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अब छात्रों को संस्कृत में मेट्रो सुनायेगी अपनी आत्मकथा
By Deshwani | Publish Date: 25/9/2017 3:15:29 PM
अब छात्रों को संस्कृत में मेट्रो सुनायेगी अपनी आत्मकथा

लखनऊ, (हि.स.)। संस्कृत को आम तौर पर कठिन, वर्ग विशेष और कर्मकाण्ड की भाषा माना जाता है। इसके अलावा आमतौर पर यह भी धारणा रही है कि पढ़ाई के दौरान जटिल और धार्मिक विषयों को ही संस्कृत के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाता है। इस वजह से अधिकांश छात्र-छात्राएं इसमें रूचि लेने के बजाय रटकर ही उत्तीर्ण होना पसन्द करते हैं, लेकिन अब एनसीईआरटी बच्चों के बीच संस्कृत को लोकप्रिय बनाने में जुट गया है। इसके तहत पाठ्यक्रम में ऐसे आधुनिक और रोचक विषय शामिल किये जा रहे हैं, जिससे बच्चों की संस्कृत में रूचि बढ़ सके। इसी तर्ज पर नये सत्र से छात्र-छात्रायें मेट्रो ट्रेन और मंगलयान जैसे विषयों को पढ़ सकेंगे। इसके अलावा ज्वलंत विषयों के बारे में भी उन्हें जागरूक किया जायेगा। 
संस्कृत रत्नम में रोचक तरीके से दी गई है जानकारियां
संस्कृम रत्नम के भाग दो कक्षा सात के लिए परिवर्तित परिशोधित नूतन संस्करण में मेट्रो ट्रेन और मंगलयान का पूरा इतिहास रोचक तरीके से बताया गया है। इसके अलावा इसमें कार्टून, वृत्त चित्रों को भी पहली बार शामिल किया गया है, जिससे छात्र-छात्राओं में विषय को लेकर रोचकता बनी रहे। इस पुस्तक के लेखक डॉ. विजयकुमार कर्ण हिन्दुस्थान समाचार से बताते हैं कि अपने आप में यह अनोखी कवायद होगी, जिसमें विज्ञान के विषय संस्कृत के माध्यम से बच्चे न सिर्फ पढ़ सकेंगे बल्कि उन्हें आनन्द भी आयेगा। पुस्तक की विशेषता है कि इसमें सरल से कठिन के आधार पर पाठों का चयन किया गया है, जिससे बच्चे शुरूआत में ही संस्कृत से किनारा करने का मन नहीं बनायें। इसमें बच्चों को देश, संस्कृति और परम्परा पर गौरव की अनुभूति कराने वाले पाठों के साथ आधुनिक विषयों पर भी पाठ रचे गये हैं, जिनसे यह पुस्तकमाला परम्परा और आधुनिकता का सेतु है। 
 
संस्कृत की लोकप्रियता में होगा इजाफा
संस्कृम रत्नम में कोमिक स्ट्रिप्स यानी चित्रकथा का भी समावेश किया गया है। अध्ययन की सुविधा के लिए प्रत्येक पाठ के अन्त में शब्दार्थ हिन्दी और अंग्रेजी में दिये गये हैं। वहीं बच्चों को संस्कृत व्याकरण का अधिक ज्ञान हो सके, इसके लिए पुस्तक में ही अभ्यास पुस्तिका दी गई है। निजी स्कूलों में इस तरह की पहल संस्कृत की लोकप्रियता में इजाफा करने में बेहद प्रभावी साबित होगी इस पुस्तक का प्रकाशन भी बेहद आकर्षित तरीके से कराया गया है। खासतौर से इसके कलेवर में बनीं पाण्डुलिपियां पुस्तक को बेहद आकर्षित बनाती हैं। 
 
विदेशी धरती से शुरू हुआ था मेट्रो का सफर
संस्कृम रत्नम में मेट्रो ट्रेन के पाठ की बात करें तो इसका शीर्षक ‘‘मेट्रोरेलयानस्य आत्मकथा’’ है। इसमें मेट्रो का पूरा जीवन वृत्त है, जिसमें मेट्रो अपने जन्म से लेकर वर्तमान सफर तक की आत्मकथा कह रही है। मेट्रो बच्चों को बताती है कि इंग्लैण्ड के लिवर पूल में एक टनल के जरिये उसकी उत्पत्ति हुई और वह दुनिया के सामने आयीं। उसकी शुरूआत के पीछे लोगों को तनावमुक्त और आरामदायक सफर मुहैया कराना था। मेट्रो ट्रेन बताती है कि उसका इतिहास बहुत प्राचीन नहीं फिर भी आकर्षित करता है। कहने को बहुत सारे यातायात के साधन हैं, लेकिन उनमें मैं सबसे ज्यादा आधुनिक हूं, जो कम समय और कम पैसे में बेहद लोकप्रिय यात्रा का साधन है। मेट्रो आत्मकथा में बच्चों से कहती है कि जिस स्वरूप में आज उसे देखा जा रहा है, वह शुरूआत से ऐसी नहीं थी। पहले वह ताप इंजन से चलती थी। इससे समय ज्यादा लगता था, लेकिन धीरे-धीरे इसमें सुधार हुआ और अब उसका इंजन पूरी तरह से इलेक्ट्रानिक हो चुका है।
 
