उदयपुर, (हि.स.)। वर्तमान समय में समाज सेवा करने की बात तो बहुत लोग करते होंगे लेकिन ऐसे कम ही लोग होंगे जो कि समाज सेवा की बात करने के साथ साथ तन, मन और धन से समाज सेवा में जुटे हुए हो। जी हां, इस बात को सही साबित कर दिखाया उदयपुर के युवाओं शुभम जैन व संजय लूणावत ने।
शुभम बताते हैं कि संजय के पिता सुरेश चंद्र लूणावत की सोच सेवा की थी, उनसे संजय ने भी प्रेरणा ली। संजय यूं तो सरकारी सेवा में नोडल ब्लॉक ऑफिसर के पद पर कार्यरत हैं लेकिन समाज सेवा के लिए उन्होंने यह इंस्टीट्यूट खोला हां पूर्ण रूप से निशुल्क पढ़ाया जाता है। यहां पर आने वाले सभी छात्र-छात्राओं को सभी प्रतियोगी परीक्षाओं की निशुल्क कोंचिग मिलती है। इतना ही नहीं संजय लूणावत ने नेत्रदान की घोषणा कर रखी है। वह इसके लिए अन्य लोगों को भी प्रेरित कर रहे हैं।
अक्सर सरकारी सेवा में आ जाने के बाद लोग अपने मिशन को भूल जाते हैं लेकिन संजय लूणावत अपने पिता के द्वारा समाज सेवा की दी गई शिक्षा को नहीं भूले और अपने मिशन में जुट गए। मिशन इंस्टीट्यूट उदयपुर शहर के सेक्टर-14 में है। यहां अभी करीब ढाई सौ बच्चे निशुल्क पढ़ रहे हैं। अपने पैरों पर खड़े नहीं होने तक वह अपने पिता के कार्य को आगे नहीं बढ़ा सके। जब वह सरकारी नौकरी में आ गए, उसके बाद से निशुल्क कोचिंग देना शुरू कर दिया है। यहां किसी वर्ग विशेष नहीं, सभी को निशुल्क कोचिंग देकर उनके भविष्य को बनाने का कार्य हो रहा है।
मिशन कोचिंग क्लासेस में निशुल्क कोचिंग का पता बच्चों को सोशल मीडिया पर चला लेकिन एक बार तो उन्हें इस बात का विश्वास नहीं हुआ। फिर जानकारी करने पर विश्वस्त हुए। खास बात यह है कि यहां पर बच्चों को कोचिंग के दौरान करंट नोट्स के साथ-साथ पेपरलेस नोट्स भी मिलते हैं। यहां पर उदयपुर के साथ बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़ सहित अन्य कई जिलों के बच्चे पढऩे आते हैं। यहां पर आने वाले बच्चों की माने तो अन्य कोचिंग इंस्टीट्यूटस की तरह यहां पर भी सभी विषयों की पढ़ाई होती है। यहां से निकलने वाले छात्र-छात्राओं को भी वे यही आग्रह करते हैं कि इसी तरह वे भी किसी को निशुल्क पढ़ाएं और आगे बढ़ाएं। यहां के सभी छात्र-छात्राओं ने नेत्रदान का संकल्प ले रखा है।
मिशन के निदेशक शुभम कहते हैं- हम अपने पैरों पर खड़े हैं और दूसरों की इस तरह मदद कर सकते हैं। हमारे यहां से निकले हुए स्टूडेंट भी दूसरों की मदद कर रहे हैं। यहां कोई भेदभाव नहीं है। करीब 15-16 जिलों से बच्चे यहां पढऩे आते हैं।