मोतिहारी। बुद्धिजीवियों का मानना है कि चोटीकटवा की खबरों को कुछ टीवी चैनलों की टीआरपी बढ़ाने वाली सनसनी मान कर उसे इग्नोर कीजिए। आप सजग मीडियाकर्मी उनकी तस्वीरें मत खींचिए। खबरें मत बनाइए। देखिए चोटियां कटनी अपने-आप ही बंद हो जाएगी। उनका यह भी तर्क है कि चोटी काटने की घटनाएं भूत पकड़ने व भूत खेलाने जैसी ही है। जो अमुमन कम पढ़ी लिखी महिलाओं के साथ होता है। तो प्रश्न उठता है कि चोटियां अपने-आप कैसे कट जाती हैं।
चोटी कटने की खबरें जो भी आ रही हैं, उनमें दो-तीन बातें काॅमन हैं।
1 चोटी कटने के बाद पीड़ित बेहोश, लेकिन मीडियाकर्मी व फोटोग्राफर के आते होश में आ जाना
2 यह घटनाएं उन महिलाओं के साथ हो रही हैं। जिनके पति उस रात घर पर नहीं थें।
3 कटी चोटियां घटना स्थल पर ही या आस-पास पायी जा रही हैं। चोटी काटने का काेई गिरोह होता तो कटी चोटियां अपने साथ ले जाता।
कुछ लोगों ने बताया है कि महिलाओं के घर के लोग ही चोटियां काटकर सनसनी फैला रहे है। यह देखने के लिए कि देखते हैं होता क्या है। कल इनकी तस्वीरें अखबारों में आएंगी। देशवाणी में इस खबर को इग्नोर किया जा रहा है। फिर भी हमारे दिल्ली के आॅफिस से खबरे लग जा रही है। अखबार भी क्या करें। मजबूरी है। एक अखबार ने छाप दिया तो दूसरे अखबार के संपादक पूछ बैठेंगे कि यह खबर आपसे कैसे छूट गयी। लिहाज कुछ टीवी चैनलों की मजबूरी है।
चैनलों की टीआरपी बढ़ेगी तो उसके विज्ञान की कीमत बढ़ेगी। अफवहों के सिर-पैर नहीं होते। फिर वह खूब फैलती है और तेजी से फैलती है। समाज के जिम्मेवार लोग इससे बचें। अफवाहों से इनोेसेंट लोग दहशत में आ जाते हैं। हमलोंगों ने बचपन में सिकटवा की कहानी सुनी थीं। खूब डरते थें। भला कहिए कि उस समय ह्वट्सएप नहीं था। लोग भी इसमें मिर्चमसाले मिलाकर पेश करते हैं। ऐसा करने से उन्हें मजा आता है। ऐसी अफवाह को फैलाने के लिए संचार माध्यम काफी मुफिद साबित हो रहा है। आए दिन बे सिर-पैर की खबरे आती हैं। लोग भी उसकी सत्यता को जांचे वगैर उसे आगे फारवर्ड कर देते हैं। हाल ही में एक पुरानी वीडियो को वायरल किया गया। वीडियो में एक पानी टंकी को गिरते दिखाया गया है। अफवाह फैलाने वाले ने लिखा था कि मुजफ्फरपुर स्टेशन के पीछे की टंकी गिर गयी। तहकीकात की गयी तो पता चला कि यह वीडियो काफी पुरानी है। बहुत पहले की है। वीडियो में कई लोग जैकेट पहने हुए दिखे। जिससे साबित हो रहा था कि जाड़े के मौसम में इस वीडियो को लिया गया है।
दरअसल चोटी काटने की खबरें क्रिएट किए जा रहे हैं। बताया जा रहा है कि घर ही लोग महिलाओं की चोटियांं काट दे रहे हैं। जब उनका नाम व तस्वीरें समाचार माध्यमों से प्रसारित हो रहे हैं। तो उन्हें मजा आ रहा है। क्योंकि चोटी कटने के बाद कटी हुई चोटियों घर के ही इर्द गिर्द पायी जा रही है। मनोविज्ञान के जानकारों का कहना है कि चोटी काटने की खबरें एक सप्ताह तक इग्नोर करेंगे तो यह घटनाएं हो हानी ही बंद हो जाएंगी।