नई दिल्ली। ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी भारत दौरे पर हैं। धुर विरोधी इजरायल के प्रधानमंत्री के आगमन के एक महीने के भीतर ही ईरान के राष्ट्रपति की भारत यात्रा कूटनीतिक रिश्तों के साथ-साथ आर्थिक संबंधों को मजबूत करने की दिशा में प्रयास माना जा रहा है। दरअसल परमाणु कार्यक्रम रोकने की शर्त पर ईरान से संयुक्त राष्ट्र ने तमाम प्रतिबंध तो हटा लिए हैं लेकिन अमेरिका ने अब भी कई तरह की पाबंदियां लगा रखी हैं। ऐसे में ईरान, भारत जैसे देशों से बड़े निवेश की चाहत रखता है. इसी कड़ी में ऐसे कई समझौते हुए हैं जिनके चलते भारत वहां अपनी मुद्रा रुपये के जरिये ही निवेश करेगा। इसके चलते नेपाल और भूटान के बाद ईरान तीसरा ऐसा मुल्क हो गया है जहां रुपये में निवेश किया जाएगा।
दरअसल ईरान, इस वक्त बड़े पैमाने पर बेरोजगारी के संकट से जूझ रहा है। पिछले महीनों में वहां बेरोजगारी के मुद्दे पर जबर्दस्त प्रदर्शन हुए हैं। ऐसे में ईरान चाहता है कि उसके इंडस्ट्रियल जोन में भारतीय कंपनियों का निवेश बढ़े। इससे लाखों नौकरियों का सृजन होने के साथ-साथ वित्तीय संकट से जूझ रहे ईरान को कैश की आपूर्ति होगी।
इस दौरे के दौरान तीन मुद्दों पर भारतीय पक्ष के साथ ईरान समझौते का सबसे ज्यादा इच्छुक है। इनमें भारत के सहयोग से विकसित हो रहे चाबहार बंदरगाह का विकास दोनों देशों के बीच बातचीत का केंद्रीय मुद्दा है. इसके साथ ही चाबहार के इंडस्ट्रियल जोन में वह भारत का निवेश चाहता है. इस प्रोजेक्ट में भारत ने जापान को साथ जोड़ते हुए रुचि दिखाई है। दक्षिण कोरिया भी इस जोन में निवेश का इच्छुक है। तीसरा मसला कनेक्टिविटी से जुड़ा है. चाबहार के पहले हिस्से का काम पूरा होने के बाद इसका लाभ ईरान को मिलना शुरू हो गया है. उसका व्यापार बढ़ने लगा है. पहले जो जहाज कराची जाते थे, अब वे चाबहार होते हुए आगे बढ़ रहे हैं। इसके साथ ही चाबहार, अफगानिस्तान से जुड़ रहा है।
ईरान पर प्रतिबंधों के दौर में भी भारत के उसके साथ अच्छे संबंध रहे। चाबहार बंदरगाह भारत के लिए भी बहुत अहम है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस तरह अफगानिस्तान के साथ ही मध्य एशिया के मुल्कों तक यह जुड़ सकेगा। गुजरात के कांडला बंदरगाह से महज छह दिनों में चाबहार पहुंचा जा सकता है। वहां से रेल या सड़क के माध्यम से सामान सेंट्रल एशिया और रूस तक पहुंचाया जा सकता है। चाबहार के समानांतर ही एक बंदरगाह भारत में भी विकसित होगा। इसका लाभ ईरान को मिलेगा क्योंकि इसके माध्यम से वह पूर्वी एशिया या दक्षिण पूर्वी एशिया तक अपने माल को पहुंचा सकेगा. इस तरह इस प्रोजेक्ट से भारत, सेंट्रल एशिया और रूस होते हुए यूरोप से जुड़ सकेगा और दूसरी तरफ ईरान, भारत होते हुए पूर्वी एशियाई मुल्कों से जुड़ सकेगा।
ओएनजीसी ने ईरान के फरजाद-बी ब्लॉक में गैस की खोज की है। भारत वहां निवेश के बदले सस्ती दरों पर गैस पाने का इच्छुक है। भारत, ओमान से 1100 किमी लंबी गैस पाइपलाइन लाने का इच्छुक है। यदि इस प्रोजेक्ट में शामिल होने के लिए ईरान भी राजी हो जाता है तो कालांतर में तीनों मुल्कों को इससे लाभ होगा। वैसे पहले ये परियोजना ईरान से होते हुए पाकिस्तान से गुजरते हुए भारत आनी थी लेकिन इस क्षेत्र में जारी अराजकता के कारण भारत ने अपने प्लान में तब्दीली करते हुए इसे ओमान से लाने का फैसला किया है।