प्रसिद्ध मूर्तिकार के.एस. राधाकृष्णन ने की पेंटिंग और मूर्ति कला की तुलनात्मक व्याख्या
बिहार संग्रहालय : चौथा दिन
पटना। देशवाणी न्यूज नेटवर्क
बिहार संग्रहालय में आयोजित पांच दिवसीय कार्यक्रम के चौथे दिन गुरूवार को केरल से आये प्रसिद्ध मूर्तिकार के. एस. राधाकृष्णन ने कला शिविर के दौरान पेंटिंग और मूर्ति कला के बीच तुलनात्मक व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि ख्याति प्राप्त मूर्तिकार रामकिनकर वैज के पेंटिंग और उनके द्वारा बनाई गई मूर्ति के स्लाइड को दिखाते हुए बताया कि उनमें दो ऑब्जेक्ट को मिक्स कर एक नया शिल्प तैयार करने की अद्भुत कला थी। उन्होंने 1920 के दशक की बात करते हुए कहा कि उस दौर में मूर्ति को स्थापित करने के लिए सतह का विकल्प कम हुआ करता था, बावजूद उन्होंने एक से एक बेहतरीन शिल्प का निर्माण किया। जिनमें किनकर मजबूत विषय,रंग और रेखाओं के कई शेड्स को उतारा। उन्होंने खेती के दौरान महिला पुरूषों की आकृति, घरेलु महिलाओं की आकृति, जानवरों की आकृति आदि कुछ इस तरह से तैयार किये कि वो असाधारण बन गया।
के. एस. राधाकृष्णन ने कहा कि रामकिनकर की महात्मा गांधी की बनाई मूर्ति भी काफी रमनीय है। उनकी कई मूर्ति शांति निकेतन में लगी हैं। उन्होंने यक्षिणी की मूर्ति भी बनाई। दिल्ली में आरबीआई कैंपस में भी उनकी बनाई एक मूर्ति है। इसके अलावा उन्होंने मणिपुर की विनोदनी को भी शिल्प के जरिये प्रदर्शित किया, जिनसे उनका लगावा था। बता दें कि वे भारत का सबसे मशहूर समकालीन मूर्तिकार में से एक हैं, जिन्होंने सर्बरी रॉय चौधरी और रामकिनकर वैज के अंदर शिक्षा ग्रहण की। परिचर्चा के दौरान कला, संस्कृति एवं युवा विभाग के अपर सचिव आनंद कुमार, सांस्कृतिक निदेशालय के निदेशक सत्यप्रकाश मिश्रा, विभाग के उप सचिव तारानंद वियोगी, अतुल वर्मा, संजय सिंह, संजय सिन्हा, जे पी एन सिंह, मीडिया प्रभारी रंजन सिन्हा आदि लोग उपस्थित थे।
वहीं, प्रोग्रेसिव आर्ट गैलेरी के क्यूरेटर आर एन सिंह ने बताया कि भारत के किसी भी संग्रहालय में ये पहली बार हुआ हैं, जहां महात्मा गांधी की पोट्रेट की जगह उनके सोच और विचारों को दर्शन वाले पेंटिंग्स को एग्जीवीशन में रखा गया है। यह एक रिकॉर्ड भी है। इसके लिए बिहार सरकार के सोच की जितनी सराहना की जायेगा, कम है। ऐसा पहले कभी भी, कहीं भी नहीं हुआ। उन्होंने बताया कि आज दुनियां भर में इंडियन आर्टस को प्रोग्रेसिव आर्ट के नाम से जाना जाता है, जिसकी स्थापना एम एफ हुसैन, एस एच रजा और एफ एन सूजा ने मिलकर की और उसको चलाने की जिम्मेवारी मुझे मिली। उन्होंने मुझे कई पेंटिंग्स भी दिये। करीब 40 साल से मैंने अब इन पेंटिंग्स की 300 प्रदर्शनी लगाई है। बिहार संग्राहलय में भी 22 कलाकारों के 40 पेंटिंग्स लगाई गई है, जो गांधी जी के साथ – साथ उनके विचारों और शिक्षाओं को भी प्रदर्शित करती है। उन्होंने कहा कि यह संग्रहालय न सिर्फ बिहार के लोगों के लिए, बल्कि देश भर लोगों के लिए वृहत पैमने पर एक्सपोजर देगा। कला और क्राफ्ट ही लोगों को सभ्य और मर्यादित बना सकती है।
बिहार ललित कला अकादमी के उपाध्यक्ष मिलन दास ने बिहार संग्रहालय को राज्य सरकार का अभूतपूर्व देन बताया और कहा कि यह एक बेहद अच्छी शुरूआत है। इससे राज्य के लोग अपनी संस्कृति, इतिहास और विरासत को सुगमता से जान पायेंगे। आने वाले दिनों में संग्रहालय और डेवलप होगा। दुनियां भर में इस संग्रहालय की ख्याति जायेगी। राज्य सरकार के इस सराहनीय प्रयास का दूरगामी परिणाम होगा। बिहार संग्रहालय के वर्कशॉप में हिस्सा लेने त्रिपुरा से आईं जयश्री चक्रबर्ती ने कहा कि ऐसा संग्रहालय भारत में कहीं नहीं है। जिस तरह से इसका निर्माण किया गया है और जिस सोच के साथ इसकी शुरूआत हुई है। वह काबिले तारीफ है। उम्मीद करती हूं कि बिहार संग्रहालय आगे भी ऐसे ही चले और विश्व के संग्रहालय में इसकी भी गिनती हो। उन्होंने ये भी कहा कि अपने मकसद के अनुसार, इसको मेंटेन करना भविष्य की बड़ी चुनौती होगी।