कैसे दुनिया को मिला मेट्रो नाम
 
मेट्रो अपने सफर की दास्तान बताते हुए कहती है कि लन्दन के बाद वह 1900 में फ्रांस के सुप्रिसद्ध शहर और राजधानी पेरिस चली गई। वहां मुझे आमतौर पर पुकारे जाने वाले ‘‘चेमिन डे पेफंर’’ से एक संक्षिप्त नाम ‘‘मेट्रो’’ दिया गया। इसके बाद से ही पूरी दुनिया आज तक मुझे इसी नाम से पुकार रही है। यहां से मेट्रो 1902 में बर्लिन के हॉचवहन पहुंची। फिर 1974 में अमेरिका के वोस्टन नगरवासियों ने मेरा लुत्फ उठाया। यहां से आगे बढ़ते हुए मैं मास्को पहुंची।
 

कोलकाता से लेकर लखनऊ इस तरह पहुंची लखनऊ
मेट्रो बताती है कि भारत में उसने अपना पहला कदम 1984 के दशक में रखा। देश में ई.श्रीधरन के कठिन परिश्रम की बदौलत 25 दिसम्बर 2002 को कोलकाता देश का पहला शहर बना, जहां लोगों ने इस आधुनिक सवारी गाड़ी का आनन्द लिया। शाहदरा से तीस हजारी के बीच इसकी शुरूआत की गई। मेट्रो आत्मकथा में बताती है कि इसके बाद मैं देश की राजधानी नई दिल्ली में पहुंची और आज 200 से अधिक संख्या में वहां दौड़ रही हूं। मैं प्रतिदिन 193 किलोमीटर का सफर तय करती हूं और मेरे संचालन की बदौलत लगभग 1.17 लाख अन्य गाड़ियां चलन से बाहर हो गईं। लोगों को मैं इसलिए पसन्द आयी क्योंकि मेरा सफर उनका वक्त और पैसा दोनों बचाता था। इसके बाद मैं मुम्बई पहुंची। फिर चेन्नई, बंगलुरू, हैदराबाद, अहमदाबाद, जयपुर होते हुए मेरा पड़ाव लखनऊ शहर बना। मेट्रो बताती है कि अभी भी बहुत सारे शहर मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं। इसलिए मैं सबसे सुखद यात्रा कराने वाली हूं। 
 
जीवन में मंगल तलाशने का भी सबक देता है मंगलयान 
इसी तरह कक्षा आठ में मंगलयान पाठ में मंगलयान की पूरी कहानी बतायी गई है। छात्र-छात्राओं को समझाया गया है कि यह कितना बड़ा स्वदेशी गौरव का पल था। इसके साथ ही इसमें यह सन्देश दिया गया है कि भले ही मंगलयान को भेजने का मकसद मंगल में जीवन तलाशना हो, लेकिन जीवन में मंगल कैसे तलाशा जाये, इसकी भी कोशिश करनी चाहिए। इसके अलावा देश भर में चल रही स्वच्छ भारत की मुहिम के प्रति बच्चों को जागरूक करने के लिए कक्षा सात में स्वच्छता अभियान जैसे ज्वलंत विषय को भी पुस्तक में शामिल किया गया है। इसमें बताया गया है कि इसकी शुरूआत लिए दो अक्टूबर को क्यों चुना गया। कौन-कौन से मंत्रालय इसमें अपनी भूमिका निभा रहे हैं और स्वच्छता अभियान की बदौलत कैसे बीमारियों से बचकर स्वस्थ रहा जा सकता है। 
संस्कृत रत्नम पुस्तक दक्षिण भारत के तमाम राज्यों कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, केरल के अलावा बिहार, झारखण्ड और उत्तराखण्ड में भी संस्कृत पाठ्यक्रम में शामिल है। डॉ. विजयकुमार कर्ण कहते हैं कि जिस तरह से एनसीईआरटी से इसे पाठ्यक्रम में शामिल किया है और अंग्रेजी माध्यम के बच्चे भी संस्कृत को सरल भाषा में सीख सकेंगे, अगर इसी तरह की पहल उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से भी हो, तो यहां के बच्चों के बीच भी संस्कृत का प्रचार-प्रसार हो सकेगा। उम्मीद है सरकार इस सम्बन्ध में ध्यान देगी।
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