वामपंथियों की विचारधारा दक्षिणपंथी विचारधारा के साथ ले रही वैमनस्य का रूप : होस्बोले
पटना, (हि.स.)| राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के विचारक दत्तात्रेय होस्बोले ने कहा कि दक्षिणपंथियों और वामपंथियों की विचारधारा में विरोध स्वाभाविक है, किन्तु वैमनस्य का रूप ले रहा वामपंथियों का यह विरोध आज की पीढी के लिए अभिशाप के समान है |
रामजी मिश्र मनोहर फाउंडेशन की ओर से भाजपा नेता सुरेश रूंगटा की किताब का विमोचन करते हुए होस्बोले ने बुधवार को यहाँ कहा कि 20-25 वर्षों पूर्व की विचारों में विरोध के बावजूद दक्षिणपंथी और वामपंथी एक साथ बैठते थे और विचार-विमर्श करते थे, किन्तु आज के दौर में वामपंथियों का यह वैचारिक विरोध वैमनस्यता का रूप ले लिया है | उन्होंने कहा कि एक समय था जब साम्यवाद , समाजवाद, जनसंघ, दक्षिणपंथी, वामपंथी सभी अपने-अपने विचारों को खुल कर रखते थे किन्तु अब वामपंथियों की मानसिकता में ही अंतर आ गया है|
पार्टियों के अंदर विचार के मंथन को आवश्यक बताते हुए उन्होंने कहा कि नए-नए विचारों का सृजन करना जरूरी है | उन्होंने कहा कि यह वैचारिक सृजन लेखन के माध्यम से ही सम्भव है | विचारिक ज्ञानार्जन की तरफ प्रेरित होने के लिए नई पीढ़ी का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा कि देश के नव निर्माण के लिए अपने सामाजिक चरित्र, संस्कार, संस्कृति, भाषा को अक्षुण्ण रखते हुए नागरिक बोध, लोक प्रयास और प्रशासनिक व्यवस्था के बीच संतुलन आवश्यक है |
नई पीढी का आधुनिकता की तरफ अत्यधिक रुझान, विगत सत्तर सालों में आर्थिक-सामजिक-शिक्षा की स्थिति की चर्चा करते हुए होस्बोले ने कहा कि देश के नवनिर्माण के लिए राष्ट्र के विषयों पर राष्ट्रीय सहमती बनाकर आगे बढना होगा | उन्होंने अफ़सोस प्रकट किया कि देश की सुरक्षा, दुश्मन की पहचान जैसे महत्वपूर्ण विषय पर भी राजनीति के कारण राष्ट्रीय सहमति नहीं बन पा रही |
देश के विकास के लिए विश्वसनीय नेत्रित्व की भूमिका की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि जिस तरह प्रति व्यक्ति आय के उन्नयन पर विचार किया जाता है, उसी तरह प्रति व्यक्ति के चारित्रिक उन्नयन का भी प्रयास किया जाना चाहिए |