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विभागीय कर्मियों व दलालों की मिलीभगत से खुलेआम कट रहे जंगल
By Deshwani | Publish Date: 10/12/2017 1:04:04 PM
विभागीय कर्मियों व दलालों की मिलीभगत से खुलेआम कट रहे जंगल

गोरखपुर, (हि.स.)। एक तरफ सरकार जहां पर्यावरण को हरा-भरा करने के लिये लाखों रूपये प्रचार-प्रसार के माध्यम से खर्च कर रही है। वहीं उसी के विभागीयकर्मी कुछ चंद रूपयों की लालच के कारण हरे-भरे जंगल को नसनाबूत करने पर तुले है।


आलम यह है कि वनकर्मियों व वन तस्करों की मिलीगत से आये दिन बेधड़क जंगल से पेड़ काटकर गायब किये जा रहे हैं। अभी हाल ही में कुसम्ही जंगल के में देखने को मिला। महकमें चंद रूपयों की लालच में आकर तस्करों को वन क्षेत्र में मनमानी करने की छूट दे रखें है। ये तस्कर बेखौफ अपने कार्य को अंजाम दे रहें है, और पूरा महकमा आखों पर पट्टी व कानों में तेल डालकर बैठा है।


देवरिया व कुशीनगर के वन तस्करों का राज समूचे पूर्वांचल के वन क्षेत्र में फैला हुआ है। ये तस्कर जहां चाहते है उस जंगल का पेड़ काट कर गिरवा देते हैं। कारण यह है कि इनकी कमीशन बाजी नीचे से लेकर उपर तक फिक्स है। महकमें ने सबका रेट फिक्स रखा है। पेड़ को चिन्हित करने से लेकर उसे काटने व लादने के अलग-अलग रेट है। सबसे बड़ी चिन्ता का विषय यह है कि वह कौन सा कारण है कि वन विभाग के आला अफसर ये सारा खेल जानते हुए भी चुप्पी साधे बैठे हैं।


बता दें कि गोरखपुर वन प्रभाग 15276.60 हेक्टेयर की लंबी एरिया में फैला है। वनों की दिन प्रतिदिन तेजी से कटान हो रही है। और वन विभाग के अफसर हाथ पे हाथ रखे बैठे हैं। अप्रैल 2011 से लेकर मार्च 2017 तक लगभग 150 घन मीटर लकड़ी की बरामदगी विभाग ने किया है। जिसका मूल्य लगभग 20 लाख रूपया है। कटे हुए वृक्षों की संख्या पौने पांच सौ के करीब है। तस्करी के इस कार्य का अपना एक अलग ही चैनल है।


सू़त्रों का कहना है कि पहली पेड़ों को काटने वाले है जो काटने के बाद अपना मेहनताना ले कर किनारा कस लेते हैं। इसके बाद लकड़ी को बन्द छोटी गाड़ियों में लादकर देवरिया तथा कुशीनगर के अलावा जिले कि कुछ आरा मशीनों पर रख दिया जाता है। जहां कुछ दिन बाद उसे विहार तथा महराजगंज के रास्ते नेपाल भेजा जाता है।


सूत्रों की माने तो इस कार्य में बड़े सफेदपोशों की प्रमुख भूमिका होती है। यदि वन विभाग के अधिकारियों को माफियों की योजना के बारे में जानकारी हो जाती है तो उनसे मोर्चा लेने के लिए बिहार से असलहेधारी भी बुलाये जाते हैं। जो देवरिया तथा मोतीराम अड्डे के पास महफूज रहते हैं। एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि पेड़ों को कटवाने से लेकर उसको जंगलों से बाहर निकलवाने का कार्य भी विभाग के लोग ही करते हैं। जब उपर से किसी अधिकारी बरामदगी के लिए दबाव पड़ता है तो कुछ लकड़ियों की बरामदगी दिखा दी जाती है।

 

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