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विश्वविद्यालय में पद सृजन कर भोजपुरी भाषा की पढ़ाई तत्काल शुरू की जाए : आरके सिन्हा
By Deshwani | Publish Date: 2/6/2017 4:42:45 PM
विश्वविद्यालय में पद सृजन कर भोजपुरी भाषा की पढ़ाई तत्काल शुरू की जाए : आरके सिन्हा

पटना  (हि स.)। बिहार के विश्वविद्यालयों में भोजपुरी भाषा की पढ़ाई बंद हो जाने से इस भाषा के प्रति हो रहे घोर अन्याय पर चिंता प्रकट करते हुए भारतीय जनता पार्टी ( भाजपा ) के राज्य सभा सांसद आरके सिन्हा ने शुक्रवार को राज्यपाल राम नाथ कोविंद से वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय में भोजपुरी विभाग के पद सृजन कर इस भाषा की पढ़ाई तत्काल शुरू करने की मांग की।
श्री सिन्हा ने राज्यपाल को हाल ही में लिखे अपने पत्र की प्रति मीडिया में जारी की। पत्र में उन्होंने कहा कि 25 करोड़ लोग भोजपुरी बोलने वाले हैं, किन्तु दुर्भाग्यवश भोजपुरी की पढ़ाई भोजपुर में ही बंद है।श्री सिन्हा ने भोजपुरी के साथ हो रहे घोर अन्याय को तत्काल बंद कर इसकी विधिवत पढ़ाई पुनः शुरू करने की मांग करते हुए कहा कि यदि ऐसा नहीं हुआ तो इसके लिए वे भोजपुरी समाज के साथ मिल कर व्यापक आन्दोलन करेंगे।
उन्होंने कहा कि राजभवन के आदेश पर सत्र 2016-17 से भोजपुरी में स्नातकोत्तर तथा पीएचडी में नामांकन की प्रक्रिया को बंद कर दिया गया है। भोजपुरी भाषा की पढ़ाई के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री बिन्देश्वरी दूबे के प्रयासों की चर्चा करते हुए श्री सिन्हा ने कहा कि श्री दूबे ने मगध विश्वविद्यालय के आरा स्थित कालेजों में वर्ष 1991 में ही स्नातकोतर स्तर पर भोजपुरी की पढ़ाई शुरू करने का निर्देश दिया था। उन्होंने कहा कि 1992 में वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद जगजीवन कॉलेज आरा में वर्ष 1993 में भोजपुरी में स्नातकोत्तर की पढ़ाई शुरू हुई थी। बाद में वर्ष 2000 में विश्वविद्यालय का यह स्वतंत्र विभाग बना और स्नातकोत्तर की पढाई चलती रही। साथ ही शोध कार्य भी चलता रहा और उपाधियां भी मिलती रहीं, किन्तु पद का सृजन नहीं किया गया।
भाजपा सांसद ने कहा कि पद के सृजन नहीं होने से नाराज़ भोजपुरी के साहित्त्य्कारों और विद्वानों ने 24 वर्षों बाद पटना उच्च न्यायालय में एक लोक हित याचिका दायर की। आरा में छात्रों के हुए व्यापक आन्दोलन के बाद आनन-फानन में 26 सितम्बर, 2016 को विश्वविद्यालय ने एमए तथा बीए का नया ड्राफ्ट रेगुलेशन और सिलेबस तैयार कर राजभवन को भेज दिया।
श्री सिन्हा ने कहा कि आश्चर्यजनक रूप से 24 वर्षों से राजभवन द्वारा एमए का सिलेबस स्वीकृत रहने, दस से अधिक सम्बद्ध कालेजों और 3 अंगीभूत कालेजों में लगातार पढाई होने तथा 26 सितम्बर 2016 को ही राजभवन को आवश्यक कागज़ात भेजने के बावजूद, पद सृजन के सन्दर्भ में अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 1993 से अब तक लगभग 2800 छात्रों ने भोजपुरी में स्नातकोत्तर किया और 109 ने पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने कहा कि फिलहाल 180 छात्र भोजपुरी में पीएचडी में नामांकन कराकर शोध कार्य कर रहे हैं। पिछले वर्ष तक नामांकित छात्र अभी भी स्नातकोत्तर तथा पीएचडी कर रहे हैं जबकि राजभवन के आदेश से वर्ष 2016-17 से बिहार में भोजपुरी में नामांकन की प्रक्रिया बंद कर दी गई है। भोजपुरी भाषा के साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ आन्दोलन करने की चेतावनी देते हुए श्री सिन्हा ने कहा कि इस भाषा के साथ किसी भी तरह का अन्याय बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।



 

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