पटना, (हि.स.) पटना उच्च न्यायालय ने सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी द्वारा राजद को सरकार बनाने का मौका नहीं देकर नीतीश कुमार के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को सरकार बनाने का मौका दिए जाने को राजद की ओर से दी गई चुनौती याचिका को सोमवार को खारिज कर दिया।
पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश आर मेनन तथा न्यायाधीश अनिल कुमार उपाध्याय की खंडपीठ ने दो अलग-अलग याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए अपना फैसला दिया कि राष्ट्रीय जनता दल ने बहुमत सिद्ध करने की प्रक्रिया में सदन की कार्यवाही में हिस्सा लिया । न्यायालय ने मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता ने वोट ऑफ कॉन्फिडेंस को चुनौती नहीं देकर सिंगल लार्जेस्ट पार्टी होने के कारण उसे सरकार बनाने का दावा पेश करने का मौका नहीं दिए जाने को चुनौती दी है इसलिए ऐसी परिस्थिति में न्यायालय हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
अपने फैसले में न्यायाधीशों ने कहा कि दूसरे घटक ने राज्यपाल के पास दावा पेश करते समय बहुमत होने का आंकड़ा भी दिया था जबकि याचिकाकर्ता के घटक ने राज्यपाल के पास ऐसा कोई आंकड़ा नहीं दिया था।
मामले की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता केरल के पास यदि सबसे अधिक संख्या थी तो बहुमत साबित करने के दौरान सदन में उसे जीत जाना चाहिए था। याचिकाकर्ता के अधिवक्ताओं ने सुनवाई के दौरान एस आर बोम्मई मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का उल्लेख किया जिस पर न्यायालय ने कहा कि एस आर बोम्मई मामले में फ्लोर टेस्टिंग नहीं हुई थी जबकि वर्तमान मामले में यह हो चुका है और उसमें याचिकाकर्ता का दल शामिल होने के बाद हार भी चुका है।
न्यायाधीशों के कहने के बावजूद याचिकाकर्ताओं ने अपनी-अपनी याचिकाओं को वापस नहीं लिया और मेरिट के आधार पर फैसला सुनाने को कहा जिसके बाद न्यायाधीशों ने याचिकाओं को खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया।
बिहार सरकार की ओर से बिहार के नवनियुक्त महाधिवक्ता ललित किशोर ने मामले पर बहस की जबकि केंद्र का पक्ष एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया एस डी संजय ने रखा। राज्यपाल की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता भाई भी गिरी कोर्ट में पेश हुए थे।