भीलवाड़ा, (हिस)। टॉयलेट एक प्रेम कथा फिल्म में ससुराल में टॉयलेट नहीं होने पर पत्नी कोर्ट पहुंचती है, लेकिन सुनवाई से पहले टॉयलेट बन जाने से तलाक नहीं होता है। परंतु भीलवाड़ा में पत्नी ने ससुराल में टॉयलेट नहीं होने पर पति से तलाक मांग लिया। भीलवाड़ा के पारिवारिक न्यायालय ने घर में शौचालय नहीं होने को क्रूरता की श्रेणी में मानते हुए महिला के तलाक मांगने को मंजूर भी कर दिया। शौचालय के लिए तलाक मंजूर होने का यह प्रदेश में पहला मामला है। भीलवाड़ा के पारिवारिक न्यायालय ने फैसला देते हुए यह भी कहा कि महिलाओं को बाहर शौच जाने के लिए रात होने का इंतजार करना पड़ता है। यह क्रूरता है।
यह मामला भीलवाड़ा शहर के समीप बसे आटूण गांव का है। भीलवाड़ा के उपनगर पुर की युवती का विवाह आटूण में हुआ था। वह ससुराल पहुंची तो पता चला कि वहां घर में शौचालय ही नहीं है। यह परेशानी उसने ससुराल वालों को बताई। लेकिन उन्होंने कोई सुनवाई नहीं की। आखिर विवाहिता ने सदर थाने में प्रताड़ना की रिपोर्ट दी। इस दौरान वह दो वर्ष तक पीहर में रही। जांच के बाद मामला पिछले साल पारिवारिक कोर्ट में पहुंचा।
भीलवाड़ा के पारिवारिक न्यायालय के न्यायाधीश राजेंद्र शर्मा ने घर में शौचालय के अभाव को महिला की निजता पर चोट को माना और तलाक की अर्जी मंजूर कर ली। कोर्ट ने कहा कि शौचालय के अभाव में एक पत्नी मानसिक पीड़ा बर्दाश्त कर रही है और पति कोई परवाह नहीं कर रहा है। यह पत्नी के लिए एक मानसिक क्रूरता और त्रासदीपूर्ण स्थिति हो सकती है।
उल्लेखनीय है कि महिला ने कोर्ट में तलाक के लिए 2015 में परिवाद पेश कर कहा कि उसका विवाह 2011 में हुआ था। ससुराल में उसके लिए न तो अलग कमरा है और न शौचालय। ख्ुाले में शौच जाने से उसको शर्मिंदगी महसूस होती है।
विवाहिता ने कहा- शौचालय बनवाना ससुराल का दायित्व
महिला ने याचिका में कहा था कि शौच के लिए उसे घर के बाहर खुले में जाने से लज्जा का अनुभव होता है। उसके ससुराल वालों का दायित्व है कि घर में कम से कम शौचालय तो बनवा कर उसका इस्तेमाल करते। कोर्ट ने उसके ससुराल जनों से शौचालय होने का प्रमाण मांगा। लेकिन वे कोई भी प्रमाण या फोटो पेश नहीं कर सके। महिला ने यह भी आरोप लगाया कि विपक्षी और उसके परिवार वाले दो लाख रुपए की मांग करते रहे। इसकी पूर्ति नहीं होने पर उन्होंने उसके साथ मारपीट भी की। महिला ने कहा कि किसी भी स्त्री के लिए घर में सोने, उठने-बैठने के लिए अलग कक्ष की व्यवस्था होना भी वाजिब है। इससे उसकी निजता का अधिकार बना रहता है।
कैसी विडंबना, हम मां-बहनों की परेशानी भी नहीं समझते- कोर्ट
न्यायाधीश राजेंद्र शर्मा ने फैसले में कहा कि क्या हमें कभी दर्द हुआ है कि हमारी मां बहनों को खुले में शौच करना पड़ता है। गांवों में महिलाएं रात होने की प्रतीक्षा करती हैं। अंधेरा नहीं होता तब तक वे शौच के लिए बाहर नहीं जा सकतीं। इससे उन्हें शारीरिक यातना होती है। क्या हम अपनी मां-बहनों की गरिमा के लिए शौचालय की व्यवस्था नहीं कर सकते? 21वीं सदी में खुले में शौच की प्रथा समाज के लिए कलंक है। शराब, तंबाकू और मोबाइल पर बेहिसाब खर्च करने वाले घरों में शौचालय नहीं होना विडंबना है।
स्वच्छ भारत मिशन अभियान को मिलेगी गति
भीलवाड़ा के पारिवारिक न्यायालय के इस ऐतिहासिक फैसले से जिले में स्वच्छ भारत मिशन अभियान के तहत बनाये जा रहे शौचालय के निर्माण कार्य में गति आयेगी। जानकारों का कहना है कि कोर्ट के इस आदेश से निश्चित रूप् से सामाजिक जागृति आयेगी। एक महिला के पक्ष में दिये गये इस फैसले के आधार पर अन्य महिलाएं भी इस प्रकार आगे आ सकती है।
35 प्रतिशत परिवार जाते हैं खुले में शौच
जिला प्रशासन की ओर से स्वच्छता मिशन के तहत दो दिन पूर्व ही जिले के सभी विद्यालयों में विद्यार्थियों से अपने घरों में शौचालयों की स्थिति को लेकर मतदान कराया गया। 1443 विद्यालयों में हुए मतदान में एक लाख 39 हजार 474 विद्यार्थियों ने भाग लिया। मतदान के परिणामों के अनुसार 48,131 (34.51) परिवार ऐसे पाये गये जिनके परिवार आज भी खुले में शौच जाते है।