुआई करने के लिए पटवन करना होगा और बाद में भी कम से कम तीन चार -बार सिंचाई करनी पड़ेगी। ऐसे में किसानों को वैकल्पिक फसलों को लगाना चाहिए जिसमें सिंचाई कम करना पड़े और लागत खर्च भी कम हो। इसके लिए तेलहन व दलहनी फसलों को लगाना श्रेष्ठ होगा। राई, मटर, मसूर, चना की फसलों को लगाना किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित होगा। इसमें लागत कम आएगी। सिंचाई भी कम करना पड़ेगा। सरकार की भी तेलहन व दलहनी फसलों को प्रोत्साहित किया जा रहा है और इसके बीज उत्पादन पर विशेष जोर दिया जा रहा है ।
किसानों के लिए यह वरदान साबित हो सकता है। किसानों के द्वारा उत्पादित मटर, मसूर, चना, अरहर व तेलहन को बीज के रूप में खरीद लिया जाएगा। बीज उत्पादन के लिए कृषि विज्ञान केन्द्र मांझी से बीज खरीदना होगा। उन्होंने कहा कि इन फसलों को लगाने व उत्पादन में लागत खर्च कम है और मुनाफा अधिक है। इन फसलों को लगाने के समय सिंचाई करनी पड़ेगी और बाद में एक बार और पटवन करना होगा ।