पटना, (हि.स.)। भारत का कृषि क्षेत्र एक भयावह दौर से गुज़र रहा है जिसमें किसान पूर्ण रूप से हाशिये पर चले गए हैं। देश के लिए अनाज का उत्पादन करने वाले आज खुद दाने-दाने को मोहताज़ हो गए हैं और जीवन की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए दूसरे का मुंह देख रहे हैं। इसका सीधा मतलब यही है कि देश की कृषि नीति किसानों के साथ बहुत बड़ा छल है। उक्त बातें बिहार प्रदेश जनता दल (यू.) के प्रदेश प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने मंगलवार को संवाददाताओं से बातचीत में कही ।
उन्होंने कहा कि मंदसौर में भाजपा सरकार प्रायोजित किसानों की हत्या के बाद पार्टी नेताओं द्वारा यह दलील दी जाने लगी है कि सरकार इस बाबत निर्णायक कदम उठाते हुए कर्जमाफ़ी की प्रक्रिया शुरू करेगी, ताकि किसानों के ऊपर से आर्थिक बोझ कुछ कम हो सके ।
एक बड़े परिपेक्ष में देखा जाए तो क़र्ज़माफ़ी से कृषि क्षेत्र की समस्याओं का पूरा समाधान नहीं हो पायेगा | वहीं, सोमवार को केन्द्रीय वित्त मंत्री अरूण जेटली के कर्ज माफी संबंधी बयान से इसका कोई लेना देना नहीं है और कर्ज माफ़ करना भी हो तो इसके लिए पैसों के इंतज़ाम की जिम्मेवारी राज्य सरकारों की होगी। इससे एक बार फिर साफ़ हो गया है कि केंद्र सरकार के लिए किसानों के मुद्दे कोई मायने नहीं रखते हैं। अफ़सोसजनक बात यह थी कि उसी प्रेस कांफ्रेंस में वित्त मंत्री बड़े कंपनियों और व्यवसायियों द्वारा किये गए हज़ारों करोड़ की लोनमाफ़ी के लिए बैंकों द्वारा तैयार किये जा रहे मसौदे का बड़े गौरव के साथ वर्णन कर रहे थे ।
वहीं, जहां प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को किसानों के हितकारी योजना के रूप में प्रस्तुत किया गया मगर योजना से सम्बधित आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद जो तथ्य सामने आ रहे हैं, वह हैरान करने वाले हैं। 2016 के खरीफ के फसल से जो संबधित आंकड़े मिले हैं, उसके अनुसार पूरे देश में मात्र 3 करोड़ 70 लाख किसानों ने कृषि बीमा कराया। इसमें से 2 करोड़ 69 लाख ऐसे किसान थे जिन्हें बैंक द्वारा लोन दिया गया था, जबकि सिर्फ 1 करोड़ 1 लाख किसान ही ऐसे थे जिनके ऊपर लोन न होते हुए भी उनका बीमा करवाया गया। इसका सीधा मतलब है कि जो किसान लोन ले रहे हैं, उन्हीं को बीमा करने में प्राथमिकता दी जा रही है।
पिछले साल बीमा कंपनियों ने किसानों से कुल 16,130 करोड़ का कृषि बीमा प्रीमियम वसूला है जबकि उनकी देनदारी 8000 करोड़ से भी कम भी| यानी बीमा कंपनियों को सीधे तौर पर लगभग 8200 करोड़ का शुद्ध मुनाफा हुआ|
अगर सिर्फ महाराष्ट्र की बात करें जहां किसानों द्वारा आत्महत्या की घटनाएं काफी तेजी से बढ़ी हैं, वहां साल 2016 के खरीफ फसलों के लिए किसान, राज्य सरकार और केंद्र सरकार ने कुल 3920.8 करोड़ का प्रीमियम बीमा कंपनियों को दिया जबकि बीमा कंपनियों ने फसल ख़राब होने पर कुल 2000 करोड़ का भुगतान किसानों को किया गया। वहीं, साल 2016 के खरीफ फसलों के सीजन में बीमा कंपनियों ने 1920.8 करोड़ का मुनाफा महाराष्ट्र के किसानों, राज्य सरकार और केंद्र सरकार के द्वारा दिए गए किश्तों के आधार पर कमाया। इनमें प्रमुख तौर पर एग्रीकल्चर इंस्यारेंस कंपनी, इफको टोक्यो, रिलायंस जेनरल और एचडीएफसी एर्गो प्रमुख हैं। अब इन आंकड़ों के आधार पर क्या नीतीश का कहना गलत है कि प्रधानमंत्री कृषि बीमा योजना का फायदा मूल रूप से बीमा कंपनियों को हो रहा है।